September 29, 2024

भोपाल गैस त्रिासदी के पीड़ितों को. 7844 करोड़ के मुआवजे पर SC का बड़ा फैसला आज

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 भोपाल.नईदिल्ली

भोपाल गैस त्रिासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे के रूप में 7844 करोड़ रुपए मिलेंगे या नहीं, इसको लेकर आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. साल 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को और ज्यादा मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7 हजार 844 करोड़ रुपए की मांग करने वाली याचिका केंद्र की ओर से दायर की गई थी.

आज जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी. जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके महेश्वर की पीठ ने भी 12 जनवरी को केंद्र की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

इससे पहले 12 जनवरी को हुई सुनवाई में यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत सरकार ने निपटान के वक्त कभी भी यह सुझाव नहीं दिया था कि मुआवजा अपर्याप्त था. वकील ने इस बात पर जोर दिया कि साल 1989 के बाद से रुपए का अवमूल्यन भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अब मुआवजे की मांग का आधार नहीं बन सकता. इस मामले पर विस्तृत सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

बता दें कि केंद्र सरकार साल 1989 में समझौते के तहत अमेरिकी कंपनी से मिले 470 मिलियन अमरीकी डॉलर (715 करोड़ रुपए) के अलावा यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों से मुआवजे के रूप में 7 हजार 844 करोड़ रुपए चाहता है. केंद्र सरकार इस बात पर जोर देती रही है कि साल 1989 में बंदोबस्त के समय मानव जीवन और पर्यावरण को हुए वास्तविक नुकसान का ठीक से आकलन नहीं किया गया था.

क्या है भोपाल त्रासदी ?
1984 की भोपाल गैस त्रासदी को देश की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है. एक केमिकल फैक्‍ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए. इतना ही नहीं, त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता, मगर सबसे दुखद बात ये है कि हादसे के जिम्‍मेदार आरोपी को कभी सजा नहीं हुई.

नींद में ही सो गए हजारों लोग

02 और 03 दिसंबर 1984 की रात, लगभग 45 टन खतरनाक गैस मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हुई थी. यह कंपनी अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी थी. गैस संयंत्र के आसपास घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई, जिससे हजारों लोगों की तुरंत ही मौत हो गई. लोगों के मरने पर इलाके में दहशत फैल गई और हजारों अन्य लोग भोपाल से भागने का प्रयास करने लगे.

16 हजार से अधिक लोगों की मौत

मरने वालों की गिनती 16,000 से भी अधिक थी. करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा. जांच में पता चला कि कम कर्मचारियों वाले संयंत्र में घटिया संचालन और सुरक्षा प्रक्रियाओं की कमी ने तबाही मचाई थी.

2010 में दाखिल की गई थी याचिका

हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया. हालांकि, पीडितों ने ज्‍यादा मुआवजे की मांग के साथ न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाया था. केंद्र ने 1984 की त्रासदी के पीड़ितों को डाउ केमिकल्स से 7,844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की है. केंद्र ने मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी.

एंडरसन को नहीं मिल सकी सजा

उस वक्‍त UCC के अध्‍यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्‍य आरोपी थे लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुए. 01 फरवरी 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया. इसके बाद अदालत ने एंडरसन के खिलाफ 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया, मगर उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी. सितंबर, 2014 में एंडरसन की स्‍वाभाविक मौत हो गई और उसे कभी इस मामले में सजा नहीं भुगतनी पड़ी.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में क्या कहा?

– बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा था कि किसी को भी त्रासदी की भयावहता पर संदेह नहीं है. फिर भी जहां मुआवजे का भुगतान किया गया है, वहां कुछ सवालिया निशान हैं. जब इस बात का आकलन किया गया कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार था.

– कोर्ट ने कहा कि बेशक लोगों ने कष्ट झेला है. हमने पूछा था कि जब केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की है, तो क्यूरेटिव याचिका कैसे दाखिल कर सकते हैं? शायद इसे तकनीकी रूप से न देखें लेकिन हर विवाद का किसी न किसी बिंदु पर समापन होना चाहिए

– पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने वाली क्यूरेटिव याचिका पर आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख साफ करते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि के जरिए कहा कि पीड़ितों को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता.

लंबे समय से पर्याप्त मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे पीड़ित

दरअसल केंद्र ने यह याचिका इसलिए दायर की है, क्योंकि त्रासदी के बाद बचे लोग जहरीली गैस रिसाव के कारण होने वाली बीमारियों के लिए लंबे समय से पर्याप्त मुआवजे और उचित चिकित्सा उपचार के लिए संघर्ष कर रहे हैं.केंद्र ने दिसंबर 2010 में याचिका दायर की थी. 7 जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूसीआईएल के 7 अधिकारियों को 2 साल की सजा सुनाई थी.

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