वाह असम! 200 सालों से दे रहा चाय की चुस्की का मजा, खूबसूरत बागानों में जश्न का माहौल
नई दिल्ली
कड़ाके की सर्दी और हाथ में चाय की प्याली की इच्छा हर किसी को होती है। आपकी हर चाय की चुस्की में असम की खुशबू जरूर होती है। देश में चाय की खेती अगर कहीं सबसे ज्यादा होती है तो वो है असम। असम में न जाने कितने सालों से चाय की खेती हो रही है और हर साल आमदनी में भारी इजाफा हो रहा है। असम में चाय के 200 साल पूरे होने पर चाय उत्पादकों ने जश्न मनाना शुरु कर दिया है।
आजीविका का साधन
अपनी समृद्ध रंगीन और सुगंधित चाय के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध असम का चाय उद्योग देश का सबसे बड़ा उद्योग है। असम का चाय उद्योग लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है। असम की बड़ी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चाय बागानों पर निर्भर हैं। असम ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी (क्रश, टियर, कर्ल) दोनों प्रकार की चाय के लिए प्रसिद्ध है। आज की स्थिति में, असम सालाना लगभग 700 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन करता जो कि भारत के कुल चाय उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा है। राज्य 3,000 करोड़ रुपये के बराबर अनुमानित वार्षिक विदेशी मुद्रा आय भी कमाता है। भारत कुल मिलाकर वैश्विक चाय उत्पादन में 23 प्रतिशत का योगदान देता है और चाय बागान क्षेत्र में लगभग 1.2 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देता है।
ऐसे हुई थी भारत में चाय की खोज
साल 1823 में स्कॉटिश रॉबर्ट ब्रस ने एक देसी चाय के पौधे की खोज की थी। ये पौधा ऊपरी ब्रह्मापुत्र घाटी में स्थानीय सिंघपो जनजाती द्वारा उगाई जा रही थी। इसके बाद, तत्कालीन लखीमपुर जिले में 1833 में सरकार द्वारा एक चाय बागान शुरू किया गया था। 1823 से लेकर अब तक भारतीय चाय विश्व भर में मशहूर है। असम चाय उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य है और यहां की चाय विदेशों में बेची जाती है। असम में चाय के उद्योग को अब 200 साल पूरे हो चुके हैं।
200 साल पूरे होने का जश्न
असम में चाय उद्योग को 200 साल पूरे हो चुके हैं। असम चाय के 200 साल पूरे होने का जश्न मनाने का पहला कार्यक्रम पिछले हफ्ते जोरहाट में हुआ। इसका आयोजन नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA)के बैनर तले किया गया था। इस अवसर पर, चाय शोधकर्ता और लेखक प्रदीप बरुआ द्वारा लिखित पुस्तक 'टू हंड्रेड इयर्स ऑफ़ असम टी 1823-2023: द जेनेसिस एंड डेवलपमेंट ऑफ़ इंडियन टी' का विमोचन किया गया। यह पुस्तक असम के चाय उद्योग की संपूर्ण 200 साल की यात्रा का इतिहास बताती है। इसके साथ ही अब चाय की खेती को पढ़ाई के रुप में भी शुरु किया जाएगा।