पलाश के फूलों से महकेगी बस्तर की होली, दरभा की महिलाएं बना रही हैं प्राकृतिक गुलाल
जगदलपुर
दरभा के अल्वा गांव में पटेलपारा की महिलाएं पलाश के फूलों से होली के लिए गुलाल तैयार कर रही हैं। इनके समूह का नाम गेंदा फूल स्व-सहायता समूह है। लगभग 12 महिलाओं के इस समूह ने अब तक 50 किलो के आस-पास गुलाल तैयार कर लिया है। जिन्हें ग्राम पंचायत के माध्यम से सीमार्ट तक पहुंचाया जा रहा है जहां से आम नागरिक केमिकल फ्री गुलाल खरीद सकेंगे। इन रंगों को तैयार करने के लिए पलाश के फूलों को सुखाकर पाउडर बनाया गया, जिसके बाद इसमें मक्के का आटा मिलाकर चिकना किया गया। इन्हें रंगीन बनाने के लिए भी प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया गया है। जैसे लाल रंग के लिए लाल भाजी, पीला रंग के लिए हल्दी और हरे रंग के लिए मेथी और हरे रंग की भाजियों का इस्तेमाल किया गया है। समूह की सदस्य सावित्री मंडावी का कहना है कि उन्हें 1 क्विंटल गुलाल बनाने का आॅर्डर मिला था, जिसे उनके समूह की महिलाएं बड़ी मेहनत से तैयार कर रही हैं। सावित्री बताती हैं कि उनका यह गुलाल केमिकल फ्री होने की वजह से स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं है। इसे बच्चे-बूढ़े सभी उपयोग कर सकते हैं। स्थानीय बाजारों में भी ये महिलाएं अपने प्राकृतिक गुलाल को बेचेंगी।
प्राकृतिक गुलाल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पलाश के फूल के कई नाम हैं। इसे टेसू, ढाक, परसा, केशुक, और केसू भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऋतुराज वसंत की सुंदरता पलाश के बिना पूरी नहीं होती है। पलाश के फूल को वसंत का श्रृंगार माना जाता है। होली के लिए आजकल बाजारों में मिलने वाल चटक और आकर्षक रंग केमिकलयुक्त होते हैं। जिससे स्किन को नुकसान पहुंचता है। यही नहीं बाजार में मिलने वाले ये रंग बच्चों के स्किन के लिए भी नुकसानदायक होते हैं। सांस के माध्यम से भी केमिकलयुक्त रंग हमारे शरीर में पहुंचकर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं इसीलिए विशेषज्ञ ये सलाह देते हैं कि होली के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंग केमिकल फ्री होने चाहिए। बिहान की इन महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे प्राकृतिक गुलाल पूरी तरह से केमिकल फ्री हैं इसीलिए ये गुलाल बाजार में मिलने वाले रंगों की जगह अच्छा विकल्प साबित होंगे।