गुलाम नबी आजाद क्या अकेले पड़ गए? 17 समर्थक कांग्रेस में लौटे; जम्मू-कश्मीर में अब क्या करेंगे
नई दिल्ली
गुलाम नबी आजाद को बड़ा झटका लगा है। वह अब अपनी पार्टी में अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (डीएपी) का भविष्य भी अब खतरे में दिख रहा है। ऐसा इसलिए कि आजाद के पास अपने किसी भी शीर्ष सहयोगी के साथ नहीं बचा है। उनके 17 समर्थकों ने हाल ही में घर वापसी करते हुए कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है। अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के सामने भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या वह अपने समर्थकों की तरह खुद भी वापसी करेंगे या फिर आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को चुनौती देंगे?
इस बड़े झटके के बाद श्रीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए आजाद ने कहा, ''यह कोई झटका नहीं है। इन तीनों नेताओं का किसी भी विधानसभा क्षेत्र में कोई वर्चस्व नहीं है। मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं कहूंगा, क्योंकि वे मेरे पुराने सहयोगी रहे हैं।'' आपको बता दें कि उनका इशारा सईद, तारा चंद और बलवान सिंह की ओर था। आपको यह भी बता दें कि गुलाम नबी आजाद की पार्टी को चुनाव आयोग से अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। यानी उसका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। इससे पहले ही बड़े नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया है। कांग्रेस में वापसी करने वालों में जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं चांद, पूर्व विधायक बलवान सिंह और पूर्व मंत्री मनोहर लाल शर्मा जैसे कद्दावर नेता शामिल हैं।
गुलाम नबी आजाद की पार्टी में बड़े पैमाने पर हुई टूट के कई कारण बताए जा रहे हैं। प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा से लेकर आजाद द्वारा चिनाब क्षेत्र के नेताओं को अधिक महत्व दिए जाने तक को कारण बताया जा रहा है। उनके पुराने सहयोगियों को पहले लगा था कि वह कश्मीर में भाजपा के विकल्प के रूप में उभरेंगे और जम्मू-कश्मीर में बदलाव लाएंगे। लेकिन उन्हें अब यह लगता है कि वह भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करेंगे और भाजपा के हाथ को मजबूत करेंगे।
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिली प्रतिक्रिया ने भी इन नेताओं को कांग्रेस में वापसी करने के लिए प्रभावित किया है। वहीं, कांग्रेस में वापस आ गए नेताओं ने चिनाब घाटी के नेताओं को प्राथमिकता दिए जाने और उन्हें डीएपी में सभी महत्वपूर्ण विभागों को देने के लिए आजाद का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आजाद चिनाब से आने वाले जीएम सरूरी जैसे नेताओं के प्रभाव को कम करने में विफल रहे। एक निष्कासित नेता ने कहा, "मैंने कई बार आजाद साहब को यह बताने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया।"
कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद की पार्टी में मचे उथलपुथल का फायदा उठाया। असंतुष्ट नेताओं के साथ संपर्क स्थापित किया ताकि उन्हें वापसी के लिए मनाया जा सके। सूत्रों ने कहा कि इन नेताओं को आश्वासन दिया गया कि उन्हें पार्टी में सम्मान दिया जाएगा और समय आने पर पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जाएंगे।
हालांकि, गुलाम नबी आजाद की पार्टी के सूत्रों ने कहा कि पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन और पूर्व विधायक हाजी राशिद डार और गुलजार वानी आजाद के साथ पार्टी में बने हुए हैं, लेकिन सईद का जाना उनके लिए एक बड़ा झटका है। घाटी में उनकी अच्छी पकड़ है। सईद ने 2003 से 2007 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
आजाद की पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी को सईद की संभावित वापसी के बारे में पता था। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व मंत्री ने तारा चंद और उनके समूह के साथ मिलकर पार्टी को हाइजैक कर लिया। उन्होंने अपने हिसाब से पार्टी को चलाया। लेकिन, जब उनसे पूछा गया कि उन्हें निष्कासित क्यों नहीं किया गया, तो आजाद की पार्टी के नेता ने कहा कि पीरजादा ने ही चांद और अन्य लोगों के निष्कासन के आदेश पर हस्ताक्षर किए थे।