मेघालय-नागालैंड से एकदम अलग है त्रिपुरा की राजनीति, भाजपा के लिए क्या हैं चुनौतियां
नई दिल्ली
चुनाव आयोग ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव की ताारीखों का ऐलान कर दिया है। त्रिपुरा में 16 फरवरी को वोटिंग होगी वहीं बाकी दो राज्यों में 27 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। 2 मार्च को तीनों राज्यों के परिणाम एक साथ घोषित किए जाएंगे। आइए जानते हैं कि इन राज्यों में क्या समीकरण हैं।
तीनों राज्यों में ही भाजपा या सहयोगियों की सरकार
इन तीनों ही राज्यों में भाजपा या उसके गठबंधन की सरकार है त्रिपुरा में भाजपा का मुख्यमंत्री है। वहीं मेघालय में कोनराड संगमा की नेशनल पीपल्स पार्टी और नागालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सरकार में है, भाजपा जिनकी सहयोगी है। 2018 के चुनाव की बात करें तो मेघालय और नागालैंड की तुलना में त्रिपुरा में भाजपा का सीट शेयर ज्यादा था। त्रिपुरा में भाजपा का वोट शेयर 59.3 फीसदी था। वहीं वोट शेयर 43 फीसदी था। भाजपा त्रिपुरा पर ही सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है।
मेघालय और नागालैंड से अलग है त्रिपुरा
त्रिपुरा हिंदू बहुल राज्य है। यहां 84.5 फीसदी हिंदू हैं। वहीं नागालैंड और मेघालय ईसाई बहुल राज्य हैं। इन दोनों के बाद मिजोरम का नंबर आता है। हालांकि इससे यहां की राजनीति में बहुत फर्क नहीं पड़ता। त्रिपुरा की राजनीति में बंगाली भाषा और आदिवासियों के नाम पर ध्रुवीकरण होता रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक त्रिपुरा के 65 फीसदी लोग बंगाली बोलते थे। वहीं जनगणना में पाया गया था कि यहां की 31 फीसदी आबादी आदिवासी है। नागालैंड और मेघालय में भी कई ट्राइब रहती हैं।
त्रिपुरा में भाजपा के लिए क्या है चुनौती
त्रिपुरा ही ऐसा राज्य है जहां की तीन राजनीतिक पार्टियों का सिक्का राज्य के बाहर भी चलता है। हालांकि भाजपा राज्य में वापसी की पूरी कोशिश में है। वहीं कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) गठबंधन करके भाजपा को सत्ता से बाहर करने का प्लान बना रही हैं। 1983 से 2018 तक यहां इन्हीं पार्टियों का शासन रहा है। हालांकि 2018 में भाजपा के गठबंधन से करारी हार का सामना करना पड़ा। अभी के अनुमान के मुताबिक भाजपा दोनों विपक्षी दलों से काफी आगे है।
क्या कहता है मेघालय और नागालैंड का चुनावी इतिहास
नागालैंड और मेघालय के चुनावी इतिहास की बात करें तो यहां दल बदल की राजनीति बहुत चलती है। इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री भी हमेशा एक ही दल में नहीं रहे हैं। बीते चुनाव के दौरान भी इन दोनों राज्यों में सबसे ज्यादा नेताओं ने दल बदले थे। टीसीपीडी ने तो इसका क्राइटीरिया भी बना दिया है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मेघालय और नागालैंड की राजनीति में पार्टी से ज्यादा व्यक्ति मायने रखने लगता है। यहां की जनता भी इस बात की आदी है और वह इसे बुरा नहीं मानती है।