राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के खिलाफ विपक्ष का ‘महागठबंधन’ कितना मजबूत?
तुर्की
तुर्की में होने वाले चुनाव से पहले देश की राजनीतिक स्थिति काफी गर्म है और मतदाताओं का मन मोहने के लिए नेताओं के बीच रस्साकसी जारी है। ये ठीक उसी तरह का है, जैसा भारत या फिर किसी अन्य लोकतांत्रिक देशों में होता है, जहां नेताओं के बीच नोंकझोंक, टिका-टिप्पणियां होती हैं, आरोप-प्रत्यारोप होता है और चूंकी तुर्की भी अभी तक मुस्लिम बहुल आबादी वाला सेक्युलर देश है, लिहाजा इस देश में भी धर्म की राजनीति होती है, जो इस बार काफी तेज रफ्तार से हो रही है।
तुर्की में चुनाव से पहले राजनीति तेज
तुर्की में छह विपक्षी दल, जिन्हें "टेबल ऑफ सिक्स" कहा जाता है, वो इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के खिलाफ एकजुट हैं। ये एक तरह का महागठबंधन की तरह ही है, जिसने पिछले सोमवार को अर्दोआन के शासन को समाप्त करने, तुर्की के राष्ट्रपति की शक्तियों को प्रतिबंधित करने और लोकतांत्रिक अधिकारों का विस्तार करने के अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा की है। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है, कि क्या वे 14 मई को होने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों में एक उम्मीदवार को खड़ा करने के लिए सहमत होंगे या नहीं? ये कुछ कुछ भारत जैसा ही है, जहां कई पार्टियां गठबंधन तो कर लेती हैं, लेकिन फिर किस पार्टी का प्रधानमंत्री बनेगा, इसको लेकर सहमति नहीं बन पाती है।
क्या अर्दोआन के खिलाफ विपक्ष रह पाएगा एकजुट?
तुर्की की 6 मुख्य विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर राष्ट्रपति पद के लिए एक उम्मीदवार के ऐलान कर पाएंगी या नहीं, ये तुर्की की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी कुर्द एचडीपी पार्टी और उसके द्वारा लिए जाने वाले फैसलों पर निर्भर करता है , जिसे छह पार्टियों के गठबंधन में तो शामिल होने के लिए नहीं कहा गया है, लेकिन माना जा रहा है, कि इस पार्टी के वोटर राष्ट्रपति अर्दोआन को वोट नहीं डालने वाले हैं। तुर्की में संसदीय और राष्ट्रपति चुनाव एक ही दिन होंगे और अभी तक जो सर्वेक्षण किए गये हैं, उनसे पता चलता है, कि ये चुनाव काफी कड़ा होने वाला है, इसलिए काफी संभावना है, कि चुनाव के दूसरे दौर भी हो सकते हैं। कुछ चुनावी सर्वे के मुताबिक, राष्ट्रपति अर्दोआन के एकेपी और देवलेट बाहसेली के एमएचपी के गठबंधन को 40 फीसदी वोट मिलने की उम्मीद है, जबकि छह विपक्षी दलों के गठबंधन को भी इतने ही वोट मिलने के अनुमान हैं।
क्या विपक्ष उतार पाएगा संयुक्त उम्मीदवार?
छह विपक्षी दलों ने चुनाव लड़ने के लिए 13 फरवरी को एक संयुक्त उम्मीदवार की घोषणा करने का वादा किया है और तुर्की के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि यह पिछले 20 सालों में सबसे महत्वपूर्ण ऐलान होगा, क्योंकि अगर वाकई ऐसा होता है, तो फिर सत्ता से अर्दोआन का राज खत्म हो सकता और इसके परिणामस्वरूप, तुर्की में लोकतंत्र का पतन होने के साथ साथ ये पार्टियां, अर्दोआन की आर्थिक नीतियों को पलटकर रख देंगे, वहीं ये पार्टियां देश की सेन्ट्रल बैंक के ऊपर से सरकार के नियंत्रण को भी खत्म कर देंगे, जैसा कि इन्होंने सामूहिक संकल्प किया हुआ है।
अर्दोआन का राजनीतिक सफर
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और अपने इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण को काफी बढ़ावा दिया है। अर्दोआन ने अपने राजनीतिक कैरियर का बड़ा ब्रेक साल 1994 में पाया था, जब वो राजधानी इंस्ताबुल के मेयर बने थे और फिर उन्होंने साल 2001 में एकेपी पार्टी की स्थापनी की और साल 2002, 2007 और 2011 के राष्ट्रपति चुनाव में भारी जीत हासिल की। अर्दोआन ने 2003 से 2017 तक प्रधानमंत्री के रूप में काम किया और फिर उन्होंने देश की संसदीय प्रणाली को ही बदल दिया और उन्होंने देश के शासन को राष्ट्रपति केन्द्रित करते हुए एक संवैधानिक जनमत संग्रह पेश किया, जिसमें वो सफल भी रहे और साल 2018 बाद से अर्दोआन एक कार्यकारी अध्यक्ष हैं, जो तुर्की में लगभग सभी संस्थानों – सेना, विधायिका, स्थानीय सरकार, लोक प्रशासन, सार्वजनिक विश्वविद्यालयों, मीडिया के साथ-साथ न्यायपालिका को नियंत्रित करते हैं।