लोकमया के कलाकार वर्मा ने कहा छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में लाने सभी सांसद दें एकजुटता का परिचय
राजिम
राजिम माघी पुन्नी मेला में दूसरे दिन लोकमया कुम्हारी के लोक कलाकार महेश वर्मा मीडिया से मुखातिब होते हुए चर्चा के दौरान कहा कि छत्तीसगढ़ की लोककला अत्यंत समृद्ध है, इसे धूमिल होने से बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। द्विअर्थी शब्द का उपयोग करना आज के समय में ठीक नहीं है। प्रदेश सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बढ़ाने का बहुत बढिया काम कर रही है। उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि जिस तरह से छत्तीसगढ़ राज्य के लिए सभी सांसदों ने एकजुटता का परिचय दिया। उसी तरह से छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में दर्ज कराने के लिए चाह वह किसी भी दल के हो एक साथ मिलकर आवाज उठानी चाहिए। देश में ही छोटे-छोटे राज्यों की अपनी अलग भाषा है जिसे संविधान ने मान्यता दी है। छत्तीसगढ़ तो बड़ा राज्य है निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज कर इनका मान बढ़ावें।
श्री वर्मा ने आगे कहा कि 70 के दशक में लगातार खड़ी साज नाचा मंडली में रात-रातभर जागकर प्रस्तुति देते थे। उससे जो इनकम होती थी घर चलाना मुश्किल होता था। अचानक लोककला मंच की ओर रूझान बढ़ा। चूंकि हमारे परिवार में सभी लोग संगीत के क्षेत्र से जुड़े हुए है। लोक नाट्य विधा के जरिए अभिनेता अमरिशपुरी, रजा मुराद के साथ में काम करने का सौभाग्य मिला। अभिनय के क्षेत्र में रामलीला के माध्यम से लगातार सैकड़ों मंच किये। इससे मुझे कहां पर क्या बोलना है और किस तरह से बॉडी लेंग्वेज होनी चाहिए सारी जानकारियां मिली। आज भी बॉलीवुड के तमाम् बड़े कलाकार गांव से ही पैदा हुए है। दूरदर्शन के कल्याणी कार्यक्रम के अलावा कृषि जैसे अनेक एपिसोड में दर्शकों का भरपूर प्यार मिला। 50 से ज्यादा पटकथा लेखन के अलावा गीत, कविता आदि ने मेरे आत्मविश्वास को मजबूत किया है। श्रीवर्मा ने कहा कि नये कलाकार को संस्कृति से संबंधित प्रस्तुति पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। संस्कृति और संस्कार से ही हमारी पहचान है। मेरे बड़े भाई परदेशीराम वर्मा का हर समय सपोर्ट मिलता रहता है। जीवन में कब क्या हो जाए पता नहीं लेकिन जब तक रहे अच्छे कार्य करें। इतिहास बनाने के लिए एक अच्छी सोच काफी है। वह माघी पुन्नी मेला के व्यवस्था से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए।
कैंसर के चौथे स्टेज पर
महेश वर्मा ने बताया कि वह कैंसर बीमारी के चौथे स्टेज पर है लेकिन उन्हें कोई चिन्ता नहीं है। वह पूरे उत्साह के साथ लोककला की प्रस्तुति दे रहे थे। नये कलाकारों को आगे बढने के लिए हमेशा प्रेरित करते है। उन्होंने बताया कि कलाकार वह होता है। उनके घर में उनकी जरूरत हो लेकिन वह मंचों में रिझाने का काम करते रहते है। कला तप है और कलाकार हमेशा तपस्या करते रहते है।