September 23, 2024

राज्य के सूखा प्रभावित गांवों में भू-जल स्त्रोतों को चिन्हित करने सेटेलाईट रिमोट सेंसिंग से होगी मैपिंग

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रायपुर
छत्तीसगढ़ राज्य के ऐसे इलाके जहां भू-जल स्तर की स्थिति अच्छी नहीं है, उन इलाकों में ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग के स्ट्रक्चर और सस्टनेबल ग्राउंड सोर्स का चिन्हांकन किया जाएगा, ताकि उन इलाकों में भू-जल संवर्धन के साथ-साथ पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था को बेहतर किया जा सके। छत्तीसगगढ़ सरकार द्वारा राज्य के सूखा मूलक गांवों में भू-जल विकास और उपयुक्त ग्राउंड वाटर सोर्स की पहचान करने के लिए अंतरिक्ष आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करने की पहल शुरू कर दी है। इसको लेकर छत्तीसगढ़ तकनीकी विश्वविद्यालय भिलाई और छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद केन्द्र के छत्तीसगढ़ अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के मध्य एमओयू हुआ है। एमओयू हस्ताक्षर के दौरान छत्तीसगढ़ तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एम.के. वर्मा, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डॉॅ. एस. कर्मकार, परियोजना संचालक अन्वेषक वैज्ञानिक एम. के. बेग एवं वैज्ञानिक अखिलेष त्रिपाठी उपस्थित थे।

गौरतलब है कि तकनीक का बेहतर उपयोग सूखे की स्थिति से निपटने के लिए मददगार साबित हो सकता है। छत्तीसगढ़ के सूखा प्रभावित गांवों में भूजल विकास के लिए उच्च रिजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग आधारित उपर्ग्रह चित्रों का उपयोग कर सूक्ष्म स्तरीय हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन किया जायेगा। इसकी मदद से सूखा प्रभावित गांवों की मैपिंग की जाएगी। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं परियोजना अन्वेषक एम. के. बेग ने बताया कि इसके उपयोग से 1:10,000 स्केल पर मानचित्रण का कार्य किया जायेगा। पीएचई द्वारा ग्राम स्तरीय मानचित्रण के लिए 14 ब्लॉकों की पहचान की गई है, जिसके लिए रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस तकनीकी के माध्यम से ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग स्ट्रक्चर का चिन्हांकन किया जाएगा।

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा इन मानचित्रों का उपयोग नये भू-जल स्त्रोतों के सृजन करने में भी किया जायेगा ताकि सूखा प्रभावित गांवों में ग्राउंड वाटर रिसोर्स की पहचान कर समस्या का समाधान किया जा सके। उपग्रह आंकड़े किसी क्षेत्र के भू-भाग में भू-जल उपलब्धता की स्थिति का एक संक्षिप्त चित्र उपलब्ध कराते हैं, जो किसी अन्य माध्यम या तकनीकी से संभव नहीं है। यह सूचना समय तथा मूल्य प्रभावी होने के साथ-साथ अधिक सटीक होती है उपग्रह चित्रों के प्रयोग द्वारा क्षेत्रीय नियंत्रण के साथ संरचनात्मक सूचनाओं का आसानी से सीमांकन किया जा सकता है।

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