आधी सदी से भी पहले ही बता दिया गया था, धंस जाएगा जोशीमठ
देहरादून
बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, बर्फ से लकदक औली, अद्भुत फूलों की घाटी और भारत के आखिरी गांव माणा का प्रवेश द्वार जोशीमठ धार्मिक और रोमांचक पर्यटन के एक अहम पड़ाव के रूप में मशहूर रहा है. इन दिनों वो अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. राज्य और केंद्र सरकारें हरकत में आ गईं हैं और स्थानीय लोग आंदोलन कर रहे हैं.
जोशीमठ की भूगर्भीय संवेदनशीलता के बारे में आधी सदी से भी ज्यादा समय से चिंताएं जताई जाती रही हैं. इन आशंकाओं से जुड़े प्रत्यक्ष निशान पिछले कुछ साल से सामने आने लगे थे. जोशीमठ के पड़ोसी गांव चांई में लोगों के मकान धंसने लगे, पहाड़ दरकने लगे और निचले इलाकों के घरों में दरारें उभरने लगी थीं. हैरानी की बात है कि चीन से जुड़ी सीमा के पास बसा जोशीमठ, जो कि सामरिक तौर पर इतनी महत्वपूर्ण लोकेशन पर है, वहां इन सब चिंताजनक संकेतों के बावजूद जल्द-से-जल्द समाधान खोजने की तत्परता नहीं दिखाई गई.
उत्तर प्रदेश से अलग होकर साल 2000 में उत्तराखंड का एक नए राज्य के तौर पर गठन हुआ. पिछले 20-22 साल में कांग्रेस और बीजेपी बारी- बारी से सत्ता में आई, लेकिन जोशीमठ पर मंडरा रहे खतरे और चेतावनियों के सभी स्वरों की कमोबेश अनदेखी की जाती रही. 2013 में आई केदारनाथ और बद्रीनाथ की भयंकर प्राकृतिक विपदाओं ने इस हिमालयी इलाके के संवेदनशील स्वभाव की ओर सबका ध्यान खींचा, लेकिन खतरे की वो घंटी भी जल्द भुला दी गई.
कितने घरों में दरार आई और क्या इंतजाम हुए
जोशीमठ नगरपालिका क्षेत्र को आपदाग्रस्त घोषित कर दिया गया है. जिला प्रशासन के मुताबिक जोशीमठ में करीब 3,900 मकान और 400 व्यापारिक इमारतें हैं. ये निर्माण सिर्फ ढाई वर्ग किलोमीटर के दायरे में हैं. 9 जनवरी को जारी सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि जोशीमठ नगर क्षेत्र में कुल 678 घरों में दरारें दिखी हैं. फिलहाल 81 परिवारों को अस्थायी रूप से दूसरी जगह ले जाया गया है.
लोगों को ठहराने के लिए अस्थायी निवास के तौर पर 213 कमरों को चिह्नित किया गया है.अनुमान है कि इनमें 1,191 लोग रह सकते हैं. इसके साथ ही नगरपालिका क्षेत्र से बाहर पीपलकोटी में 491 हॉल चिह्नित किए गए हैं, जिनकी क्षमता 2,205 है. प्रभावित परिवारों को जरूरत के हिसाब से खाने-पीने की किट और कंबल बांटे गए हैं. 53 प्रभावित परिवारों को जरूरी घरेलू सामान खरीदने के लिए पांच हजार रुपये की मदद दी गई है.
अस्थायी इंतजामों के अलावा सरकार एक दीर्घकालीन योजना पर भी काम कर रही है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि फौरी इंतजामों के अलावा दीर्घकालीन योजनाओं की प्रक्रिया को भी तेज किया जाना चाहिए. खतरे वाले इलाकों, सीवर लाइनों और नालियों की मरम्मत जल्द-से-जल्द पूरी की जानी चाहिए. ताजा संकट पर राज्य सरकार लगातार केंद्र के संपर्क में हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय भी अपने स्तर पर जोशीमठ के मामले पर नजर बनाए हुए है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विषय पर उच्च-स्तरीय बैठकें कर चुके हैं.
कई बार विशेषज्ञों ने किया सावधान
जोशीमठ नगरपालिका, उत्तराखंड के चमोली जिले में है. यहां जमीन धंसने और भूस्खलन की घटनाओं के कारणों की जांच के लिए 1976 में 18 सदस्यों की एक समिति गठित की गई. गढ़वाल मंडल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा इसकी अगुवाई कर रहे थे. समिति ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ को भूगर्भीय तौर पर अस्थिर बताया. समाधान के तौर पर कई पाबंदियां लागू करने और हालात को सही करने के उपाय भी सुझाए.
रिपोर्ट के मुताबिक, मिश्रा समिति ने भारी निर्माण कार्यों पर रोक लगाने, ढलानों पर कृषि कार्य को फौरन बंद करने, पेड़ न काटने, बारिश के पानी का रिसाव रोकने के लिए पक्की नालियां बनाने और नदी के तटों को छीजने से रोकने के लिए सीमेंट के ब्लॉक खड़े करने जैसे कई सुझाव दिए थे. लेकिन जोशीमठ में हुआ उल्टा. बेतहाशा निर्माण, आवाजाही और अंधाधुंध शहरीकरण ने एक पहाड़ी टीले पर बसे शहर को झकझोर कर रख दिया. अतिवृष्टियों और तपोवन बांध परियोजना की सुरंगों ने उसे जर्जर बनाने में सहयोग किया.
जोशीमठ स्थायी तौर पर टेक्टोनिक जोन में आता है और भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदनशील है.ये पहाड़ सिर्फ भूकंप के जोन पांच और जोन चार के भूगर्भीय संकट से नहीं घिरे हैं, वे गैर-कुदरती आफतों के लपेटे में भी हैं. भूगर्भीय रूप से नवजात पहाड़ियां भारी बारिश में दरकने लगती हैं, घाटियों में सघन बारिश जमा हो जाती है और मकान और मिट्टी का धंसाव शुरू हो जाता है, मानो कोई अदृश्य आरी इस गीली धरती को काट रही हो. नदियां इस मलबे से भर गई हैं. उनमें निर्माण का मलबा जमा है.
जोशीमठ के ऊपर की ओर स्कीइंग के लिए मशहूर औली का बर्फ से लदा पहाड़ है और नीचे धौलीगंगा और अलकनंदा का संगम. दोनों नदियां वेग से बहती हैं और ग्लेशियरों के पिघलाव की दर में तेजी आने से उनकी धारा और विकराल बन गई है. धौलीगंगा पर ही नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की बांध परियोजना बन रही है. जोशीमठ और आसपास की पहाड़ियों के भीतर बनी सुरंगों और पहाड़ काटने और सड़कें बनाने में डायनामाइट के इस्तेमाल ने भी लंबे समय से मध्य हिमालय के इन नाजुक कच्चे नए पहाड़ों को कमजोर किया है.