PAK अपनी बदहाली का इल्जाम IMF पर लगाने की तैयारी में जुटा
कराची .
आर्थिक संकट में फंसा पाकिस्तान जिस अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मदद के भरोसे देश चला रहा है, उसी को लेकर गलत दावे करने से बाज नहीं आ रहा. हालांकि, आईएमएफ शहबाज शरीफ सरकार की इस राजनीति को पूरी तरह से समझ गया है और हर कदम पर उसे बेनकाब कर रहा है. पाकिस्तान ने कहा था कि आईएमएफ की शर्तों के कारण ही पंजाब प्रांत में चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं. पाकिस्तान के इस दावे को आईएमएफ ने सिरे से खारिज करते हुए गुरुवार को कहा है कि पाकिस्तान के संवैधानिक मामले उसकी शर्तों में शामिल नहीं हैं.
पाकिस्तान के अखबार, द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईएमएफ ने कहा कि पाकिस्तान को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपने खर्चों को प्राथमिकता देने या अतिरिक्त कर बढ़ाने का अधिकार है.
आईएमएफ के रेजिडेंट प्रतिनिधि एस्तेर पेरेज रुइज ने कहा, 'पाकिस्तान के ईएफएफ (Extended Fund Facility) प्रोग्राम के तहत संवैधानिक गतिविधियों को करने की पाकिस्तान की क्षमता में हस्तक्षेप करना कोई जरूरी नहीं है.'
करा नहीं पा रहा चुनाव, IMF को दोष दे रहा पाकिस्तान
इसके एक दिन पहले पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने पंजाब प्रांत में 8 अक्टूबर को होने वाले चुनावों को यह कहते हुए स्थगित कर दिया था कि आईएमएफ ने चुनावों के लिए फंड को ब्लॉक कर दिया है. चुनाव रोकने की अधिसूचना में आयोग ने आईएमएफ को जिम्मेदार ठहराया था.
आयोग ने कहा था, 'वित्त सचिव ने आयोग को जानकारी देते हुए कहा कि धन की कमी और वित्तीय संकट के कारण, देश एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. आईएमएफ प्रोग्राम की मजबूरी के कारण हमें राजकोषीय अनुशासन और घाटे के रखरखाव के लिए लक्ष्य निर्धारित करने पड़े हैं. वित्त सचिव ने कहा कि सरकार के लिए पंजाब, खैबर-पख्तूनख्वा की प्रांतीय विधानसभाओं के लिए और बाद में आम चुनावों और सिंध और बलूचिस्तान की प्रांतीय विधानसभाओं के लिए धन जारी करना मुश्किल होगा.'
पाकिस्तान अपने अंतरराष्ट्रीय और घरेलू संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल हो रहा है और अपनी हर असफलता के लिए आईएमएफ को दोष दे रहा है. पाकिस्तान के इस रवैये से दोनों पक्षों में विश्वास की भारी कमी हो गई है और बेलआउट पैकेज की 1.1 अरब डॉलर की किस्त पर स्टाफ लेवल का समझौता नहीं हो पा रहा है.
पिछले चार दिनों में यह दूसरी बार है जब आईएमएफ ने पाकिस्तान के इस तरह के दावों को खारिज किया है. कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार ने सीनेट को संबोधित करते हुए कहा था कि आईएमएफ के साथ समझौते में देरी होने की बड़ी वजह पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम भी हो सकता है.
उन्होंने कहा था, 'किसी को ये बताने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान के पास कितनी रेंज की मिसाइलें होनी चाहिए और उसके पास कौन-कौन से परमाणु हथियार हो सकते हैं. हम पाकिस्तान की आवाम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और हमें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए.'
'समझौते में देरी का पाकिस्तान के परमाणु प्रोग्राम से कोई लेना-देना नहीं'
आईएमएफ ने पाकिस्तान के इस दावे को खारिज कर दिया था कि समझौते में देरी का पाकिस्तान के परमाणु प्रोग्राम से कोई लेना-देना है. रुइज ने कहा था कि वह स्पष्ट होना चाहते हैं कि आईएमएफ प्रोग्राम और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बीच किसी तरह का लिंक नहीं है.
पाकिस्तान के चुनाव आयोग को पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में चुनाव कराने के लिए 20.5 अरब रुपये की जरूरत है. वहीं, नेशनल असेंबली की 93 सीटें भी खाली हैं जिन पर चुनाव के लिए अतिरिक्त पांच अरब रुपये चाहिए.
कुल मिलाकर, आयोग को 25.5 अरब रुपये की आवश्यकता है, जो इस वित्तीय वर्ष के लिए 11.2 ट्रिलियन रुपये के संशोधित वार्षिक बजट की तुलना में बहुत अधिक नहीं है. यह धनराशि पाकिस्तान सरकार के वार्षिक बजट के केवल 0.18% के बराबर है.
आईएमएफ प्रतिनिधि ने आगे कहा कि प्रांतीय और आम चुनावों की संवैधानिकता और वो कब, कैसे कराए जाएं, इसका निर्णय लेना पूरी तरह से पाकिस्तान से संस्थानों के पास है.
IMF से नहीं हुआ समझौता तो डिफॉल्ट हो जाएगा पाकिस्तान
विदेशी मुद्रा की किल्लत और भारी विदेशी कर्ज से जूझते पाकिस्तान को डिफॉल्ट से बचने के लिए जल्द ही आईएमएफ प्रोग्राम में शामिल होना होगा. प्रोग्राम में शामिल होने के लिए पाकिस्तान ने अपने लोगों पर अतिरिक्त कर लगाए हैं और सब्सिडी को बेहद कम कर दिया है.
आईएमएफ की शर्त के मुताबिक, फिलहाल पाकिस्तान को अपने मित्र देशों से कर्ज की गारंटी सुनिश्चित करनी है और ब्याज दरों को बढ़ाना है. भरोसे की कमी और इन शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण दोनों पक्षों के बीच स्टाफ लेवल का समझौता नहीं हो पा रहा है.