September 30, 2024

संगीत में शास्त्रीय पक्ष के ज्ञान के बिना नए प्रयोग असंभव : कुलपति डॉ. ममता चंद्राकर

0

खैरागढ़

कला और संगीत के विद्यार्थियों को इसके शास्त्रीय पक्ष पर अध्ययन अथवा शोध अवश्य करना चाहिए। क्योंकि नए प्रयोगों के लिए जड़ों को जानना आवश्यक है और कला-संगीत की जड़ को समझने के लिए शास्त्रीय शैली का ज्ञान होना आवश्यक है। यह बातें इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की कुलपति पद्मश्री डॉ. ममता (मोक्षदा) चंद्राकर ने कही, जब वे यहां आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहीं थीं।

विश्वविद्यालय में आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत गायन एवं तंत्री विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ख्याल गायकी एवं स्वरवाद्य वादन शैलियों पर ध्रुपद का प्रभाव विषय पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत हुई है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलसचिव प्रो. डॉ. आईडी तिवारी ने की। इस संगोष्ठी में पं. नित्यानंद हल्दीपुर, मुंबई (बांसुरी), पं. पुष्पराज कोष्टी, मुंबई (सुरबहार), डॉ. विकास कशालकर, पुणे (गायन) और डॉ. राम देशपांडे, मुंबई (गायन) समेत चार विद्वान विशेषज्ञ-वक्ता के रूप में प्रतिभागियों से रूबरू होने जा रहे हैं।

मुख्य अतिथि डॉ. ममता चंद्राकर ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में संगीत की शास्त्रीय परंपरा हमें जड़ों से जुड?े में मदद करती है। जड़ों को जाने बिना नए प्रयोग नहीं किए जा सकते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलसचिव प्रो. डॉ. तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के द्वारा नियमित रूप से संपन्न कराई जा रही प्रायोगिक और सैद्धांतिक गतिविधियों की जानकारी दी। प्रो. डॉ. तिवारी ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में पधारे चारों विषय-विशेषज्ञों की तुलना चारों वेदों से करते हुए उनके अनुभव का लाभ लेने की अपील विद्यार्थियों से की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *