क्या समलैंगिक थे महाभारत काल के ये दो योद्धा? RSS चीफ मोहन भागवत ने क्यों किया जिक्र
नई दिल्ली
समलैंगिकता को लेकर इन दिनों पूरी दुनिया में बहस चल रही है। हालांकि भारतीय के ज्यादातर घरों में अभी इस मामले पर लोग बात नहीं करना चाहते। वहीं बहुत सारे लोग समलैंगिक लोगों को अछूत की तरह देखते हैं। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का रुख इस मामले में बदला-बदला दिखाई दिया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी समलैंगिकों से हमदर्दी जताई और कहा कि उन्हें भी समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के लिए यह कोई नया नहीं है। एलजीबीटीक्यू भी बायोलॉजिकल है औऱ यह जीवन जीन के एक तरीका है।
महाभारत के दो योद्धाओं का दिया उदाहरण
आरएसएस चीफ ने महाभारत काल के दो योद्धाओं का उदाहरण देते हुए यह बात बताने की कोशिश की कि इस तरह के संबंध हमारे देश में कोई नई बात नहीं है। उन्होंने जरासंध के दो सेनापति हंस और दिंभक का जिक्र किया। मोहन भागवत ने कहा, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अफवाह फैला दी कि हंस युद्ध में मारा गया है तो दिंभक ने यमुना नदी में कूदकर जान दे दी। दोनों ही सेनापति बहुत करीब थे। उन्होंने कहा, ऐसी प्रवत्ति के लोग जब से मनुष्य सभ्यता है तब से अस्तित्व में हैं।
हंस और दिंभक कौन थे
हंस और दिंभक जरासंध के सेनापति थे। जरासंध उन्हें अपना दाहिना हाथ मानता था। आइए पहले थोड़ा जरासंध के बारे में जान लेते हैं। मगध का राजा जरासंध मथुरा के राजा कंस के ससुर थे। जरासंध ने हजारों राजाओं को बंदी बनाया था। जब श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया और अपने नाना उग्रसेन को राजगद्दी दे दी तो जरासंध ने मथुरा पर सत्रह बार आक्रमण किया। उसके आक्रमण से तंग आकर ही श्रीकृष्ण मथुरावासियों समेत द्वारका चले गए थे। बाद में भीम ने जरासंध का मल्लयुद्ध में वध किया था। इसके बाद श्रीकृष्ण ने जरासंध के बेटे को राजा बना दिया और बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया।
क्या समलैंगिक थे हंस और दिंभक
हंस और दिंभक समलैंगिक थे या नहीं यह तो बहस का विषय है लेकिन उन दोनों की करीबी का उल्लेख कई ग्रंथों में किया गया है। इसीलिए जानकार कहते हैं कि उन दोनों के बीच का संबंध दोस्ती से भी ज्यादा कुछ था। महाभारत के सभापर्व के 14वें अध्याय में जरासंध और उनके सेनापति हंस व दिंभक का जिक्र आता है। कृष्ण भी महाभारत में उन दोनों की बहादुरी की चर्चा युधिष्ठिर से करते हैं और कहते हैं. अगर वे दोनों ही योद्धा जीवित होते तो जरासंध तीनों लोकों को हरा सकता था। यह मैं ही नहीं कह रहा अपितु सभी राजा यह बात मानते हैं।
जब श्रीकृष्ण और जरासंध के बीच सत्रवां युद्ध हो रहा था तो बलराम और हंस के बीच भयंकर युद्ध होने लगा। इसी बीच सैनिकों ने शोर मचा दिया कि हंस का वध हो गया। यह सुनकर दिंभक को इतना दुख हुआ कि दिंभक ने यमुना में कूदकर अपने प्राण दे दिया। आत्महत्या की बात जब हंस को यह बात पता चली तो वह भी मारा गया। हालांकि उन दोनों के संबंध के बारे में कोई स्पष्ट बात नहीं कही गई है। हरिवंश पुराण में दोनों को भाई बताया गया है। महाभारत में हंस और दिंभक के बारे में कहा गया है, हतो हंस इति प्रोक्तमथ केनापि भारत। तत्छुत्वा डिंभको राजन् यमुनाम्भस्यमज्जत।। यानी हे भारत! देखो, किसी सैनिक ने चिल्लाकर कहा हि हंस मारा गया है। राजन्, उसकी बात कान में पड़ते ही दिंभक उसे मरा हुआ जान यमुना में कूद पड़ा। बिना हंसेन लोकेस्मिन नाहं जीवितुमुत्सहे। इत्येतां मतिमास्थाय दिंभको निधनं गतः।। यानी, मैं हंस के बिना संसार में जीवित नहीं रह सकता। ऐसा कहकर दिंभक ने आत्महत्या कर ली। महाभारत में कहा गया है कि इसके बाद हंस ने भी यमुना में कूदकर जान दे दी। इसके बाद जरासंध हताश होकर अपने नगर को लौट गया।
मनुस्मृति में सजा के प्रावधान
मुस्मृति के आठवें अध्याय नेक 367 से 372 श्लोक में समलैंगिकता के लिए सजा का जिक्र किया गया है। इसमें इस तरह की सजाएँ हैं कि अग कोई युवती दूसरी युवती से संबंध बनाती है तो उसपर सौ सिक्कों का जुर्माना और दस कोड़े लगाए जाएंगे। वहीं कोई अधेड़ महिला ऐसा करती है तो उसका सिर मुंडवाकर गधे पर बैठाया जाएगा। आरएसएस ने भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह वे समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते लेकिन ऐसे विवाह प्राकृतिक नहीं हैं इसलिए इनका समर्थन नहीं किया जा सकता। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त करते हुए इसे गैरआपराधिक करार दिया था।