समाज में ब्राम्हणों की स्थिति महत्वपूर्ण, जिसका कोई विकल्प नहीं : प्रेमप्रकाश
रायपुर
टिकरापारा स्थित पुजारी पार्क में आल इण्डिया ब्राम्हण फ्रन्ट (एआईबीएफ) का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय, पूर्व मंत्री व विधायक सत्यनारायण शर्मा, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के से.नि. न्यायमूर्ति अनिल शुक्ला, से.नि. आई.एफ.एस. राकेश चतुवेर्दी, आल इण्डिया ब्राम्हण फ्रन्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष वाय रामानरसिम्हा, से.नि. आई.ए.एस., भाजपा कार्यसमिति सदस्य एवं संरक्षक ए.आई.बी.एफ. गणेश शंकर मिश्रा, संतोष उपाध्याय, पूर्व विधायक, राजिम, विधायक धरसीवा श्रीमती अनीता शर्मा तथा आल इण्डिया ब्राम्हण फ्रन्ट की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्रीमती निवेदिता मिश्रा आदि उपस्थित हुए। इस अवसर पर ऐसे 15 ब्राम्हण दंपत्ति जिनका दांपत्य जीवन 50 वर्ष पूर्ण हो चुका है, उन्हें स्वर्ण दंपत्ति एवं 80 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके 10 वरिष्ठों का धरोहर सम्मान के अंतर्गत अभिनंदन किया गया।
आल इण्डिया ब्राम्हण फ्रन्ट के संरक्षक एवं से.नि. आई.ए.एस. श्री गणेश शंकर मिश्रा द्वारा सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए जानकारी दी गई कि वर्तमान समय ब्राम्हण वर्ग के लिए अत्यंत चुनौती भरा है। देश की अखण्डता, एकता और लोक कल्याण की दिशा में ब्राम्हण सदैव समन्वयकारी एकता के सूत्रधार रहे हैं, जिन्होंने सदैव अखिल लोककल्याण की भावना को शिखर पर रखा है। मैने अपने 36 साल के सर्विस काल के दौरान यह देखा है कि एक दूषित विचारधार प्रबल हो रही है। वर्तमान में अनेक विनाशकारी शक्तियाँ विदेशी षड्यंत्रों के तहत कार्यरत हैं, जिनके द्वारा सनातन धर्म समाज में ब्राम्हणों के प्रति शत्रुता व विच्छेद की भावना भड़का कर समाज तोडने हेतु सुनियोजित प्रयासरत हैं। ऐसे में हमें सावधान, सजग व सतर्क रहने की आवश्यकता है। ऐसे सम्मेलनों के आयोजनों की आवश्यकता है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने सम्मेलन को सार्थक बताते हुए राष्ट्र निर्माण में ब्राम्हणों की भूमिका पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जिस प्रकार मस्तिष्क का ट्रांसप्लांट संभव नहीं उसी प्रकार ब्राम्हण का विकल्प भी समाज में संभव नहीं है। आदि काल से वर्तमान समय तक ज्ञान ही सर्वोपरि रहा है, और इसकी महत्ता को बरकार रखने में ब्राम्हणों का अतुलनीय योगदान रहा है। न्यायमूर्ति श्री अनिल शुक्ला जी ने कहा कि यह सत्य है कि वर्तमान समय ब्राम्हणों के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। उन्होंने भगवान बुद्ध द्वारा ब्राम्हणों के सन्दर्भ में दी गई परीभाषा को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि बुद्ध ने ब्राम्हण को जितनी उंचाई प्रदान की उतनी शायद किसी ने नहीं दी। प्रारंभ में जो भी मनुष्य पैदा होता है वह शूद्र होता है, ब्राम्हण एक अर्जन है, वेदों का शास्त्रों का उपनिषदों का वह ब्राम्हण है इसलिए बुद्ध ने अपने धम्मपद में धर्म का जो मार्ग बताया है, वह ब्राम्हण बनने की प्रक्रिया है। वही ब्राम्हण ब्रम्ह में लीन होता है। ब्रम्ह में लीन वही होता है जो शास्त्रों तक पहुंचा है। यदि तुलसीदास जी द्वारा रामायण अवधी भाषा में नहीं लिखा गया होता तो शायद आज राम को जानने वालों की संख्या इतनी नहीं होती।
पूर्व मंत्री श्री सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि आल इण्डिया ब्राम्हण समाज की बहनों द्वारा ब्राम्हण समाज के एकीकरण के लिए किया गया यह प्रयास वास्तव में अपने आप में सराहनीय है। क्योंकि मातृशक्ति के आगे बड़े से बड़े देवी-देवता व असुरी शक्तियां नतमस्तक हुई हैं। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में बल्देव प्रसाद और माखनलाल चतुवेर्दी जैसी शख्सियत हमारे समाज की देन रही हैं। प्रत्येक क्षेत्र में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए हमें एकता के सूत्र में बंधना होगा। शासकीय सेवाओं में समाज के आदरणीय गण है, यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे समाज के लोगों के पथप्रदर्शक व सहायक बनें। आपस में भाईचारा व सहयोग की भावना को मजबूती प्रदान करें। राकेश चतुवेर्दी, पूर्व आई.एफ.एस. द्वारा वर्णव्यवस्था ब्राम्हणों की महत्ता स्पष्ट करते हुए श्री चतुवेर्दी ने बताया कि भगवान श्री राम को मयार्दा पुरूषोत्तम बनाने वाले वशिष्ठ जी थे, कृष्ण को युगपुरूष बनाने में मुख्य भूमिका सांदिपनी जी ने निभाई थी और चन्द्रगुप्त का उदाहरण तो सभी जानते हैं।