‘पाकिस्तानी भिखारी बन चुके हैं’, पूर्व राजनयिक ने शहबाज सरकार को लताड़ा
इस्लामबाद
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो संयुक्त राष्ट्र में 'वुमेन इन इस्लाम' पर विषय पर आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए अमेरिका गए हुए थे. वहां एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने भारत के लिए दोस्त शब्द का इस्तेमाल कर दिया था, लेकिन तुरंत बाद उन्होंने अपने शब्दों को बदलते हुए भारत के लिए पड़ोसी शब्द का इस्तेमाल किया.
विदेश मंत्री बनने के बाद यह चौथी बार है जब बिलावल भुट्टो अमेरिका गए थे. पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट अब्दुल बासित ने बिलावल और शहबाज सरकार के इस कूटनीतिक कदम की जमकर आलोचना की है.
बासित ने शहबाज सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि न जाने क्यों हमारे विदेश मंत्री को अमेरिका से इतनी मोहब्बत है कि जब से वो विदेश मंत्री बने हैं वो चौथी बार अमेरिका जा चुके हैं. मुझे तो कुछ नजर नहीं आ रहा कि इसका मकसद क्या था?
सिर्फ 1.1 बिलियन के लिए भिखारी बन गए हैं: अब्दुल बासित
पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट ने कहा कि मान लेते हैं कि जुबान फिसलने से बिलावल भुट्टो ने भारत को दोस्त कह दिया. कभी-कभी ऐसी गलती हो जाती है. लेकिन जरूरी सवाल यह है कि हमारे विदेश मंत्री अमेरिका गए क्यों?
विदेश मंत्री के इन चार दौरों से पाकिस्तान को क्या मिला? पिछले एक साल में अगर हमारी कूटनीति इतनी ही जबरदस्त रही तो ये नजर भी आना चाहिए था. आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच स्टाफ लेवल एग्रीमेंट नहीं हो पा रहा है. 1.1 अरब या 1.2 अरब डॉलर के लिए हम एक दम से भिखारी बन गए हैं.
अमेरिका के साथ हमारा क्या संबंध है? आतंकवाद और अफगानिस्तान के अलावा हमें तो कुछ नहीं दिख रहा है कि वाकई अमेरिका हमारी कुछ मदद भी कर रहा है."
उन्होंने आगे कहा कि अगर इस तरह के इवेंट अटेंड करने थे तो इससे बेहतर होता कि मिनिस्टर ऑफ स्टेट हिना रब्बानी खार या किसी अन्य नीचे दर्जे के मंत्री को भेजना बेहतर रहता.
जिनेवा कॉन्फ्रेंस से हमें क्या हासिल हुआ?
अब्दुल बासित ने कहा, "जिनेवा में फ्लड डोनर कैंपेंन कॉन्फ्रेंस से पाकिस्तान को क्या मिला. कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद के लिए 9-10 अरब डॉलर इकट्ठे हुए हैं. हमें जबरदस्त कामयाबी मिली है. अब सवाल यह पूछना चाहिए कि उसमें से कितना पैसा पाकिस्तान को मिला? हालात यह है कि विदेश मंत्री प्रधानमंत्री को धमकी दे रहे हैं कि अगर सिंध प्रांत में बाढ़ पीड़ितों की मदद नहीं की गई तो हम सरकार से अलग हो जाएंगे."
अगर आप सिर्फ मीडिया इंटरेक्शन के लिए या इंटरव्यू देने जाते हैं, तो इसका कोई जस्टिफिकेशन नहीं है. यह इंटरव्यू आप पाकिस्तान में बैठ कर दे सकते थे. इसके लिए न्यूयार्क जाने की क्या जरूरत है?
पाकिस्तान अपना कद खुद कम कर रहा: बासित
पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमेट अब्दुल बासित ने कहा, "इस तरह से विदेश मंत्री का दौरा करना मुनासिब नहीं होता है. दुनिया में ऐसा कहां होता है. एक साल में चार बार हमारे विदेश मंत्री अमेरिका चले गए. इन चार दौरों में सिर्फ एक बार अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात हो पाई है, वो भी पिछले साल सितंबर में. उसके बाद जब भी गए तो कभी डिप्टी सचिव से तो कभी काउंसलर से मुलाकात करके आ गए. इससे पाकिस्तान अपना कद खुद कम कर रहा है."
उन्होंने आगे कहा, "ब्लिंकन से आपकी मुलाकात नहीं हो पाती है और आप यूएन जेनरल सेकेट्री से मुलाकात करके खुश होकर आ जाते हैं. और यहां आकर कहते हैं कि पाकिस्तान को जबरदस्त कामयाबी मिली है. पाकिस्तान के इतिहास में कोई भी दौरा नाकाम नहीं होता है. सारे दौरे कामयाब होते हैं. उसके बहुत बड़े नतीजे निकलते हैं लेकिन नतीजा क्या होता है कोई नहीं जानता."