November 26, 2024

देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 4.90 करोड़ – केंद्रीय कानून मंत्री

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नई दिल्ली
 केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बयान दिया है कि देश की विभिन्न अदालतों में आज कुल लंबित मामलों की संख्या 4.90 करोड़ है।

उन्होंने कहा कि न्याय में देरी का मतलब न्याय से इंकार करना है। मामलों की इस देरी को कम करने का एकमात्र तरीका सरकार और न्यायपालिका का एक साथ आना है। तकनीक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

एक कार्यक्रम के दौरान रिजिजू ने कहा, 'RAW और IB की गुप्त और संवेदनशील रिपोर्ट को सामने लाना चिंता की बात है। इस पर कुछ समय में विचार किया जाएगा।' दरअसल, हाल ही में कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति से जुड़ी RAW और IB की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया था। कहा जा रहा था कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने चार दिनों तक विचार करने के बाद रिपोर्ट सार्वजनिक की थी।

संवेदनशील क्यों?
दरअसल, कॉलेजियम जिन नामों को सिफारिश भेजती है जज बनाने के लिए, सरकार उनके नामों को आईबी के पास भेजती है रिकॉर्ड आदि चेक करने के लिए। वहां से क्लीरियेंस मिलने के बाद ही सरकार नाम पर मुहर लगाती है। वहीं, अगर सरकार को आपत्ति है, तो जज के संदिग्ध रिकॉर्ड का हवाला देकर फाइल को वापस भेज दिया जाता है।

लंबित मामलों पर चिंता
केंद्रीय मंत्री ने अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता जाहिर की और कहा कि न्याय में देरी का मतलब न्याय से इनकार करना है। उन्होंने कहा, 'आज कुल लंबित मामलों की संख्या 4.90 है। न्याय में देरी का मतलब न्याय से इनकार करना है। लंबित मामलों को कम करने का एक ही तरीका है कि सरकार और न्यायपालिका साथ आ जाएं।'

उन्होंने कहा, 'सरकार और न्यायपालिका के साझा प्रयास देश में लंबित मामलों की संख्या कम करने में मदद करेंगे। तकनीक इसमें अहम भूमिका निभा सकती है।'

'सरकार, न्यायपालिका के बीच कोई 'महाभारत' नहीं, कोई समस्या नहीं है'
भाषा के अनुसार, रिजिजू ने सोमवार को कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं और 'महाभारत' हो रही है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 'हमारे बीच कोई समस्या नहीं है।' उन्होंने सवाल किया कि अगर लोकतंत्र में बहस या चर्चा नहीं होगी तो यह कैसा लोकतंत्र होगा। रिजिजू ने सोमवार को तीस हजारी अदालत परिसर में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में कहा कि चूंकि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन लोग उन्हें देखते हैं और न्याय देने के तरीके से उनका आकलन करते हैं।

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