November 27, 2024

अमेरिका में भी वर्ण व्यवस्था की जरूरत, RSS प्रमुख के बयान पर बोले शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती

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 नई दिल्ली 

पंडितों और जाति व्यवस्था को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर अब पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने आपत्ति जताई है। एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान  उन्होंने कहा कि वर्ण व्यवस्था ब्राह्मणों का उपहार है। उन्होंने कहा कि सभी सनातनी हिंदुओं के पूर्वज ब्राह्मण ही थे। वह जगदलपुर के लाल बाग में आयोजित तीन दिन के धार्मिक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे थे। 

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, पहले ब्राह्मण का नाम है ब्रह्मा जी। आप ग्रंथों को पढ़ें। सारे विज्ञान और कलाओं का वर्णन ब्राह्मणों ने ही किया। शिक्षा, रक्षा और अन्य सेवाओं के बीच में संतुलन आवश्यक है। अगर हम सनातन व्यवस्था को नहीं मानेंगे तो कई व्यवस्था ही नहीं रह जाएगी। आरएसएस की ना तो कोई अपनी किताब है और ना ही पुस्तकों का ज्ञान है। वर्ण व्यवस्था पंडितों ने बनाई थी, मूर्खों ने नहीं। अब भी लोग अपनी समस्या लेकर भारत के ब्राह्मणों के पास आते हैं। यूएन की समस्याएं भी हमारे पास आकर हल होती हैं। उन्होंने कहा, अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में भी जातीय व्यवस्था बनाने की जरूरत है क्योंकि वहां सनातन धर्म का उतना प्रभाव नहीं है। उन्होंने कहा, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में वर्ण व्यवस्था नहीं है लेकिन वहां भी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों का विकल्प बनाने की जरूरत है। 

'मोदी नहीं हैं हिंदुत्व के पक्षधर'
शंकराचार्य ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हिंदुत्व के पक्षधर नहीं हैं। जिस दिन वह गो-रक्षकों को गुंडा कहना छोड़ देंगे उस दिन उन्हें हिंदुओं का पक्षधर माना जाएगा। उन्होंने कहा कि, मोदी कूटनीति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं लेकिन उन्हें कभी खुद का निरीक्षण करना चाहिए। वहीं उन्होंने योगी आदित्यनाथ की तारीफ की। उन्होंने कहा कि योगी में अनुशासन है और शासन करने की क्षमता है। 

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर क्या बोले शंकराचार्य
स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हिंदुत्व को बचा रहे हैं। इस बारे में अगर जानना है तो उनके पास जाना चाहिए। बता दें कि आरएसएस चीफ के बयान पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी सवाल उठाया था औऱ कहा था कि गीता में भगवान ने खुद ही कहा कि वर्ण उन्होंने बनाए हैं। 

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