परमात्मा के जन्म पर उल्लास और आनंद की बिखरीं खुशियां, लगे जयकारे
रायपुर
श्री धर्मनाथ जिनालय एवं जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी में जन्म कल्याणक अर्थात परमात्मा के जन्म की खुशियां इतना आल्हादित कर दिया कि जयकारें की गूंज और बधाईयों से हर कोई हर्षित नजर आ रहा था। उल्लास और आनंद का माहौल दादाबाड़ी परिसर में देखते ही बन रहा था। पृथ्वी लोक में परमात्मा का जन्म, उनके पधारने का दिन ही विशेष है जब जगत का हर जीव अपार खुशी महसूस कर रहा है। जन्म कल्याणक विधान के तहत इन्द्राणी एवं स्वर्ग की देवियों द्वारा परमात्मा के जन्म की खुशी में बधाई बाँटी गई। आज दीक्षार्थियों को डोरा बांधना, केसर छांटना (वस्त्र रंगना) ओढ़ी सजाना का रस्म हुआ। मंगलवार को सुबह 8 बजे दादाबाड़ी से जैन मंदिर सदरबाजार के लिए इनका वरघोड़ा निकलेगा।
गच्छाधिपति एवं आचार्य भगवन्तो ने हितोपदेश में बताया कि अनंत उपकारी अरिहंत परमात्मा को भी कर्म गति के कारण जन्म समय का कष्ट सहना ही पड़ता है। परन्तु यह कष्ट अनेक भव्यात्माओं के हित के लिए होता है। परमात्मा देव लोक से च्यवन कर मनुष्य लोक में आते है और इस जन्म जन्मांतर के भ्रमण से निकल कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त करते है, मनुष्य लोक से ही सब गति के द्वार खुले है इसलिए देवेंद्र आदि सभी मनुष्य लोक को पाने के लिए तरसते है। इस अंतिम जन्म के बाद अरिहंत भगवान का कभी जन्म नहीं होता है,वह परम सिद्ध गति को पाकर अजन्मया बन जाते है।
जन्म कल्याणक का मंचन साइंस कॉलेज स्थित रत्नपुरी नगरी में हुआ। आज के जन्म कल्याणक महोत्सव में परमात्मा के जन्म के साथ ही इंद्र का सिंहासन कम्पायमान हुआ। च्यवन के पश्च्चात गर्भवास का समय पूर्ण होने पर त्रिलोकीनाथ का जन्म होता है, उस समय तीनो लोक में आनंद एवं उत्साह फैल जाता है। दिक्कुमारिया अवधिज्ञान से प्रभुजी का जन्म हुआ जानकर वहां आती है तथा सूती कर्म करती है उसके पश्चात इन्द्र अपना कत्र्तव्य जान कर परमात्मा को अपने पांच रूप बना कर मेरु शिखर में स्नात्र महोत्सव करने के लिए ले जाते है। आज अपूर्व खुशी का दिन है जैसे हम अपने नवजात बच्चों को किसी को देने से डरते है उसी प्रकार महाराजा इंद्र भी भगवान को नवजात शिशु के रूप में देखकर किसी को भी देने में डरते है और खुद अपना पांच रूप बना कर एक रूप में परमात्मा को अपने हाथ में लेते है। एक रूप में हाथ से चँवर ढुलाते हैं, एक रूप में धूप रखते है, एक में दीप और शंखनाद करते हुए परमात्मा को मेरु शिखर में ले जाते है और हरिन गामीशी देव को सुघोषा घंटा बजाने का आदेश देते है ताकि सभी देव शीघ्र पधारे और स्नात्र महोत्सव देवताओं के साथ मानते है। रत्नपुरी के मंचन वाले स्नात्र महोत्सव में खारुन माता का शुद्ध जल एवं विभिन्न नदियों के पवित्र शुद्ध जल से परमात्मा का अभिषेक हुआ इस हेतु यहां चल मंदिर बनाया गया है इसमें जैन समाज के 64 इन्द्र सपरिवार मेरुगिरि पर पांडुशिला पर जन्म स्नात्र महोत्सव करते है। इस जन्म कल्याणक महोत्सव को देखने सुनने के सैकड़ों लोग साक्षी बने।
जब मंचस्थ को देखने सुनने में इतना आनंद और उत्साह मिलता है तो अपने कमल नयन से साक्षात् देखने में किता आनंद का अनुभव होगा,अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। नाट्य मंचन बहुत ही अद्भुत रूप से हुआ, ऐसा लगा जैसे कोई अतीत की गौरव गाथा का मंचन हो रहा है।
मंगलवार का कार्यक्रम
जिन मंदिर दादाबाड़ी में प्रात: अठारह अभिषेक विधान, गुरुमूर्ति अभिषेक, अमर ध्वजा के ध्वज दंड एवं कलश का अभिषेक होगा। प्रात: 8 बजे दोनों दीक्षार्थियों के वषीर्दान का भव्य वरघोड़ा एमजी रोड दादाबाड़ी से श्री ऋषभ देव जैन मंदिर सदर बाजार तक निकलेगा। भाई संदीप कोचर (37 वर्ष) एवं कु. प्रज्ञा कोचर (23 वर्ष) की उम्र में दीक्षा ग्रहण करने जा रहे है एवं अपने संसारी संबंध को तोड़कर परमात्मा से संबंध बनाने के मुख्य मार्ग पर निकल पड़े है। रत्नपुरी नगरी साइंस कॉलेज में परमात्मा के जन्म की बधाई प्रियंवदा दासी द्वारा परमात्मा के पिता भानु राजा को दी जावेगी, दीक्षा एवं वषीर्दान की महिमा का मंचन होगा।