November 26, 2024

वीर सावरकर भारत की सुरक्षा के नास्‍त्रेदमस : श्री माहुरकर

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स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा 'स्वाधीनता आंदोलन का विमर्श: तब और अब' विषय पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी संपन्न

भोपाल

स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्‍कृति विभाग, मध्‍यप्रदेश शासन एवं धरोहर संस्था के सहयोग से दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा 'स्वाधीनता आंदोलन का विमर्श: तब और अब' विषय पर शनिवार 24 दिसंबर, 2022 को एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रवीन्‍द्र भवन में किया गया।

प्रख्यात पत्रकार और केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री उदय माहुरकर ने कहा कि श्री वीर सावरकर भारत की सुरक्षा के नास्‍त्रेदमस है। उन्होंने 60-80 वर्ष पूर्व ही भारत की सुरक्षा को लेकर आने वाली चुनौतियों पर चेतावनी दी थी। असम की घुसपैठ की समस्या की गंभीरता को आजादी के पूर्व ही उन्होंने बता दिया था। विभाजन से बने पाकिस्तान को लेकर भी उन्होंने भविष्यवाणी की थी और कांग्रेस का इस आधार पर विरोध किया था। श्री माहुरकर आज रवीन्‍द्र भवन में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा 'वीर सावरकर और राष्ट्रीय सुरक्षा' विषय पर आयोजित सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 1937 में जब सिंध को बॉम्बे प्रोविंस से अलग किया गया था, उसी समय से सावरकर ने इसे 'एंग्लो मुस्लिम षड्यंत्र' बताया था। उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का निमंत्रण मिला, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का गठन कांग्रेस का सेल्फ गोल है। उन्होंने कहा कि सावरकर शुद्ध राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयास किए। श्री माहुरकर ने कहा कि "भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वीर सावरकर 'नास्त्रेदमस' थे। वे गांधी नहीं, छत्रपति शिवाजी के उपासक थे। महात्‍मा गांधी जो जिन्ना से मिलने 17 बार उसके घर गए और वो एक भी उनके पास मिलने नहीं गया।''  

श्री माहुरकर ने कहा कि आज सावरकर को लेकर बहुत तरीके के आरोप सामने आते हैं। श्री सावरकर छत्रपति शिवाजी के उपासक थे। छत्रपति शिवाजी ने भी 5 बार माफी पत्र लिखें। श्री वीर सावरकर ने माफीनामा को कभी नहीं छुपाया। 'अंडमान के अंधेरे से' उनकी पुस्तक में उन्होंने स्वयं इन बातों का उल्लेख किया गया। वे साथी कैदियों से कहा करते थे कि यहां सड़ने का मतलब नहीं है। हमें बाहर जाकर संघर्ष करना चाहिए। 1952 में जब चीन ने भारत से बड़ी सेना बनाई तभी उन्होंने सुझाव दिया था कि भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनना होगा। यदि भारत उस समय परमाणु शक्ति संपन्न बन गया होता तो आज से 10 वर्ष पूर्व ही हम सुपर पावर बन चुके होते हैं।

घर में क्रांतिकारियों के चित्र लगाएं : पर्यटन मंत्री सुश्री ठाकुर
सत्र के मुख्य अतिथि संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने कहा कि हम ज्ञान को प्रज्ञान में बदलें। इस सत्र में हुए विमर्श के बीच को लेकर समाज में वातावरण का निर्माण करें। आव्हान किया कि राष्ट्रवादी हिंदू और मुसलमान शत प्रतिशत मतदान करें। अपने उद्बोधन में कविता पाठ करते हुए ठाकुर ने यह भी कहा कि सभी अपने घर में क्रांतिकारियों के चित्र लगाएं। चित्र से चित्त परिवर्तित होगा। सत्र की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं समाजसेवी श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि वीर सावरकर समाज सुधारक भी थे। उन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा समरसता और अस्पृश्यता की समस्या को लेकर के भी कई बार आंदोलन किये।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखिका प्रो. कुसुमलता केडिया ने विस्तृत संदर्भों का उल्लेख करते हुए भारत के गौरवशाली इतिहास का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष की सीमाएं अफगानिस्तान, इराक और ईरान तक रही हैं, लेकिन राज्य के रूप में उसका विखंडन होता रहा है। यूरोपियन और अमेरिकन इतिहासकारों ने भी भारतवर्ष की विस्तृत सीमाओं और समृद्धि का उल्लेख किया है। प्रथम विश्व युद्ध में 15 लाख और द्वितीय विश्व युद्ध में 25 लाख भारतीय सैनिक मारे गए। लेकिन इतिहास में उनका कहीं कोई उल्लेख नहीं है। सत्र की अध्यक्ष सांची बौद्ध अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता ने कहा कि इतिहास विषय मात्र नहीं है, वह हमारा ही अस्तित्व है। भारत का वास्तविक इतिहास विस्मृत कर दिया गया। हमारे पौराणिक संदर्भ इतिहास का ही भाग है।

