जींद, हरियाणा के मरीज का शा.अस्पताल के हार्ट, चेस्ट, वैस्कुलर सर्जरी विभाग में हुआ इलाज
रायपुर
कहने और सुनने में यह थोड़ा अटपटा जरूर लगता है लेकिन यह सच है कि कई बार जब हमारे पास कोई रास्ता नजर नहीं आता तब गूगल हमें सही रास्ता और पता भी बता देता है। कुछ ऐसा ही हुआ उत्तर भारत के एक बेहद प्रसिद्ध राज्य हरियाणा के जींद निवासी एक मरीज के साथ। हरियाणा के जींद जिले से छत्तीसगढ़ के रायपुर पहुंचकर उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में पैर की खून की नसों की बीमारी पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से निजात पाई। मरीज की इस बीमारी को चिकित्सा महाविद्यालय के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं टीम ने विशेष सर्जिकल तकनीक जिसे एंडआर्टिक्टॉमी (धमनी में जमे प्लाक को निकालने की एक सर्जिकल प्रक्रिया) कहा जाता है, के जरिये निकाल कर मरीज के जीवन को बीमारी से मुक्त एवं दर्द रहित बनाया। आज मरीज स्वस्थ है और डिस्चार्ज लेकर अपने घर जींद, हरियाणा जा रहा है।
अम्बेडकर अस्पताल स्थित एसीआई के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं, मरीज के सीटी एंजियोग्राफी से पता चला कि 52 वर्षीय मरीज के पैर की खून की नस जिसे फीमोरल आर्टरी और पॉप्लीटियल आर्टरी कहते हैं, के एंटीरियर टिबियल और पोस्टीरियर टिबियल में ब्लॉकेज है। जिसके कारण मरीज के पैरों में रक्त का प्रवाह नहीं हो पा रहा था। ब्लॉकेज के कारण अंगूठा और पंजा काला पड?ा प्रारंभ हो रहा था। खून नहीं पहुंचने के कारण पैरों के पंजों में असहनीय दर्द हो रहा था। इस बीमारी को पेरिफेरल आर्टरी डिजीज कहते हैं।
क्यों होती है यह बीमारी
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज उन लोगों में ज्यादा होती है जो धूम्रपान जैसे- तंबाकू, बीड़ी, गुटखा, गुड़ाखू इत्यादि करते हैं। इनके अलावा अनियंत्रित मधुमेह के कारण या फिर जिनको वैस्कुलाइटिस की बीमारी (खून की नसों में सूजन) होती है। पहले इस प्रकार की बीमारी में सीधा पैर को काट दिया जाता था। पैर का काटना या एम्पुटेशन की दो प्रमुख वजह होती है या तो पैर में गैंगरीन हो जाता है या फिर असहनीय पीड़ा हो। चिकित्सा विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है और यही वजह है कि पैरों की खून की नसों का इलाज अन्य विधियों से भी संभव है।