November 18, 2024

तबाह तुर्की में 130 से ज्यादा बिल्डरों की हुई गिरफ्तारी

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तेहरान

तुर्की भूकंप से तबाह हो चुका है। मरने वालों की संख्या 34,000 से ज्यादा हो गई है। आशंका जताई जा रही है कि यह आंकड़ा 50 हजार तक जा सकता है। मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग के जमीन पर पड़े मलबे से निकले सरिया की तस्वीरें देख भारत के लोग भी खौफ में हैं। यह डर वैसे तो हर बिल्डिंग के निवासी को होता है लेकिन दिल्ली-एनसीआर और मुंबई के लोगों को कुछ ज्यादा हो रहा है। सबसे बड़ी वजह यह है कि हम जिस इमारत में रह रहे हैं उसकी ताकत का पता नहीं है। बिल्डर ने टावर खड़ा किया और लोगों ने खून-पसीने की कमाई देकर लोन ले लिया और रहने लगे। ज्यादातर मिडिल क्लास के लोग ऐसा ही करते हैं। तुर्की में तबाही की कोई भी तस्वीर देख लीजिए, ऐसा नहीं है कि सभी इमारतें धराशायी हो गईं। मलबे के पास कुछ ऐसी बिल्डिंग भी दिखेगी जो अभी बेहतर स्थिति में है। इससे साफ है कि बिल्डर ने घपलेबाजी की थी। उसने बिल्डिंग की नींव और दीवारों की मजबूती पर ध्यान नहीं दिया। तुर्की में एक तरफ वैश्विक मदद से राहत एवं बचाव अभियान चल रहा है तो दूसरी तरफ ऐक्शन भी शुरू हो गया है। गैरकानूनी और खराब गुणवत्ता का निर्माण करने वाले 130 से ज्यादा बिल्डरों को गिरफ्तार करने का आदेश जारी हो गया है।

सिस्टम राम भरोसे!
ताबड़तोड़ दो बड़े झटकों से तुर्की हिल गया था। 7.8 और 7.5 की तीव्रता ने कमजोर इमारतों को पलट दिया। तुर्की के जस्टिस मिनिस्टर ने बताया है कि 131 लोगों से पूछताछ चल रही है और कई बिल्डरों के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी कर दिया गया है। वैसे भूकंप की तीव्रता काफी ज्यादा थी लेकिन कमजोर निर्माण होने से नुकसान ज्यादा हो गया। दिल्ली-नोएडा में बिल्डरों ने कितनी मजबूत बिल्डिंग बनाई है, इसका ध्यान कौन रखता है? फ्लैट में रहने वाले लोगों से बात कीजिए तो वे या तो 'राम भरोसे' कहेंगे या फिर सिस्टम पर बरस पड़ेंगे।

कुछ समय पहले दिल्ली की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि बिल्डिंग की मजबूती की जांच का तो सिस्टम बना हुआ है लेकिन यह रफ्तार काफी सुस्त है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा में 29-30 मंजिले की बिल्डिंग में रहने वाले किसी फ्लैट ओनर को पता ही नहीं होता है कि उसके टावर की क्वालिटी क्या है? कुछ सोसाइटियों की हालत ऐसी है कि फोटो फ्रेम लगाने के लिए ड्रिल करने की भी जरूरत नहीं होती। लोग तो हंसते हुए ये भी कहते हैं कि एक मुक्का मारिए तो दीवार टूट पड़ती है। बालू झरने लगेगा। यह चिंता की बात है। पिछले साल गुरुग्राम में छत टूटने की घटना हम देख चुके हैं।

जब शाहबेरी में बिल्डिंग गिरी थी तो…
नोएडा एक्सटेंशन की पंचशील ग्रीन्स सोसाइटी में AOA अध्यक्ष विकास कुमार कहते हैं कि ये चिंता तो हर किसी को है। कोई कहे या न कहे। हर आदमी सोचता रहता है कि टावर की क्वालिटी क्या है। उन्होंने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बताया कि जब शाहबेरी में हादसा हुआ था। बिल्डिंग गिरने से कई जानें गई थीं तो बहुत से लोग प्राधिकरण पहुंचे थे और ग्रेटर नोएडा की सभी सोसाइटियों का स्ट्रक्चर ऑडिट कराने की मांग की गई थी। लोगों ने चिंता जताई थी कि उन्हें भी पता चलना चाहिए कि ये इमारतें भूकंप के समय कितना बड़ा झटका झेल पाएंगी।

विकास ने कहा कि दुखद है कि उस पर कुछ नहीं हुआ। प्राधिकरण का रवैया काफी सुस्त है। उन्होंने कहा कि आए दिन प्लास्टर गिरने की घटनाएं देखने को मिलती हैं। लगभग हर सोसाइटी में हर साल 2-4 ऐसे मामले सामने आते हैं जब छत से प्लास्टर टपक पड़ता है या दीवार से बालू झड़ने लगता है। लेकिन आम आदमी करे तो क्या करें। हर कोई कोर्ट नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि तुर्की की घटना को देख दिल्ली-एनसीआर की इमारतों का ऑडिट कराने का फैसला लिया जाना चाहिए।

 

कब जागेगा प्रशासन?
पास की एक और सोसाइटी के पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सरकार को इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए। प्राधिकरण ही कंप्लीशन सर्टिफिकेट देता है और बिल्डिंग कमजोर है तो बिल्डर और प्राधिकरण दोनों की जिम्मेदारी बनती है। लोगों की जान कीमती है। उन्होंने सवाल किया कि दिल्ली-एनसीआर में बड़े भूकंप का खतरा है, तो क्या यहां भी आपदा आने के बाद प्रशासन जागेगा।

तुर्की में बिल्डिंग मजबूत होती तो इतने लोग न मरते
तुर्की भूकंप में तबाही का विश्लेषण किया जा रहा है। एक्सपर्ट का साफ तौर पर कहना है कि बिल्डिंग निर्माण को लेकर कमजोर नीतियों और आधुनिक तकनीक को लागू करने में फेल रहने के कारण मौत का आंकड़ा इतना ज्यादा रहा। जांच में पता चल रहा है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में उछाल उन क्षेत्रों में आया जो भूकंप के लिहाज से संवेदनशील थे। चिंता की बात यह है कि वहां आधुनिक निर्माण कानूनों की पूरी तरह अनदेखी की गई। भूविज्ञान और इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ काफी समय से चेतावनी दे रहे थे लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।

अब विनाशकारी भूकंप के बाद नीतियों और कानूनों को लागू करने में ढिलाई की नए सिरे से जांच की जा रही है। हजारों इमारतें जमींदोज हो गई हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में इमर्जेंसी प्लानिंग के प्रो. डेविड एलेक्जेंडर ने तो साफ कहा कि यह आपदा घटिया निर्माण के कारण हुई है, भूकंप से नहीं। तुर्की के चैंबर ऑफ आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष का कहना है कि दो बड़े भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में कई इमारतों को घटिया सामग्री से बनाया गया था और मानकों की धज्जियां उड़ाई गईं। भूकंप आने के खतरे के बावजूद इमारतों का ढांचा कमजोर था।

 

 

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