पाकिस्तान के ग्वादर में कैसा बवाल, चीन की क्यों उड़ी हुई है नींद?
नई दिल्ली
पाकिस्तान में रणनीतिक रूप से अहम माने जाने वाला बंदरगाह शहर ग्वादर में धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही है, जहां पिछले महीने पांच दिनों तक लगातार सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए थे। बलूचिस्तान प्रांत के तहत आने वाला ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस विवादास्पद परियोजना का अंतिम बिंदु है, जिस पर भारत ने चीन के समक्ष आपत्ति जताई है। यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरेगा।
बलूचिस्तान में यह आंदोलन ग्वादर राइट्स मूवमेंट के नेता मौलाना हिदायतुर रहमान की अगुवाई में हुआ। आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने चीनी नागरिकों को बंदरगाह क्षेत्र छोड़ने की चेतावनी दी थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मौलाना हिदायतुर रहमान के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने 500 चीनी नागरिकों को ग्वादर छोड़ने का आह्वान किया था। उनके आंदोलन को 'हक दो तहरीक' नाम दिया गया था।
बलूचिस्तान के नेता अब दावा कर रहे हैं कि वहां स्थिति सामान्य है लेकिन रहमान फिलहाल अंडरग्राउंड हैं। 25 दिसंबर को सुरक्षाकर्मियों ने तहरीक के लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। रहमान की अगुवाई में यह आंदोलन 2021 में भी हुआ था, तब प्रांतीय सरकार ने उनकी मांगे मानने का आश्वासन दिया था लेकिन जब वो पूरी नहीं हुईं तो इस बार फिर से आंदोलन शुरू हो गया।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनकारियों की चार अहम मांगे हैं। उनमें पहली मांग बलूचिस्तान में गैर कानूनी ढंग से मछली पकड़ने पर रोक लगाना शामिल है। इनके अलावा प्रदर्शनकारी ईरान से उनके व्यापार पर लगे प्रतिबंध को हटाना चाहते हैं। तीसरी मांग बलूचिस्तान में लगे चेकपोस्ट को कम करने और लापता लोगों का पता लगाने के लिए कर रहे हैं।
दरअसल, इस आंदोलन की जड़ स्थानीय लोगों की रोजी रोटी से जुड़ा है। बलूचिस्तान के लोगों का मुख्य पेशा मछली पकड़ना ही है लेकिन चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की वजह से वहां चेकपोस्ट लगा दिए गए हैं और मछली पकड़ने पर बैन लगा दिया गया है। इससे उनके सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
दूसरी तरफ, कराची के बड़े-बड़े व्यापारी ग्वादर में आकर गैर कानूनी तरीके से मछली पकड़ रहे हैं और उन्हें ट्रकों से बाहर भेज रहे हैं। कुछ लोगों के आरोप है कि चीनी जहाज भी मछली पकड़ने के कारोबार में शामिल हो गया है। इस वजह से ग्वादर के मछुआरे सड़कों पर उतर आए हैं। अगर ग्वादर में लोगों का आंदोलन फिर शुरू होता है और वह लंबे समय तक चलता है तो चीन की सीपीईसी प्रोजेक्ट पर ग्रहण लग सकता है।
CPEC पश्चिमी चीन के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक क़रीब तीन हज़ार किलोमीटर लंबा एक आर्थिक गलियारा है। यह हिमालय के कई इलाक़ों, पीओके और रेगिस्तान से होता हुआ ग्वादर के प्राचीन बंदरगाह तक पहुँचता है। चीन इस पर 62 अरब डॉलर खर्च कर रहा है।