यूपी में डॉक्टर ने इलाज नहीं किया तो होगी FIR, नहीं तो देने पड़ेंगे एक करोड़ रुपये
लखनऊ
यूपी में डॉक्टर साहब गायब हैं। सरकार खोज रही है मगर अभी मिले नहीं हैं। सुपर स्पेशियलिटी वाले डॉक्टर हैं। सरकार उनकी इस उच्च विशिष्टता को मेडिकल कॉलेजों में मरीजों के इलाज के लिए प्रयोग करना चाहती है। दो साल का बान्ड भी उनसे भरवाया गया है। मगर तैनाती देने को हुई काउंसलिंग से वे गायब रहे। उनको फिर भी तैनाती तो दे दी गई है मगर एक महीने में नौकरी पर हाजिर न हुए तो एफआईआर कराने की तैयारी है। इससे बचना है तो उन्हें एक करोड़ रुपये देने होंगे।
मामला वर्ष 2019 के बैच में विभिन्न उच्च विशिष्टताओं में डीएम व एमसीएच करने वाले डॉक्टरों का है। प्रदेश में ऐसे कुल 138 डॉक्टर थे। इनमें से 10 फेल हो गए। जबकि दो फैलोशिप कर रहे हैं। बाकी बचे 126 डॉक्टरों की मेडिकल कॉलेजों में पोस्टिंग होनी थी। दरअसल सरकार ने सुपर स्पेशियलिटी वाले इन डॉक्टरों के लिए दो साल प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में सेवा अनिवार्य कर दी है। इसका बान्ड भरवाया जाता है। मूल प्रमाणपत्र भी जमा करा लिए जाते हैं। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय द्वारा जब सुपर स्पेशियलिटी वाले इन डॉक्टरों की पोस्टिंग के लिए काउंसलिंग कराई गई तो तीन डॉक्टर नहीं पहुंचे। उन्होंने चिकित्सा शिक्षा विभाग को इसकी कोई जानकारी भी नहीं दी।
प्रदेश से बाहर प्रेक्टिस की चर्चा
महानिदेशालय ने यह सोचकर कि तय समय में ज्वाइन कर लेंगे, उनकी पोस्टिंग कर दी। डा. निहार संदीप देसाई को पीजीआई लखनऊ में क्लीनिकल हिमैटोलॉजी में, डा. अमित कुमार देओल को झांसी मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जरी विभाग और डा. आशुतोष कुमार कर्ण को सैफई आयुर्विज्ञान संस्थान में तैनाती दी जा चुकी है। सप्ताहभर से अधिक बीच चुका है मगर अभी कोई ज्वाइन करने नहीं पहुंचा। चर्चा है कि इन लोगों ने प्रदेश से बाहर काम भी शुरू कर दिया है। इनके पास एक महीने का समय है। इस बीच या तो नौकरी ज्वाइन कर मरीजों का इलाज शुरू करना होगा नहीं तो बान्ड की शर्त के हिसाब से एक करोड़ रुपया सरकारी खजाने में जमा कराना होगा। ऐसा न होने पर कानूनी कार्रवाई झेलनी होगी। मूल प्रमाणपत्र जब्त रहेंगे सो अलग।