म्यांमार पर चीन और रूस के साथ खड़ा हुआ भारत, UNSC के महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर वोटिंग से बनाई दूरी
म्यांमार
सैन्य शासन के आतंक में जी रहे म्यांमार को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गये काफी अहम प्रस्ताव पर वोट डालने से भारत ने दूरी बना ली है। म्यांमार में हिंसा को फौरन खत्म करने को लेकर यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में पेश एक मसौदा प्रस्ताव पर करवाए गये वोटिंग से भारत दूर रहा है। भारत के साथ साथ चीन और रूस ने भी म्यांमार के खिलाफ वोट डालने से दूरी बना ली है। यूएनएससी में पेश इस मसौदा प्रस्ताव में म्यांमार में तत्काल सैन्य हिंसा खत्म करने और आंग सा सू की समेत देश के तमाम नेताओं को फौरह रिहा करने की मांग की गई थी।
UNSC में प्रस्ताव से दूर रहा भारत म्यांमार पर पिछले साल फरवरी महीने में सेना ने कब्जा कर लिया था और नागरिक सरकार का तख्तापलट कर दिया था। जिसके बाद से देश के तमाम बड़े नेताओं को जेल में रखा गया है और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नेता आंग सान सू की को अभी तक अलग अलग मामलों में 18 सालों से ज्यादा की सजा सुनाई गई है। लिहाजा, यूएनएससी में पहली बार म्यांमार को लेकर मसौदा पेश किया गया था, जिसमें सैन्य शासन से तमाम नेताओं को रिहा करने की आग्रह की गई थी। इस महीने भारत की अध्यक्षता में 15 देशों की सुरक्षा परिषद ने बुधवार को प्रस्ताव को अपनाया था। म्यांमार के खिलाफ लाए गये इस प्रस्ताव के पक्ष में जहां 12 देशों ने मतदान किया था, वहीं भारत के साथ साथ रूस और चीन वोटिंग से दूर रहा।
74 वर्षों में पहला प्रस्ताव पिछले 74 सालों में म्यांमार पर अपनाया गया सुरक्षा परिषद का यह पहला संकल्प है। म्यांमार को लेकर इससे पहले यूएनएससी में प्रस्ताव साल 1948 में आया था, जब बर्मा के नाम से जाने जाने वाला म्यांमार ब्रिटिश शासन के अधीन था और उस वक्त बर्मा को संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता के लिए सिफारिश की गई थी। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने बैठक की अध्यक्षता करते हुए अपनी राष्ट्रीय हैसियत से वोट की व्याख्या की और कहा कि, नई दिल्ली का मानना है कि म्यांमार की जटिल स्थिति "शांत और धैर्यपूर्ण कूटनीति" के दृष्टिकोण की मांग करती है। उन्होंने कहा कि, किसी भी अन्य उपाय से लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को हल करने में मदद नहीं मिलेगी, जो स्थायी शांति, स्थिरता, प्रगति और लोकतांत्रिक शासन को रोकते हैं।