उद्धव की शिवसेना का मसाल चुनाव चिह्न और पार्टी नाम भी खतरे में
मुंबई
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी का चुनाव चिह्न मसाल और नाम दोनों खतरे में हैं। चुनाव आयोग ने इस नाम और मसाल चुनाव चिह्न का आवंटन सिर्फ उपचुनाव तक करने के लिए ही अनुमति दिया है। इसलिए 26 फरवरी को महाराष्ट्र में उपचुनाव हो जाने के बाद शिवसेना (उबाठा) को पार्टी के नए नाम और चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग के पास नए तरीके से संघर्ष करना होगा।
दरअसल, शुक्रवार को चुनाव आयोग ने शिवसेना नाम और उसका चुनाव चिह्न धनुष बाण मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट को दिए जाने का आदेश जारी कर दिया है। इससे पहले दोनों पक्षों ने अर्थात उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुटों ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न के लिए चुनाव आयोग में गुहार लगाई थी। दोनों पक्षों के विवाद को देखते हुए चुनाव आयोग ने राज्य में उपचुनाव तक उद्धव ठाकरे को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और मसाल चुनाव चिह्न और एकनाथ शिंदे को बालासाहेब की शिवसेना और ढाल तलवार चुनाव चिह्न सिर्फ उपचुनाव तक के आवंटित कर दिया था। चुनाव आयोग से उद्धव ठाकरे को मिले पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न की वैधता अवधि 26 फरवरी को समाप्त हो रही है। इस संबंध में अभी तक चुनाव आयोग ने कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किया है।
समता पार्टी ने पहले ही शिवसेना (उबाठा) को दिए गए मसाल चुनाव चिन्ह पर आपत्ति दर्ज करवाई थी। समता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश झा ने शनिवार को मीडिया को बताया कि मसाल चुनाव चिन्ह पर उनका दावा बरकरार है। झा ने कहा कि वे चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मसाल चुनाव चिन्ह समता पार्टी के लिए रखे जाने की मांग करने वाले हैं। जब उनकी समता पार्टी की वोटिंग पूरे देश में छह फीसदी हो जाएगी, उस समय यह चुनाव चिन्ह उन्हें (समता पार्टी) को दिए जाने की मांग करने वाले हैं।
शिवसेना (उबाठा) के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राऊत ने कहा कि उनकी पार्टी चुनाव आयोग की ओर से दिए गए निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली है। संजय राऊत ने कहा कि चुनाव आयोग ने जल्दबाजी में गलत फैसला केंद्र सरकार के दबाव में लिया है। उन्हें न्यायदेवता पर पूरा भरोसा है। संजय राऊत ने कहा कि जब केंद्र सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग काम करता है तो कुछ भी हो सकता है, लेकिन पार्टी इसका सामना करेगी।