चीन या अमेरिका के रास्ते पर चलने की जरूरत नहीं, इससे नहीं होगा भारत का विकास: मोहन भागवत
नई दिल्ली
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भारत को अमेरिका या चीन जैसा न बनने देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अगर भारत यूएस या चीन जैसा बनने की कोशिश करता है तो यह उसका विकास नहीं होगा। भागवत ने कहा, 'जो धर्म मनुष्य को सुविधा संपन्न और सुखासीन बनाता है मगर प्रकृति को नष्ट करता है, वो धर्म नहीं है। उसी का अनुकरण अमेरिका और चीन को देखकर भारत करेगा तो ये भारत का विकास नहीं है। विकास होगा मगर भारत चीन और अमेरिका जैसा बनेगा।'
मोहन भागवत ने रविवार को मुबंई में एक कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान प्रकृति की रक्षा पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने वे आधार भी बताए जिन पर चलकर देश का विकास हो सकता है। भागवत ने कहा, 'भारत की दृष्टि, लोगों की परिस्थिति, संस्कार, संस्कृति, विश्व के बारे में विचार, इन सभी के आधार पर भारत का विकास होगा। अगर विश्व से कुछ अच्छा आएगा तो उसे लेंगे मगर हम प्रकृति और अपने शर्तो के अनुसार लेंगे।'
'भारतीय संस्कृति में धर्म के बराबर कर्म'
मोहन भागवत ने कुछ दिनों पहले कहा था कि भारतीय संस्कृति में कर्म को धर्म के बराबर माना जाता है और इसे एक ‘विनिमय अनुबंध’ के रूप में नहीं देखा जाता है। उन्होंने नागपुर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, 'प्रचलित दृष्टिकोण यह है कि अगर अनुबंध से संबंधित एक पक्ष अपनी प्रतिबद्धता को पूरा नहीं करता है, तो दूसरा पक्ष भी इसे पूरा करने से इनकार कर देगा। लेकिन यह दृष्टिकोण अब बदल रहा है और हमने अपने तरीके से सोचना शुरू कर दिया है।'
वहीं, मोहन भागवत 28 दिसंबर को उज्जैन में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जल की पवित्रता पर भारतीय विमर्श तैयार करने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ इसे जोड़ने पर अपने विचार रखेंगे। जल शक्ति मंत्रालय और दीनदयाल अनुसंधान संस्थान (डीआरआई) द्वारा आयोजित 'सुजलाम' नामक सम्मेलन 27 से 29 दिसंबर तक क्षिप्रा नदी के तट पर आयोजित किया जाएगा। डीआरआई के अधिकारी ने कहा कि सम्मेलन में लोक परंपराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों में जल के विवरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। साथ ही जल से संबंधित त्योहारों का एक सार-संग्रह तैयार किया जाएगा।