श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को भीष्म से पांडवों को दिलवाया था अभयदान
महाभारत का कथानक अनेक रोचक और प्रेरक प्रसंगों से भरा हुआ है। जो काफी प्रेरणादायी होने के साथ जीवन संघर्ष में इंसान के हौंसले में भी इजाफा करते हैं। इन कथाओं को मानव जीनव में आत्मसात करने से इंसानी जीवन की कई कठिनाइयों का स्वत: अंत हो जाता है।
दिल को छू जाने वाला एक ऐसा ही वाकया महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था। महाभारत का युद्ध प्रारंभ हो चुका था। दोनों ओर के योद्धाओं के शव रणभूमि में गिर रहे थे। चारों तरफ जहां तक नजरे जाती थी शवों के ढेर दिखाई दे रहे थे। कौरव और पांडव दोनों पक्षों के सैनिक वीरगति को प्राप्त हो रहे थे, लेकिन इस युद्ध के शुरूआती दौर में कौरव पक्ष को भारी हानि उठाना पड़ रही थी। पांडवों के युद्धकौशल के आगे कौरव सैनिकों के शवों के ढेर लग गए थे।
दुर्योधन का भीष्म को उलाहना
पांडव सेना जिस तरह मौत का तांडव दिखा रही थी इससे कौरव महारथी चिंता करने लगे। उस वक्त कौरव खेमे के प्रधान सेनापति की कमान पितामह भीष्म के हाथों में थी। कौरव शिविर में महारथी इस बात पर चिंता जता रहे थे की कौरव पक्ष में ज्यादा क्षति हो रही है, ऐसे में दुर्योधन ने पितामह भीष्म को उलाहना दिया और कहा कि पितामह जान-बूझकर पांडवों के लिए नर्म रुख रख रहे हैं।
दुर्योधन की बातों से आहत होकर पितामह पांडवों के वध की घोषणा कर देते हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण चिंता में डूब जाते है और पांडवों की सुरक्षा का उपाय निकालते हैं। श्रीकृष्ण पांचाली से कहते हैं कि द्रौपदी अभी मेरे साथ चलो और उनको लेकर सीधे पितामह भीष्म के शिविर में पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण ने शिविर के बाहर खड़े होकर पांचाली से कहा कि अंदर जातर पितामह को प्रणाम करो और उनका आशीर्वाद लो।
भीष्म का द्रौपदी को आशीर्वाद
पांचाली के प्रणाम करते ही पितामह ने उनको अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने द्रौपदी से पूछा कि वत्स इतनी रात को तुम यहां पर कैसे आई? क्या तुमको श्रीकृष्ण यहां पर लेकर आए हैं। द्रौपदी ने कहा हां। तब भीष्म ने कहा कि मेरे एक वचन को दूसरे से काटने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं। इतना कहकर वो शिविर से बाहर आए और श्रीकृष्ण के गले लग गए।
इसके बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि एक बार पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पांचों पतियों को जीवनदान मिल गया। इसी तरह यदि तुम रोजाना पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र के साथ दु्र्योधन और दुशासन की पत्नियों को भी प्रणाम करती तो आज यह रणभूमि रक्त से लाल नहीं होती और महाभारत युद्ध की नौबत नहीं आती।
इस कहानी का सार यह है कि बड़े-बुजुर्गो को सम्मान देने और उनका आशीर्वाद लेने से बड़े से बड़े कष्टों का हरण हो जाता है। इसलिए अपने वरिष्ठों की कभी अवहेलना नहीं करना चाहिए और उनको हमेशा मान-सम्मान देना चाहिए।