विश्व प्रसिद्ध Eiffel Tower पर पेंट करवा सरकार छिपा रही इसकी खराब हालत
पेरिस
फ्रांस की राजधानी पेरिस की पहचान एफिल टावर अब जंग खा चुका है। जानकारों की राय में इसकी मरम्मत की सख्त जरूरत है। एक रिपोर्ट में इसकी हालत पर चिंता जताई गई है। लेकिन फिलहाल सरकार एक्सपर्ट की चिंताओं को दरकिनार कर इसको पेंट कर नया लुक देने में जुट गई है। आप क्या इसके पेंट पर होने वाले खर्च का अंदाजा लगा सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी इस एफिल टावर पर पेंट का खर्च कुछ लाख नहीं बल्कि छह करोड़ यूरो खर्च होंगे जो करीब पांच अरब रुपये के बराबर हैं।
पेंट करवाने की वजह
इसको पेंट कर नया दिखाने के पीछे एक बड़ी वजह भी है। दरअसल पेरिस में वर्ष 2024 में ओलंपिक खेल होने हैं। इसको देखते हुए ही इस एतिहासिक टावर को पेंट कर सुंदर बनाने की कवायद की जा रही है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 324 मीटर (1063 फीट) ऊंची इस टावर को देखने हर साल करीब 60 लाख लोग पेरिस आते हैं।
दुनिया में आए कई बदलावों का रहा गवाह
ये एतिहासिक टावर 132 वर्ष से पेरिस की पहचान बना हुआ है। इस लंबे वक्त में इसने दुनिया में कई बड़े बदलाव भी देखे हैं। अब तक इस टावर को 19 बार पेंट किया जा चुका है। इस बार इसको बीसवीं बार पेंट किया जा रहा है। हर वर्ष पर्यटक यहां पर आकर इसके सामने अपनी फोटो खिंचवाकर इसको अपने खास पलों में शामिल करते हैं।
पर्यटकों के लिए खूबसूरत पल
पर्यटक इसके ऊपर तक जाकर पेरिस के खूबसूरत नजारे को भी कैद करते हैं। सरकार ने यहां पर आने वाले पर्यटकों और इसकी खूबसूरती बनाए रखने के मद्देनजर इसका करीब एक तिहाई हिस्सा उतार कर उस पर डबल कोट पेंट करने की योजना तैयार की थी। लेकिन, वैश्विक महामारी की वजह से ऐसा नहीं किया जा सका। अब जबकि ओलंपिक गेम्स नजदीक आ चुके हैं तो इस योजना को पूरा करने का समय भी नहीं बचा है। ऐसे में इसको यथास्थिति में ही पेंट किया जा रहा है।
इसका इतिहास
एफिल टावर का निर्मा1887-1889 में शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर पेरिस में हुआ था। इस टावर की रचना गुस्ताव अइफिल ने की थी। उनके ही नाम पर बाद में इसका नामकरण भी हुआ। इसको खासतौर पर 1889 के वैश्विक मेले के लिए बनाया गया था। इसकी ऊंचाई करीब 81 मंजिला इमारत के बराबर है। शुरुआम में 107 इंजीनियरों ने इस टावर के प्रस्ताव को लेकर अपने डिजाइन पेश किए थे, लेकिन इनमें गुस्ताव की परियोजना मंजूरी मिली थी। मौरिस कोच्लिन और एमिल नुगिए इस परियोजना के संरचनात्मक इंजीनियर थे और स्टीफेन सौवेस्ट्रे वास्तुकार थे। 300 मजदूरों ने मिलकर इस टावर को दो वर्ष दो माह और पांच दिनों में पूरा किया था। इसका उद्घाटन 31 मार्च 1889 में हुआ और 6 मई से यह टावर लोगों के लिए खुला गया।