Bhima Koregaon की 205वीं वर्षगांठ में पुणे में बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए लोग
नई दिल्ली
Bhima Koregaon: आज से 205 साल पहले भीमा कोरेगांव में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा की सेना के बीच ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी गई थी। इस लड़ाई में 500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव-2 के 25000 सैनिकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जिस बहादुरी का परिचय महार सैनिकों ने दिया था उसके लिए आज के दिन को याद किया जाता है। इस जीत को उत्पीड़ित समुदायों के आत्म सम्मान की वापसी के दिन के तौर पर मनाया जाता है। भीमा कोरेगांव की वर्षगांठ को शौर्य दिन के रूप में भी मनाया जाता है। इस मौके पर महाराष्ट्र के पुणे स्थित भीा कोरेगांव में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए।
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हर वर्ष नए वर्ष के साथ लोग भीमा कोरेगांव युद्ध की बरसी को मनाते हैं। दरअसल महार को अछूत जाति के तौर पर जाना जाता है। जब अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी आई तो उसने भारत में जाति और वर्ण के भेद को बेहतर तरह से समझा और जिन महारों को पेशवा अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं करते थे उन्हें अपनी सेना में जगह दी। महारों ने पहले पेशवाओं से यह गुहार लगाई थी कि वह उनकी ओर से लड़ेंगे, लेकिन पेशवाओं ने महारों की गुहार को तवज्जों नहीं दी और उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं किया। जिसके बाद महार अंग्रेजों के साथ चले गए और उन्होंने पेशवाओं के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया।
1 जनवरी 1818 में कोरेगांव भीमा में ब्रिटिश इंडिया कंपनी और पेशवा की सेना आमने-सामने थी। एक तरफ जहां पेशवा बाजीराव-2 के 25000 सैनिक मैदान में थे तो दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से 500 महार सैनिक मैदान में थे। दोनों के बीच की इस लड़ाई को इसलिए भी काफी महत्व दिया जाता है क्योंकि इतनी कम संख्या में होने के बाद भी महारों ने पेशवा की सेना को मात दे दी थी। यही वजह है कि दलित समुदाय हर वर्ष इस युद्ध को जश्न के तौर पर मनाता है। अलग-अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
बता दें कि भीमा कोरेगाव पुणे से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित है, यहीं पर पेशवा और महारों के बीच युद्ध हुआ था। वर्ष 2017 में इसी दिन आयोजित कार्यक्रमों का दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था, जिसके बाद यहां हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा के बाद भीमा कोरेगांव में हर साल सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए जाते हैं ताकि फिर इस तरह की घटना ना हो।