पीड़ितों को नही मिल रहा है शासन की पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना का लाभ
जगदलपुर
बस्तर में गंभीर अपराधों में परिवार का कमाउ सदस्य को खोनें वाले परिजनों की आर्थिक मदद करने बनाए गए पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना का लाभ दिलाये जाने के लिए पीड़ितों को गंभीर मामलों का फैसला सुनाने वाली अदालतें अपने फैसलों में प्रतिकर दिए जाने या दिलाए जाने का जिक्र ही नहीं करती हैं। बीते साल के कुछ फैसलों में सही पाया गया कि अदातलत ने मामले के आरोपी तो गुनाह की गंभीरता के मुताबिक कैद और जुमार्ने की सजा सुनाई पर पीड़ित को क्षतिपूर्ति दिलाने वाली कंडिका फैसले से गायब मिली।
पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना का मकसद यह है कि कानूनन अपराधी को तो अदालत से सजा हो जाती है, लेकिन पीड़ित पक्ष को कोई मदद इस अधिनियम के तहत नहीं मिल पाती। हालांकि दंप्रसं की धारा 357 के तहत प्रावधान है कि न्यायालय पीड़ित को उचित प्रतिकर दिलाएं जो अब तक केवल किताबों में कैद थी। राज्य सरकार ने योजना लागू कर दी है और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण इनकी सुनवाई कर आदेश भी पारित कर रहे हैं, बावजूद इसके पीड़ितों को क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह योजना के तहत दी जाने वाली राशि के लिए अब तक जिलों को अलग से फंड ही जारी नहीं किया गया है।
13 फरवरी 2019 को राजपत्र में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक योजना के तहत सबसे ज्यादा सहायता राशि हत्या और सामूहिक बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में 5 से 10 लाख रुपये तक दी जाती है। बलात्कार, अप्राकृतिक यौन हमले में यह राशि 04 लाख तक हो सकती है। किसी का चेहरा जला कर या एसिड से विद्रूप करने पर यह राशि 7 लाख रुपए तक मिलती है। अन्य मामलों में हुई नुकसानी के मुताबिक न्यूनतम एक लाख जरुर दिए जाते हैं। सारी जानकारी के बाद पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना के तहत आदेश पारित किए जाते हैं। आवेदक को मय संपूर्ण अभिलेख जिला विधिक सहायता प्राधिकरण सचिव के समक्ष पेश करने होते है। किन्हीं कारणों ने जिला विधिक प्राधिकरण आवेदन रद्द कर देता है तो उसे हक होता है कि वह राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में अपील करे।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रकरण सचिव गीता रानी बृज ने बताया अदालत से उन्हें फैसले की प्रति के साथ मिले आदेश के अनुसार प्रकरण तैयार करना होता है। इसके बाद जरुरी प्रक्रिया के पूरा होने पर पीड़ित परिवार को योजना में दी गई गाइड लाइन के मुताबिक रुपए एक लाख से दस लाख रुपए तक का भुगतान राज्य सरकार करती है। हमें इस बाबत सूचना कलेक्टर और एसपी को भेजनी होती है। उन्होंने बताया प्रधिकरण के आदेश से जो पक्षकार असंतुष्ट होता है तो उसे अधिकार होता है कि वह राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सामने अपनी बात रख सके।