राजस्थान से तेलंगाना तक कांग्रेस चुनौतियों से घिरी, कहीं नेताओं में टकराव, कहीं कमजोर संगठन
जयपुर
नए साल की दस्तक के साथ विधानसभा चुनाव के लिए बिसात बिछनी शुरू हो गई है। इस साल पूर्वोत्तर, दक्षिण और उत्तर भारत के नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। इन चुनाव में कांग्रेस के सामने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बचाए रखना है। वहीं, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा को शिकस्त देने की चुनौती है। इस साल की शुरुआत में पूर्वोत्तर के चार और आखिर में पांच राज्यों में चुनाव होंगे। त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा की सरकार है। त्रिपुरा में कांग्रेस लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। वहीं, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा को मिले समर्थन से कांग्रेस उत्साहित है।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में हैं। राजस्थान में हर पांच साल बाद सत्ता बदलती है। वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता सचिन पायलट का टकराव किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में सत्ता बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। हालांकि, यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने एकता का संदेश देने की कोशिश की। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस खुद को बेहतर स्थिति में महसूस कर रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, प्रदेश में स्थिति बेहतर है। पार्टी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और जीत दर्ज करेगी। वरिष्ठ नेता टी.एस. सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल में टकराव है, पर पार्टी नेताओं का कहना है कि स्थिति सामान्य है।
वर्ष 2015 में पूर्वोत्तर के आठ में से पांच राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। पिछले वर्षों में एक के बाद एक सभी राज्यों में कांग्रेस, भाजपा और उसके सहयोगियों से हार गई। इस वक्त कांग्रेस सिर्फ असम में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। चुनावी राज्य नागालैंड, मेघालय और मिजोरम में क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के सहयोग से सरकार में हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा के साथ तृणमूल कांग्रेस भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। क्योंकि, टीएमसी पूर्वोत्तर में कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी कर रही है। वर्ष 2018 के चुनाव में टीएमसी को मेघालय में कोई सीट नहीं मिली थी। पर कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक टूट कर टीएमसी में शामिल हो गए। इसके बाद मेघालय विधानसभा में टीएमसी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल गया।
नगालैंड में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। प्रदेश में लंबे वक्त तक कांग्रेस की सरकार रही। पर वर्ष 2018 में पार्टी दो-तिहाई सीट पर अपने उम्मीदवार तक खड़े नहीं कर पाई। पार्टी 60 में से सिर्फ 18 सीट पर चुनाव लड़ी, पर पार्टी को कोई सीट नहीं मिली। चुनाव में पार्टी को सिर्फ बीस हजार वोट मिले। कर्नाटक में कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला है। प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा को काफी समर्थन मिला था। कर्नाटक कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी और जीत दर्ज करेगी। हालांकि, चुनाव से पहले ही सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी जतानी शुरू कर दी है।
तेलंगाना में भी कांग्रेस संगठन कमजोर है। पार्टी के कई नेता और विधायक मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में पार्टी को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। इन चुनाव में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और त्रिपुरा में भाजपा से मुकाबला है। ऐसे में रणनीतिकार मानते हैं कि इन विधानसभा चुनाव परिणाम का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।