द्वितीय सत्र में 'इतिहास के विस्मृत पृष्ठ' विषय पर चर्चा करते हुए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक श्री आशुतोष भटनागर ने कहा कि अमृत महोत्सव कृतज्ञता ज्ञापन का अवसर है। इसके माध्यम से हम उन वीर बलिदानियों को याद कर रहे हैं जिनका उल्लेख इतिहास में नहीं है। पत्रकार एवं इतिहासकार प्रशांत पोल ने कहा कि रानी अबक्का वेल्लूर नचियार, तिलका मांझी, बिरसा मुंडा जैसे वीरों का इतिहास में उल्लेख नहीं मिलता। उनके बारे में कभी पढ़ाया भी नहीं गया।

अंग्रेजों ने भारतीय नारियों का शारीरिक शोषण किया : श्री श्रीवास्तव
सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और चिंतक श्री मनोज श्रीवास्तव ने विभिन्न संदर्भों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण भी अंग्रेजों के भारत आने का एक कारण था। अंग्रेजों की छावनियों के साथ वेश्यालय भी स्थापित होते थे। भारतीय नारियों का वहां शारीरिक शोषण किया जाता था। रोलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट में इसका उल्लेख है, लेकिन भारत के इतिहास में अंग्रेजों के इस पक्ष को नहीं बताया गया।

'इतिहास विमर्श और मीडिया' विषय पर आयोजित तृतीय सत्र में ऑर्गेनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि मीडिया को सरकार के नहीं, समाज के भरोसे से संचालित होना चाहिए। भारत में दुर्भाग्य से स्वाधीनता के बाद मीडिया ने ऐसे विमर्श को बढ़ावा दिया जो अंग्रेजों के अनुसार गढ़ा गया था।

अकादमिक जगत में जो विमर्श हुए उन्हीं को मीडिया ने समाज में स्थापित किया। ब्रिटिश एजुकेशन व्यवस्था ने भारत को मानसिक रूप से गुलाम बनाया। सूचना आयुक्त और पत्रकार श्री विजय मनोहर तिवारी ने धार की भोजशाला रिपोर्टिंग का उदाहरण देते हुए कहा कि मीडिया में अक्सर भोजशाला के विवाद को कानून और व्यवस्था के नजरिए से ही रिपोर्ट किया गया जबकि यह इतिहास का विषय भी था। उन्होंने कहा कि मीडिया में तथ्यात्मक रिपोर्ट की हमेशा गुंजाइश होती है और उसका सभी वैचारिक प्रतिबद्धता के लोग स्वागत करते हैं। इतिहास से जुड़े विषयों पर हमेशा तथ्यात्मक रिपोर्ट होना चाहिए। सत्र की अध्यक्षता डॉ. धर्मेन्‍द्र पारे ने की।

दत्‍तोपन्‍त ठेंगड़ी शोध संस्‍थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने बताया कि स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास के अनछुए पहलुओं से परिचित कराने और मुख्‍य धारा के विमर्श में नये तथ्‍यों को उजागर करने के उद्देश्य से स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्‍कृति विभाग, मध्‍यप्रदेश शासन एवं धरोहर संस्था के सहयोग से इस राष्‍ट्रीय विमर्श का आयोजन किया गया। संगोष्‍ठी के अंतर्गत स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास लेखन, विस्मृत इतिहास और स्वाधीनता के नए पृष्ठ, इतिहास-विमर्श और मीडिया, वीर सावरकर : राष्‍ट्रीय सुरक्षा विषय पर प्रमुख सत्र सम्‍पन्‍न हुए। कार्यक्रम में विभिन्‍न विश्‍विद्यालयों के कुलपति, बुद्धीजीवी, शोधार्थी एवं गणमान्‍य नागरिक उपस्थित रहे।

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