September 30, 2024

दोनों बच्चों को संभालना चैलेंजिंग है: दीया मिर्जा

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मुंबई

मिस एशिया पेसिफिक जैसी ब्यूटी क्वीन का टाइटल पाने वाली दीया मिर्जा को अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने में समय लगा, मगर आखिरकार एक अभिनेत्री के रूप में उन्होंने खुद को सिद्ध कर ही दिया। इन दिनों वे चर्चा में हैं जल्द रिलीज होने वाली अपनी फिल्म ‘भीड़’ से। इस खास मुलाकात में वे अपनी फिल्म, निर्देशक अनुभव सिन्हा, अपनी शादी, अपने बच्चे, महिला मुद्दों के अलावा आस्कर की जीत पर दिल खोलकर बातें करती हैं। सुना है आपकी और फिल्म के निर्देशक अनुभव सिन्हा को आप एक अर्से से जानती हैं।

उन्होंने कहा कि मैं अनुभव सर को पिछले 23 सालों से जानती हूं। मैंने अपना दूसरा म्यूजिक विडियो उनके साथ किया था। उसके बाद मैंने उनके साथ दस और कैश जैसी फिल्में कीं, तब वे बहुत अलग तरह की फिल्में बनाया करते थे। मुल्क देखने के बाद ऋचा चड्ढा की बर्थडे पार्टी पर हमारी मुलाकात हुई और और मैंने उन्हें सामने से जाकर कहा कि प्लीज अपनी फिल्मों में मुझे कास्ट कीजिए। फिर जब मुझे थप्पड़ के लिए कॉल आया, तो दोबारा उनके साथ काम करने का मौका मिला। उनके साथ काम करते हुए महसूस हुआ कि फिल्मों को लेकर उनकी सोच कितनी अलहदा है। वे जान चुके हैं कि उनका मकसद क्या है। इंसानियत पर हमारे यहां बहुत कम फिल्में बनती हैं और अनुभव जी उन फिल्मकारों में से हैं, जो इंसानियत के मुद्दे पर संवेदनशील सिनेमा बनाते हैं।  हर किसी के लिए अपने-अपने स्तर पर बेहद मुश्किल दौर था। मैं हमेशा कहती हूं कि हम बहुत खुशकिस्मत थे, जो अपनों के साथ अपने घरों में थे। मैं अपनी मां के साथ थी, मगर कितने ऐसे अभागे लोग थे, जो माता-पिता के गुजरने पर उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए। मगर सबसे ज्यादा मुझे झकझोरा माइग्रेंट्स ने।

इनका वजूद तो एक तरह से मर ही गया था न उनके साथ बहुत गलत हुआ। कुछ विजुअल्स हैं, जो मैं कभी नहीं भूलूंगी, जब एक सीमेंट मिक्सर से बच्च, बूढ़े और जवान बाहर निकल कर आ रहे हैं। जो लोग महीनों पैदल चलते रहे अपने गांव पहुंचने के लिए, उनके विजुअल्स ने भी मुझे बहुत द्रवित किया। लोग भूख और प्यास से बेहाल गर्मी में चले जा रहे थे। मगर इन तमाम दुखद हादसों के साथ जो एक चीज अच्छी हुई, वो ये कि ह्यूमन एक्टिविटी को पॉज मिल गया था और उससे हवा साफ हो गई, प्रकृति उभर कर सामने आई। जानवर शहरों की सड़कों पर नजर आने लगे। पहली बार हवा इतनी साफ थी, जानवरों की तरह इंसान पिंजरे याने घरों में कैद था और लोग प्रकृति का आनंद ले रहे थे।

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