Dawoodi Bohra: क्या है दाऊदी बोहरा समुदाय और उसकी सामाजिक बहिष्कार प्रथा?
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रचलित 'बहिष्कार प्रथा' को चुनौती देने वाली याचिका को सबरीमाला के फैसले की समीक्षा के लिए गठित नौ न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजने का आदेश दिया है। यह पीठ इस मामले की समीक्षा करेगी कि इस प्रथा को संरक्षित रखा जाए या नहीं? गौरतलब है कि अक्टूबर 2022 में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए.एस. ओक, विक्रम नाथ और जे.के. माहेश्वरी की खंडपीठ ने इस मामले को नौ न्यायाधीशों की खंडपीठ को भेजने के अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा था कि वह इस बात पर विचार करेगी कि 1962 के आदेश द्वारा संरक्षित बहिष्कार की प्रथा जारी रह सकती है या नहीं।
कोर्ट को यह भी बताया गया कि बॉम्बे प्रीवेंशन ऑफ एक्सकम्युनिकेशन एक्ट 1949 को निरस्त कर दिया गया है और महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ पीपल फ्रॉम सोशल बॉयकाट (प्रिवेंशन, प्रोहिविशन एंड रेड्रेस्सल) एक्ट 2016 को लागू कर दिया गया है। इस कानून की धारा 3 में किसी भी समुदाय के एक सदस्य का 16 प्रकार से सामाजिक बहिष्कार किए जाने का उल्लेख है और धारा 4 में कहा गया है कि सामाजिक बहिष्कार निषेध है और ऐसा करना दंडनीय अपराध है। बहिष्कार प्रथा क्या है? बोहरा समुदाय का एक सर्वोच्च धार्मिक नेता होता है, जिसे दाई अल-मुतलक सैयदना कहा जाता है। दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग, वे चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, उनके लिए अपने सर्वोच्च नेता के आदेशों का पालन करना जरूरी होता है। इनके आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
अगर समुदाय का कोई भी सदस्य अपने सर्वोच्च नेता के आदेश का पालन नहीं करता है, तो उसका बहिष्कार किया जाता है। ऐसे व्यक्ति को दाऊदी बोहरा समाज से जुड़ी मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों तथा सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं होती है। बहिष्कार प्रथा को कोर्ट में चुनौती 1949 में बॉम्बे प्रीवेंशन ऑफ एक्सकम्युनिकेशन एक्ट लाया गया था। यह कानून में विभिन्न समुदायों में चली आ रही कुप्रथाओं को रोकने का प्रावधान शामिल किया गया था। वास्तव में इस कानून को इसलिए लाया गया था, ताकि लोगों को उनके अधिकारों से वंचित न किया जाए। हालांकि, इसके खिलाफ कई समुदायों ने कोर्ट में अपील कर दी। दाऊदी बोहरा समुदाय के एक सदस्य ने 1949 में एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि यह कानून उनके सर्वोच्च नेता के आदेश के आड़े आता है।
सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती दाऊदी बोहरा समुदाय के 51वें प्रमुख सैयदना ताहिर सैफुद्दीन ने इस मामले को लेकर 1962 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट में तर्क दिया गया कि समाज में बहिष्कार का मामला धार्मिक मामलों से संबंधित नहीं है और इसे दंडनीय अपराध न बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट की 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1962 में फैसला सुनाया था कि बॉम्बे प्रीवेंशन ऑफ एक्सकम्युनिकेशन एक्ट 1949 संविधान के अनुरूप नहीं है। इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म से जुड़े मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी बताया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि दाई अल-मुतलक का पद बोहरा समुदाय का एक अनिवार्य हिस्सा है और बहिष्कार प्रथा का लक्ष्य समुदाय के लोगों में धार्मिक अनुशासन लाना है, दंडित करना नहीं। बाद में, 1986 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके सरदार सैयदना ताहिर सैफुद्दीन बनाम बंबई राज्य के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया। कौन हैं दाऊदी बोहरा? दाऊदी बोहरा शिया मुसलमान हैं। इस समुदाय की वेबसाइट के अनुसार इसके 10 लाख से अधिक सदस्य विश्व के 40 देशों में फैले हुए हैं।