लुला डा सिल्वा ने ब्राजील के राष्ट्रपति पद की ली शपथ, वामपंथी सरकार से कैसे होंगे भारत के संबंध?
ब्राजील
लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ब्राजील के नये राष्ट्रपति बन गये हैं और उन्होंने रविवार को देश के नये राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले ली है। ब्राजील में पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक उथल पुथल मची रही है, क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सेनारो ने चुनाव में मिली हार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और उनके समर्थक पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और कई क्षेत्रों में हिंसक प्रदर्शन भी किए गये हैं। लिहाजा, लुला डा सिल्वा के राष्ट्रपति बनने के बाद अब राजनीतिक अस्थिरता खत्म होने की संभावना बन गई है।
लूला डा सिल्वा ने राष्ट्रपति पद की ली शपथ
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद लूला डा सिल्वा इमोशनल नजर आए और उन्होंने देश के नाम अपने पहले संबोधन में पुनर्निर्माण की योजनाओं के बारे में आशावाद व्यक्त किया है। इसके साथ ही उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के प्रशासन के सदस्यों को ध्यान में रखने की बात कही है, यानि उन्होंने टकराव को खत्म करने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। जायर बोल्सोनारो लगातार दो बार से चुनाव जीतकर ब्राजील के राष्ट्रपति बन रहे थे, लेकिन तीसरी बार चुनाव जीतने में नाकाम रहे। वहीं, लूला डा सिल्वा अब तीसरी बार राष्ट्रपति बने हैं। वहीं, लूला डा सिल्वा का सत्ता में लौटना ब्राजील समाज के भयंकर ध्रुवीकरण के टूटने का भी एक प्रतीक माना जा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति बोल्सेनारो ने अपने शासन के दौरान कोविड संकट में बेहद लापरवाह काम किए, जिससे हजारों ब्राजीलियन्स को बेमौत मरना पड़ा। लिहाजा, उनका वोट बैंक दरक गया। हालांकि, बोल्सेनारो की पार्टी काफी कम मतों से चुनाव हारी है और लुला डा सिल्वा की पार्टी को कोई बड़ी जीत नहीं मिली है, लेकिन फिर भी सत्ता का परिवर्तन तो हो ही चुका है।
लूला डा सिल्वा का पहला संबोधन
लूला डा सिल्वा ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद कांग्रेस के निचले सदन में एक भाषण में कहा कि, "ब्राज़ील के लिए हमारा संदेश आशा और पुनर्निर्माण का है।" उन्होंने कहा कि, "अधिकारों, संप्रभुता और विकास की इस महान इमारत को हाल के वर्षों में ध्वस्त कर दिया गया है, जिसका फिर से निर्माण किया जाएगा और इसके लिए सभी को एक साथ प्रयास करने की जरूरत होगी"। जब लूला डा सिल्वा राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे, तो उनकी वर्कर्स पार्टी के कार्यकर्ता लाल रंगों के झंडों के साथ खुशी से नाच रहे थे। इसके साथ ही लूला डा सिल्वा ने पूर्व राष्ट्रपति और उनके प्रशासन को लेकर भी कई सख्त घोषणाएं की हैं। उन्होंने कहा कि, वो पूर्व राष्ट्रपति के प्रशासन को लेकर रिपोर्ट, देश के सभी सांसदों और न्यायिक अधिकारियों को भेजेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, बंदूक कानून पर बोल्सेनारो के "आपराधिक कानून" को रद्द कर देंगे और कोविड नियंत्रण में नाकाम रहने वाले अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराएंगे।
'बदले की भावना से नहीं करेंगे कार्रवाई'
लूला डा सिल्वा ने पूर्व राष्ट्रपति बोल्सनारो का नाम लिए बिना कहा कि, "हम उन लोगों के खिलाफ बदले की भावना नहीं रखते हैं, जिन्होंने देश को अपने व्यक्तिगत और वैचारिक डिजाइनों के अधीन करने की कोशिश की, लेकिन हम कानून का शासन सुनिश्चित करने जा रहे हैं।" उन्होंने कहा कि, "जिन्होंने गलती की है, वे उचित कानूनी प्रक्रिया के भीतर अपने बचाव के व्यापक अधिकारों के साथ अपनी लापरवाहियों के लिए जवाब देंगे।" वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि लूला का राष्ट्रपति पद उनके पिछले दो जनादेशों की तरह होने की संभावना नहीं है, ब्राजील में तीन दशकों से अधिक समय में सबसे कठिन राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं और काफी कड़े मुकाबले में लुला डा सिल्वा ने जीत हासिल की है, लिहाजा उनके लिए सारे फैसले लेना और बोल्सेनारो के खिलाफ एक्शन लेना आसान नहीं होगा।
कड़े मुकाबले में जीते हैं लुला डा सिल्वा
आपको बता दें कि, ब्राजील की वामपंथी वर्कर्स पार्टी के नेता लुला डा सिल्वा 2 प्रतिशत से भी कम मतों से चुनाव जीते हैं, लिहाजा हारने वाले राष्ट्रपति बोल्सेनारो ने देश के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर शक जताया था और उनके समर्थकों ने हार मानने से इनकार कर दिया था। खुद पूर्व राष्ट्रपति बोल्सेनारो भी कई दिनों तक अपनी हार को पचा नहीं पाए। बोल्सेनारो के समर्थक लगातार देश की सेना से राजनीति में हस्तक्षेप करने और लुला डा सिल्वा का शपथ ग्रहण रोकने की अपील कर रहे थे। बोल्सेनारो के समर्थक लगातार देश के सैन्य प्रतिष्ठानों के सामने जमा हो रहे थे, हालांकि सेना ने देश की राजनीति में दखल देने से इनकार करते हुए अपनी तटस्थ नीति बरकरार रखी। वहीं, देश के राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है, कि लुला डा सिल्वा के लिए देश चलाना आसान नहीं होगा, क्योंकि ब्राजील पहले से ही कई संकटों का सामना कर रहा है और ज्यादा बहुमत नहीं होना भी उनके लिए परेशानी बढ़ाने वाला होगा।