September 24, 2024

पूर्वोत्तर में मजबूती से हुआ भगवा सूर्योदय, ‘डील-मेकर’ बने हिमंत बिस्वा सरमा

0

 नई दिल्ली

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व उसके सहयोगी दलों ने त्रिपुरा और नागालैंड में सत्ता बरकरार रखी है। मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) बहुमत से तो पिछड़ गई लेकिन भाजपा के साथ सरकार बनाने पर सहमति बन चुकी है। कुल मिलाकर भाजपा तीनों राज्यों की सत्ता में रहेगी। पूर्वोत्तर नें भगवा पार्टी के मजबूत होने का श्रेय असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को दिया जा रहा है।

भाजपा के 'पोस्टर बॉय' हैं असम सीएम

पूर्वोत्तर में भाजपा के सूर्योदय में मदद करने वाले विभिन्न गठबंधनों को अगर कोई साथ लाया है तो वह नाम हिमंत बिस्वा सरमा का है। उन्होंने इस बार भी वही किया। इस क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 'पोस्टर बॉय' एवं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पार्टी के 'डील मेकर' के रूप में उभरे हैं। वह लगभग "हर दिन" पूर्वोत्तर के उन सभी तीन राज्यों के लिए उड़ान भरते रहे जहां इस साल फरवरी में चुनाव हुए थे।

उन्होंने सबसे पहले नेफ्यू रियो को उग्रवाद से ग्रस्त राज्य नगालैंड में दूसरे कार्यकाल के लिए पसंदीदा व्यक्ति बताया था। इसके अलावा, त्रिपुरा में माणिक साहा को सीएम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य त्रिपुरा में भाजपा की लोकप्रियता को पहुंचे नुकसान को कम करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की मदद की और माणिक साहा को चुना।  

मेघालय सीएम के साथ की बैठकें

मेघालय विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनपीपी ने भाजपा के साथ गठबगंधन समाप्त कर लिया था। मेघालय सीएम व एनपीपी प्रमुख कोनराड संगमा को बहुमत न मिलने की स्थिति में फिर से भाजपा का साथ मांगा है। इस गठजोड़ के लिए बातचीत की मेज पर वापस लाने में भी सरमा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। माना जाता है कि संगमा ने इस मुद्दे पर सरमा के साथ दो दौर की बैठकें की जिसके बाद समझौता हो गया।

हिमंत सरमा ने त्रिपुरा के पूर्ववर्ती राजपरिवार के वंशज प्रद्योत देबबर्मा द्वारा स्थापित टिपरा मोथा को भी मनाने के लिए पर्दे के पीछे से समझौते का प्रयास किया था। उग्रवादी से टिपरा मोथा के अध्यक्ष बने बिजॉय कुमार हरंगखाल ने कुछ हफ्ते पहले पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए प्रयास किए गए थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने कहा था, ''हम गुवाहाटी में मिले थे… हमें असम के मुख्यमंत्री (हिमंत सरमा) ने आमंत्रित किया था। दिल्ली से दो और भाजपा नेता आए… हमने मना कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा कि हम (एक अलग टिपरालैंड के लिए) सहमत नहीं हो सकते।"

सरमा गुजरात और दिल्ली में क्षेत्र से भाजपा के पहले स्टार प्रचारक थे

हालांकि, उन्होंने कुछ निश्चित परिस्थितियों में बाहर से समर्थन देने की संभावना जताई थी। दिल्ली में काफी महत्व रखने वाले सरमा काफी दूर स्थित गुजरात और दिल्ली में क्षेत्र से भाजपा के पहले स्टार प्रचारक थे। चाहे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुद्दा हो, पीएफआई पर प्रतिबंध लगाना हो, मवेशी संरक्षण अधिनियम पारित करना हो, अल्पसंख्यक जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के लिए विशिष्ट नीतिगत उपायों की मांग करना हो या "अवैध" गांवों पर बुलडोजर चलाना हो, सरमा ने भाजपा के अहम एजेंडे को आगे बढ़ाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है।

सत्ता विरोधी लहर और टिपरा मोठा के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बृहस्पतिवार को अपने ‘मिशन पूर्वोत्तर’ में त्रिपुरा में सत्ता बरकरार रखते हुए मनोबल बढ़ाने वाली जीत दर्ज की जबकि नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ मिलकर नगालैंड में भी कामयाबी हासिल की। मेघालय में, भाजपा फिर से एक कनिष्ठ सहयोगी के रूप में सत्तारूढ़ सरकार का हिस्सा बनने के लिए तैयार है क्योंकि मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्‍स पार्टी (एनपीपी) 60 सदस्यीय विधानसभा में 26 सीट जीतकर भी बहुमत से दूर रह गई।

भाजपा के लिए हालांकि, नगालैंड और मेघालय में कनिष्ठ सहयोगी के रूप में जीत भी एक तरह की कामयाबी है। वहीं, पूर्व में दोनों राज्यों में सत्ता में रह चुकी कांग्रेस के लिए नतीजे अच्छे नहीं रहे। मेघालय में कांग्रेस ने पांच सीट पर जीत दर्ज की जबकि नगालैंड में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। त्रिपुरा में भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीट जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की है। 2018 के चुनाव की तुलना में दोनों दलों को 10 सीट कम मिली हैं लेकिन स्पष्ट जनादेश के कारण नयी पार्टी टिपरा मोठा की मदद के बिना गठबंधन पांच साल तक शासन कर सकता है। टिपरा मोठा ने 13 सीट पर जीत दर्ज की।

पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने दो साल पहले टिपरा मोठा का गठन किया था। वाम-कांग्रेस गठबंधन ने 14 सीट हासिल कीं। देबबर्मा की पार्टी ने जनजातीय क्षेत्र में वाम दल के वोट में सेंध लगाई। राज्य में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। टीएमसी ने 28 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसे कहीं भी सफलता नहीं मिली। टीएमसी का वोट प्रतिशत (0.88 प्रतिशत) नोटा से भी कम रहा।

भाजपा ने 55 सीट पर चुनाव लड़ा और 32 पर जीत हासिल की। वर्ष 2018 की तुलना में भाजपा को तीन सीट कम मिलीं। इंडीजेनस पीपुल्‍स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) केवल एक सीट जीत सकी जबकि पिछले चुनाव में पार्टी को आठ सीट मिली थीं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने 25 साल तक त्रिपुरा पर शासन करने के बाद 2018 में सत्ता खो दी थी। पिछली बार पार्टी ने केवल 16 सीट पर जीत दर्ज की थी। इस बार पार्टी ने 47 सीट पर चुनाव लड़ा और 24.62 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ 11 सीट पर जीत हासिल की।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *