सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को नोटबंदी का निर्णय सही या गलत पर सुनाएगा फैसला
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में 8 नवंबर को देश को संबोधित करते हुए 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था। उनके इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को अपना फैसला सुनाएगा। यह फैसला न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ देगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को आरबीआई को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित रिकॉर्ड अपने पास सुरक्षित रख लें। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं। इसी पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलें सुनी थीं। इस दौरान कांग्रेस नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने 500 और 1000 रुपए के नोटों का संचालन बंद करने को गंभीर त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को तब तक शुरू नहीं कर सकती जब तक आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश न की गई हो।
सराकर और जजों के बीच हुई थी तीखी बहस
आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 2016 में केंद्र सरकार का नोटबंदी का फैसला एक विचारहीन प्रक्रिया नहीं थी। रिजर्व बैंक ने केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए कोर्ट में उन 58 याचिकाओं का विरोध किया, जिसमें नोटबंदी के फैसले का विरोध किया गया था और कहा गया था कि यह रातों-रात लिया गया फैसला था। रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही कहा कि अदालत को इसकी जांच करने से बचना चाहिए क्योंकि यह एक आर्थिक नीति से जुड़ा हुआ फैसला है।
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष रिजर्व बैंक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि यह "राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा" था और इस पर कुछ को छोड़कर सभी एकमत थे। अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि कोर्ट को सरकार द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीति में दखल देने से बचना चाहिए और 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों के नोटबंदी के फैसले की वैधता की अदालत द्वारा जांच नहीं की जानी चाहिए। इस पर बेंच ने कहा कि अदालत नोटबंदी के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, बल्कि वह निर्णय लेने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की जांच करेगी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "हम निर्णय की वैधता में नहीं बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया की बात कर रहे हैं।" इस पर गुप्ता ने कहा कि नोटबंदी के फैसले को सुचारू रूप से लागू करने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए थे।
'कोर्ट को मौद्रिक नीति जैसे भारी भरकम शब्दों से नहीं डरना चाहिए'
उधर, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने केंद्र और आरबीआई की दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि कोर्ट को आर्थिक नीति और मौद्रिक नीति जैसे भारी भरकम शब्दों से नहीं डरना चाहिए। उन्होंने कहा कि नोटबंदी मौद्रिक नीति का हिस्सा नहीं है। उन्होंने अदालत से निर्णय लेने की प्रक्रिया की वैधता तय करने और मनमाना पाए जाने पर इसे रद्द करने की गुहार लगाई ताकि भविष्य में कानून का उल्लंघन करते हुए इस तरह की कवायद न की जाए। चिदंबरम ने कहा, "भले ही अदालत अब नोटबंदी को खत्म नहीं कर सकती है, क्योंकि कोर्ट ने छह साल बाद इस मामले की सुनवाई शुरू की है, लेकिन अदालत निर्णय लेने की प्रक्रिया पर फैसला सुना सकती है। मामले में बुधवार को भी सुनवाई होगी।