भारत ने डॉलर को दिया बड़ा झटका, रूसी तेल खरीदने के लिए अब इस देश करेंसी में शुरू किया भुगतान
नई दिल्ली
किसी दूसरी करेंसी में तेल खरीदने को लेकर भारत और रूस के बीच काफी लंबे अर्से से बातचीत चल रही थी, लेकिन अब भारत सरकार के सूत्रों ने कहा है, कि दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए एक नये मैकेनिज्म पर बात बन गई है। दिप्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की जानकारी रखने वाले चार सूत्रों ने कहा है, कि भारतीय रिफाइनर्स ने संयुक्त अरब अमीरात की करेंसी, दिरहम में दुबई स्थिति व्यापारियों के माध्यम से रूसी तेल के एक बड़े हिस्से का भुगतान करना शुरू कर दिया है।
डॉलर को बहुत बड़ा झटका
भारत और रूस के बीच दिरहम में शुरू हुए ट्रेड से अमेरिकी करेंसी डॉलर को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि अब चीन, ईरान और सऊदी अरब समेत कई ऐसे देश हैं, जो अपने स्थानीय करेंसी में व्यापार के नये तंत्र को विकसित करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। इससे बाजार में डॉलर की दादागीरी को बड़ा नुकसान होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, मॉस्को के खिलाफ लगाए गये पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को भारत मान्यता नहीं देता है, हालांकि भारत उन प्रतिबंधों का उल्लंघन भी नहीं करता है, लेकिन भारत और रूस के बीच पिछले साल से ही रुपया-रूबल व्यापार मैकेनिज्म को बनाने पर बात चल रही है, जो अभी तक फाइनल नहीं हो पाई है।
भारतीय व्यापारियों की क्या थी चिंता?
दरअसल, भारतीय रिफाइनर्स और व्यापारियों को इस बात को लेकर चिंता थी, कि अगर रूस कच्चे तेल की कीमत को जी-7 देशों के लगाए प्राइस कैप (60डॉलर प्रति बैरल) से महंगा कर देता है, तो फिर वो डॉलर में भुगतान करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे, क्योंकि ये सीधे तौर पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का उल्लंघन करता है। लिहाजा, भारत सरकार भी भारतीय व्यापारियों के लिए किसी ऐसे विकल्प की तलाश में थी, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के जवाब में अपनी अर्थव्यवस्था को डी-डॉलर करने के रूस के प्रयासों में भी सहायता कर सकता है। दुबई स्थिति बैंकों के माध्यम से भारतीय रिफाइनरों द्वारा रूसी कच्चे तेल के लिए दिरहम में व्यापारियों को भुगतान करने के पिछले प्रयास फेल हो गये थे, जिसकी वजह से भारतीय ट्रेडर्स को मजबूरी में फिर से डॉलर का ही सहारा लेना पड़ा था, लेकिन अब नये तंत्र से भुगतान की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
किस तरह की है लेनदेन की प्रक्रिया?
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है, कि भारतीय स्टेट बैंक, अब दिरहम में किए जाने वाले भुगतानों को मंजूरी दे रहा है और उन्होंने ट्रांजेक्शन के डिटेल्स भी दिखाए हैं, जो पहले रिपोर्ट नहीं किया गया था। हालांकि, दिप्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय स्टेट बैंक, जिसके अमेरिका में भी ब्रांच हैं, उसने दिरहम में होने वाले भुगतान को लेकर अभी तक पूछे गये सवालों का जवाब नहीं दिया है। आपको बता दें, कि डॉलर में भुगतान करने की प्रक्रिया इसलिए परेशानी उत्पन्न कर रही थी, क्योंकि G7 ने पिछले साल 5 दिसंबर से रूसी तेल की कीमत पर प्राइस कैप लगा दिया था, और अगर कोई खरीददार 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की कीमत पर रूसी तेल खरीदता है, तो ना सिर्फ उस प्राइस कैप का उल्लंघन होता है, बल्कि खरीददार को ना तो पश्चिमी देशों की बीमा कंपनियों से उस खरीददारी के लिए इंश्योरेंस मिलता और ना ही उस तेल के ट्रांसपोर्टेशन के लिए पश्चिमी देशों के जहाज। जबकि, भारत और चीन ने अभी तक जी7 देशों के लगाए प्राइस कैप को मान्यता नहीं दी है। फिर भी, भारतीय कंपनियों के लिए डॉलर में व्यापार करना काफी मुश्किल हो गया था। दिरहम में व्यापार, प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं भारतीय स्टेट बैंक की अनुमति से संयुक्त अरब अमीरात की करेंसी दिरहम में रूसी तेल के लिए भुगतान करना, ना सिर्फ जी-7 के प्राइस कैप से बचाता है, बल्कि किसी भी तरह के पश्चिमी प्रतिबंधों को भी दरकिनार करता है। सूत्रों में से एक ने कहा, कि "एसबीआई अपने दृष्टिकोण में बहुत रूढ़िवादी है," भले ही भारत ना तो प्राइस कैप को मान्यता देता है और ना ही ट्रांसपोर्टेशन के लिए भारतीय कंपनियां पश्चिमी देशों की बीमा कंपनियां का इस्तेमाल करती हैं और ना ही शिपिंग कंपनियों का।
भारतीय रिफाइनर आमतौर पर व्यापारियों से रूसी तेल उस कीमत पर खरीदते हैं, जिसमें भारत में डिलीवरी शामिल है। नया मैकेनिज्म हो रहा विकसित दिरहम में व्यापार करने के अलावा भारत और रुस, रुपया और रूबल में भी व्यापार तंत्र विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं। चार सूत्रों ने कहा है, कि भारतीय रिफाइनर शिपिंग के दौरान उत्पन्न होने वाले किसी भी जोखिम को कम करने के लिए रूसी तेल खरीद रहे हैं, और अब तक लोडिंग के प्वाइंट पर जो कैलकुलेशन्स की गई हैं, उससे पता चलता है, कि भारत प्राइस कैप से नीचे का दाम देकर रूसी तेल खरीद रहा है। यानि, संभावना है, कि भारत 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत में रूसी तेल खरीद रहा है। भारतीय रिफाइनर, ज्यादातर दुबई स्थित व्यापारियों से रूसी क्रूड खरीदते हैं, जिसमें एवरेस्ट एनर्जी और लिटास्को शामिल हैं, जो रूसी तेल प्रमुख लुकोइल की एक इकाई है।