November 22, 2024

पाना चाहते हैं Negtivity से छुटकारा तो घर के इस कोने को सजाना न भूलें

0

आजकल वास्तु के संबंध में लोगों में काफी भ्रम एवं असमंजस की स्थिति है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। वास्तु शास्त्र का मूल आधार भूमि, जल, वायु एवं प्रकाश है जो जीवन के लिए अति आवश्यक है। इनमें असंतुलन होने से नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है। उदाहरण के द्वारा इसे और स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर बाएं ही क्यों चलते हैं क्योंकि सड़क के बाईं ओर चलना आवागमन का एक सरल नियम है। नियम का उल्लंघन होने पर दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है, इसी तरह वास्तु के नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति विशेष का स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि उसके रिश्ते पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वास्तु में रसोई घर के कुछ निर्धारित स्थान दिए गए हैं, इसलिए हमें रसोई घर वहीं पर बनाना चाहिए।

उत्तर-पश्चिम की ओर रसोई का स्टोर रूम, फ्रिज और बर्तन आदि रखने की जगह बनाएं।

रसोई घर के दक्षिण-पश्चिम भाग में गेहूं, आटा, चावल आदि अनाज रखें। कभी भी गैस, चूल्हा आदि बीच में न जलाएं और न ही रखें।

कभी भी उत्तर दिशा की तरफ मुख करके खाना नहीं पकाना चाहिए। सिर्फ थोड़े दिनों की बात है, ऐसा मान कर किसी भी हालत में उत्तर दिशा में चूल्हा रखकर खाना न पकाएं।

रसोई में तीन चकले न रखें, इससे घर में क्लेश हो सकता है। वहां हमेशा गुड़ रखना सुख-शांति का संकेत माना जाता है। टूटे-फूटे बर्तन भूलकर भी उपयोग में न लाएं, ऐसा करने से घर में अशांति का माहौल बनता है।

अंधेरे में चूल्हा न जलाएं, इससे संतान पक्ष से कष्ट मिल सकता है। साथ ही नमक के साथ या पास में हल्दी न रखें, ऐसा करने से मतिभ्रम की संभावना हो सकती है।

रसोई घर में कभी न रोएं, ऐसा करने में अस्वस्थता बढ़ती है। किचन घर पूर्व मुखी अर्थात खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व दिशा में ही होना चाहिए। उत्तर मुखी रसोई खर्च ज्यादा करवाती है। यदि आपका किचन आग्नेय या वायव्य कोण को छोड़कर किसी अन्य क्षेत्र में हो, तो कम से कम वहां पर बर्नर की स्थिति आग्नेय अथवा वायव्य कोण की तरफ ही हो।

रसोई घर की पवित्रता व स्वच्छता किसी मंदिर से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसा करने से मां अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है।

रसोईघर के लिए दक्षिण-पूर्व क्षेत्र का प्रयोग उत्तम है, किन्तु जहां सुविधा न हो वहां विकल्प के रूप में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र का प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु उत्तर-पूर्व मध्य व दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र का सदैव त्याग करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *