हिमाचल जेपी नड्डा-अनुराग ठाकुर की लड़ाई ने डुबोई बीजेपी की नैया?
नईदिल्ली
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ रह है और जहां भी बीजेपी जीत रही है, उनका मार्जिन बेहद कम है। जबकि कांग्रेस के प्रत्याशियों की मार्जिन बहुत ज्यादा है। इससे साफ है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ जनता का रूझान रहा और हर सीट पर कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग हुई। चुनाव विशेषज्ञों की मानें हिमाचल में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार में बीजेपी के बागियों का बड़ा रोल है। इतना ही नहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अक्ष्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के बीच का तनाव भी बीजेपी की हार का बड़ा कारण है।
पहले बात बीजेपी के बागियों की
हिमाचल प्रदेश में जब बीजेपी ने टिकट बांटना शुरू किया तभी से बगावत के सुर सुनाई देने लगे। जल्द ही करीब डेढ़ दर्जन बागियों की तस्वीर सामने आ गई। हालांकि पीएम मोदी ने कुछ बागियों से बात करके उन्हें बिठाने की कोशिश की और कामयाब भी रहे लेकिन अंदरखाने बागियों ने बीजेपी की लुटिया डुबोने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। चुनाव के दौरान कई बीजेपी नेताओं के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए जिसमें वे खुलेआम बीजेपी की हार की बात करते दिखे। नेताओं की सीटें बदलने का भी बुरा असर पड़ा और ज्यादातर जगहों पर भाजपा हार रही है।
दो बड़े नेताओं की लड़ाई कितनी घातक
हिमाचल प्रदेश में चुनाव से पहले ही सीएम चेंज करने की मांग उठी लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने इस डिमांड को नहीं माना और मामला रफा दफा हो गया। इसके पीछे तर्क यह था कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर प्रदेश की राजनीति में एक्टिव होना चाहते थे और उनकी नजर सीएम की पोस्ट पर थी। लेकिन बीजेपी के नेशनल प्रेसीडेंट जेपी नड्डा ने विरोध कर दिया जिसके बाद दोनों नेताओं के बीच तनातनी की बातें सामने आईं। दरअसल, हिमाचल के पूर्व सीएम प्रेमकुमार धूमल जो कि अनुराग ठाकुर के पिता हैं, उनसे और नड्डा की पुरानी अदावत रही है। यही वजह रही कि टिकट बंटावारे में भी बीजेपी प्रदेश में दो खेमों में बंटी रही।
कांग्रेस को किसका मिला फायदा
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को लेकर भी लोगों में सहानुभूति की लहर दिखी। वीरभद्र सिंह की पत्नी और बेटे दोनों चुनाव लड़े और बड़ी जीत दर्ज करने वाले हैं। वहीं प्रदेश की जनता फिर से वीरभद्र परिवार को ही सीएम की कुर्सी पर देखना चाहती है। स्थानीय लोगों की यही भावना कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुई।