अडाणी की ही तरह था डालमिया ग्रुप, राहुल गांधी के दादा के एक खुलासे से डूब गया था आर्थिक साम्राज्य
नई दिल्ली
अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट की आंच में आज अडाणी समूह भले ही बैकफुट पर आकर फिर से संभलने की कोशिश कर रहा हो लेकिन आज से सात दशक पहले संसद में एक खुलासे ने तत्कालीन भारत के तीसरे सबसे बड़े व्यापारिक घराने को डुबो दिया था।
बात 6 दिसंबर, 1955 की है। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। उनके दामाद फिरोज गांधी (इंदिरा गांधी के पति और राहुल गांधी के दादा) तब रायबरेली से सांसद थे। उन्होंने उस दिन लोकसभा में देश के बड़े औद्योगिक समूह डालमिया-जैन ग्रुप की वित्तीय अनियमितता को उजागर किया था। फिरोज गांधी के इस खुलासे के बाद ही देश के जीवन बीमा उद्योग के राष्ट्रीयकरण की शुरुआत हुई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, डालमिया-जैन ग्रुप या डीजे समूह भी आज के अडाणी ग्रुप की तरह ही था, जिसने स्थायी संपत्ति बनाकर बिजनेस को आगे बढ़ाया था। उस समूह ने तब बिहार में ही टाटा जमशेदपुर की तर्ज पर डालमियानगर में एक औद्योगिक शहर बसाया था। ठीक उसी तरह जैसे आज अंबानी का जामनगर या अडानी का मुंद्रा है।
डालमियानगर में 3,800 एकड़ में फैले परिसर में सीमेंट, चीनी, कागज, रसायन, वनस्पति, साबुन और एस्बेस्टस शीट बनाने वाली इकाइयाँ थीं। इस समूह का अपना बिजली घर और रेलवे भी था। इसके अलावा समूह के पास त्रिची (मद्रास), चरखी दादरी (दिल्ली के पास), डंडोट (लाहौर) और कराची में सीमेंट प्लांट भी थे। इसके अलावा पटियाला में एक बिस्किट फैक्ट्री और बिहार के झरिया और बंगाल के रानीगंज क्षेत्रों में कोयला खदानें थीं। 1933 में एक चीनी मिल से इसका उदय हुआ था, जैसा आज के दौर में अडाणी का हुआ है।
फिरोज गांधी का संसद में किया गया खुलासा भी हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की ही तरह था, जिसमें कहा गया था कि डालमिया-जैन ग्रुप के संस्थापक रामकृष्ण डालमिया ने कंपनी के खातों में गड़बड़ी, पैसे का हेरफेर और बोगस कंपनियां बनाकर उनखे खातों में फेरबदल और पैसे को इधर से उधर कर बड़े पैमाने पर बोगस संपत्ति हासिल की है और अपना वित्तीय मूल्य बढ़ाया है। आरोप ये भी था कि देश के बाहर कई कंपनियों में निवेश किया गया है। उस समय तक मारीशस, साइप्रस और कैरेबियन द्वीप समूह की खोज नहीं हुई थी। इस खुलासे का नतीजा यह हुआ कि डालमिया ग्रुप पर से बाजार का भरोसा उठ गया और उसे भारी नुकसान हुआ।
इस खुलासे से कुछ साल पहले ही डालमिया-जैन ग्रुप ने 1946 में 3.7 करोड़ रुपये की लागत से बॉम्बे स्थित दो कपड़ा मिलों, सर शापुरजी ब्रोचा मिल्स और माधौजी धर्मसी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को खरीदा थी। उसी वर्ष ग्रुप ने द टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रकाशक बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (BCCL) को भी लगभग 2 करोड़ रुपये में खरीद लिया था।
फिरोज गांधी ने अपने भाषण और खुलासे में आरोप लगाया था कि डीजे ग्रुप ने ये खरीद इसलिए की थी ताकि BCCL में अपनी जमा संपत्ति का निवेश किया जा सके। अपने संबोधन में तब फिरोज गांधी ने कहा था, "मुझे नहीं पता कि यह कानूनी है या नहीं… क्योंकि दोनों व्यवसाय की प्रकृति काफी अलग है। जहां तक मेरी जानकारी है, बीसीसीएल में सूत कातने के लिए कोई मशीनरी स्थापित नहीं की गई। इसके अलावा, जिस दिन शेयरों का अधिग्रहण किया गया था, उसी दिन इन मिलों द्वारा ग्वालियर बैंक से 84 लाख रुपये की राशि निकाल ली गई।" इस घटना के बाद ग्वालियर बैंक बंद हो गया था और मिलों के दोनों ऑडिटर्स एस.बी. बिलिमोरिया और ए.एफ. फर्ग्यूसन ने इस्तीफा दे दिया था।