November 25, 2024

आरक्षण विधेयक बिल पास नहीं करने के खिलाफ एक और याचिका,नोटिस पर HC का फैसला सुरक्षित

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बिलासपुर

छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर राज्यपाल सचिवालय को दी गई नोटिस की वैधानिकता पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। दरअसल, राज्य शासन की याचिका पर राजभवन को नोटिस जारी होने के बाद इसकी संवैधानिकता पर अब बहस चल रही है। इधर, आरक्षण विधेयक बिल पास नहीं करने को लेकर आदिवासी नेता ने एक दूसरी याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई अब एक मार्च को होगी।

आरक्षण विधेयक बिल को राजभवन में रोकने को लेकर राज्य शासन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असहमति दे सकते हैं। लेकिन, बिना किसी वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता। याचिका में कहा है कि राज्यपाल ने अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग किया है।

राजभवन की नोटिस की संवैधानिकता पर हुई बहस
छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका पर राजभवन को नोटिस जारी होने के बाद राज्यपाल सचिवालय की तरफ से हाईकोर्ट में आवेदन पेश किया गया है, जिसमें राजभवन को पक्षकार बनाने और हाईकोर्ट की नोटिस को चुनौती दी गई है। राज्यपाल सचिवालय की तरफ से पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल और सीबीआई और एनआईए के विशेष लोक अभियोजक बी गोपा कुमार ने तर्क देते हुए बताया कि संविधान की अनुच्छेद 361 में राष्ट्रपति और राज्यपाल को अपने कार्यालय की शक्तियों और काम को लेकर विशेषाधिकार है, जिसके लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं है।

इसके मुताबिक हाईकोर्ट को राजभवन को नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है। इधर, शुक्रवार को शासन की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने तर्क देते हुए कहा कि धारा 361 विवेकाधिकार के प्रयोग पर लागू होता है। विवेकाधीन शक्तियों में यह मामला लागू नहीं होता। स्पष्ट है कि किसी भी केस को संवैधानिक अधिकार के दायरे में नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट नोटिस जारी कर सकती है। दोनों पक्षों की उनके तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की जस्टिस रजनी दुबे ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

हाईकोर्ट की नोटिस पर है स्टे
बी गोपा कुमार के मुताबिक आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल के पास भेजा गया है। लेकिन, इसमें समय सीमा तय नहीं है कि, कितने दिन में बिल को निर्णय लेना है। राज्यपाल सचिवालय के आवेदन पर अंतरिम राहत देते हुए कोर्ट ने स्टे लगा दिया था, जिसे फिलहाल फैसला आते तक बरकरार रखा गया है।

आदिवासी नेता ने दायर की है एक अन्य याचिका
इधर, आरक्षण विधेयक बिल अटकने के बाद आदिवासी नेता संतकुमार नेताम की तरफ से एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने एक अन्य याचिका दायर की है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 200 के राज्यपाल को विधानसभा या विधानमंडल की ओर से पारित किसी विधेयक पर अनुमति देने, अनुमति रोकने या उस विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने की शक्ति प्रदान करता है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 200 की शक्ति और बिल रोकने की व्याख्या पर सवाल उठाया गया है। इस याचिका में राज्य शासन और केंद्र सरकार को पक्षकार बनाया गया है। शुक्रवार को इस प्रकरण की सुनवाई नहीं हो पाई। कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए एक मार्च को रखा है।

राज्यपाल के पास अटकी है विधेयक स्वीकृति का मामला
राज्य सरकार ने दो महीने पहले विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ा दिया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। इस विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था। राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इसे स्वीकृत करने से फिलहाल इनकार कर दिया था। और अपने पास ही रखा था।

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