September 27, 2024

न्यायपालिका और विधायिका के बीच क्यों होता है टकराव? क्या कहता है संविधान?

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नई दिल्ली 
साल 2016 में न्यायपालिका और सरकार के बीच जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर टकराव बहुत ज्यादा बढ़ गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए सवाल किया है कि क्या वह पूरी न्यायपालिका को ठप कर देना चाहती है। आखिर क्यों न्यायपालिका और विधायिका का आपस में होता है टकराव? हमारे संविधान में राज्य की शक्तियों को तीन अंगों में बांटा गया है- कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका (Executive, Legislature, Judiciary)। इन शक्तियों के अनुसार विधायिका का काम विधि (कानून) निर्माण करना, कार्यपालिका का काम विधियों का कार्यान्वयन (कानून को लागू करना) तथा न्यायपालिका को प्रशासन की देख-रेख, विवादों का फैसला और विधियों की व्याख्या करने का काम सौंपा गया है। इसके बावजूद विगत वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां देखा गया है कि न्यायपालिका और विधायिका में टकराव की स्थिति बन जाती है।

न्यायपालिका: भारत में जो न्यायपालिका है उसका मूल काम भारतीय संविधान में लिखे कानून का पालन करना और करवाना है और कानून का पालन न करने वालों को दंडित करने का अधिकार भी न्यायपालिका के पास है। भारत में 6 प्रकार के न्यायालय स्थापित किए गए हैं। वह 6 न्यायालय कुछ इस प्रकार हैं- उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट), उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट), जिला और अधीनस्थ न्यायालय, ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रैक कोर्ट और लोक अदालत।

विधायिका: भारत संघ की विधायिका को संसद कहा जाता है और राज्यों की विधायिका को विधानमंडल/ विधानसभा कहते हैं। बात देश की हो रही है तो इसकी विधायिका यानी संसद के दो सदन हैं- उच्च सदन राज्यसभा तथा निचला सदन लोकसभा कहलाता है।

आखिर क्यों होता है दोनों में टकराव
न्यायपालिका और विधायिका के बीच टकराव की स्थिति भारत के इतिहास में कई बार बन चुकी है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973, यह देश का पहला केस कह सकते हैं जब न्यायपालिका और विधायिका आमने-सामने आ गए थे। तब साल 1972-73 के बीच 68 दिनों तक लगातार सुनवाई हुई और तभी केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की अब तक की सबसे बड़ी संविधान पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि भारत में संसद नहीं बल्कि संविधान सर्वोच्च है। कोर्ट ने माना कि संसद मौलिक अधिकारों में भी संशोधन कर तो सकती है, लेकिन ऐसा कोई संशोधन वह नहीं कर सकती जिससे संविधान के मूलभूत ढांचे (बेसिक स्ट्रक्चर) में कोई परिवर्तन होता हो या उसका मूल स्वरूप बदलता हो।

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