November 27, 2024

‘चोर मंडली’ वाले बयान पर संजय राउत दोषी करार, मुश्किले बढ़ी

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मुंबई

केंद्र में राहुल गांधी की सदस्यता के जाने के बाद मची सियासी हलचल अभी जारी ही है, कि इसी बीच महाराष्ट्र से भी ऐसी खबर आ रही है. यहां संजय राउत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव पर नोटिस को लेकर कार्रवाई हो सकती है. जानकारी के मुताबिक, विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शनिवार को जानकारी दी है  संजय राउत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव राज्यसभा में भेजा जा रहा है. यह प्रस्ताव संजय राउत की उस विवादास्पद टिप्पणी से जुड़ा हुआ है. जिसमें उन्होंने विधि मंडल को चोर मंडल कहा था. हालांकि बाद में राउत ने अपनी सफाई में कहा था कि उन्होंने सिर्फ शिंदे गुट के लिए ऐसी टिप्पणी की थी.

राहुल नार्वेकर ने दी जानकारी
महाराष्ट्र विधानसभा ने प्रथम दृष्टया शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत को विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव का दोषी पाया है. विधिमंडल में चोरों का गिरोह है, उनकी ऐसी टिप्पणी के बाद उनके खिलाफ उल्लंघन का प्रस्ताव रखा गया था. महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का कहना है कि राउत द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से वह संतुष्ट नहीं हैं. वहीं, राउत ने विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पर निर्णय लेने वाली समिति पर सवाल उठाए थे. संजय राउत राज्यसभा सदस्य भी हैं, इसलिए आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट राज्यसभा अध्यक्ष/उपराष्ट्रपति को भेजी जा रही है.

कोल्हापुर में राउत ने दिया था बयान बता दें, संजय राउत ने अपने कोल्हापुर दौरे पर 1 मार्च को मीडिया संवाद में विधानमंडल को लेकर विवादास्पद बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि यह विधानमंडल नहीं, ‘चोर मंडली’ है. इसके बाद विधायक अतुल भातखलकर ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की मांग की थी. उन पर महाराष्ट्र विधानमंडल, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के अपमान का आरोप लगाया गया. उसी दिन राउत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजा गया. पहले उन्हें नोटिस का जवाब 3 मार्च तक देना था, लेकिन बाद में उन्हें 20 मार्च तक का वक्त दिया गया था.

पहले भी बोले जा चुके हैं ऐसे नाम
यह पहली बार नहीं है कि शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे की टीम से ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया हो। इससे पहले भी शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने पार्टी के विभाजन के बाद गद्दार, 50 खोखे, बाप-चोर आदि जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। दरअसल हाल ही में शीर्ष चुनाव आयोग शिंदे गुट को शिवसेना नाम और धनुष-तीर चुनाव चिन्ह देकर असली के रूप में मान्यता दे दी है। जिसके बाद से ही जिसे सेना (यूबीटी) ने अन्य संबंधित मुद्दों के साथ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

कोल्हापुर में राउत ने दिया था बयान

बता दें, संजय राउत ने अपने कोल्हापुर दौरे पर 1 मार्च को मीडिया संवाद में विधानमंडल को लेकर विवादास्पद बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि यह विधानमंडल नहीं, ‘चोर मंडली’ है. इसके बाद विधायक अतुल भातखलकर ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की मांग की थी. उन पर महाराष्ट्र विधानमंडल, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के अपमान का आरोप लगाया गया. उसी दिन राउत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजा गया. इस मामले में संजय राउत ने कहा कि उन्होंने विधानमंडल को नहीं बल्कि विधानमंडल में बैठे एक गुट को लेकर बयान दिया था. अब संजय राउत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का यह प्रस्ताव राज्यसभा और उपराष्ट्रपति के विचार के लिए भेज दिया गया है. अब देखना यह है कि राज्यसभा इस मामले में क्या कार्रवाई करती है.

क्या है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव

विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव संसद या विधानसभा में दिए गए विशेष अधिकारों के हनन के खिलाफ दिया गया अधिकार है. अगर कोई व्यक्ति व्यक्तिगत तौर पर सदस्यों या सभा की सामूहिक तौर पर अवहेलना करता है, या फिर टिप्पणी द्वारा चोट पहुंचाता है, तो इसे विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है. इसके साथ ही सदन के दौरान अगर कोई सदस्य ऐसी टिप्पणी करता है जो सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाती हो तो ऐसी स्थिति में उस सदस्य पर सदन की अवमानना और विशेषाधिकार हनन के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव कैसे लाया जाता है

संसद में सदन के दौरान जब किसी सदस्य को लगता है कि कोई और सदस्य सदन में झूठे तथ्य पेश करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन कर रहा है तो वह सदस्य विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश कर सकता है. विशेषाधिकारों का दावा तभी किया जाता है जब व्यक्ति सदन का सदस्य हो. जब वह सदस्य नहीं रहता है तो उसके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया जाता है.

विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए दोषी पाए जाने पर किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्ताव के रूप में एक नोटिस दिया जाता है. प्रत्येक सदन के पास उन अवमानना कृत्यों के लिए दंडित करने का भी अधिकार है, जो किसी विशेष विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं करते हैं, जिसमें इसके अधिकार और सम्मान के खिलाफ किये गए अपराध शामिल हैं.

विशेषाधिकार समिति क्या है

लोकसभा में, अध्यक्ष संबंधित पार्टी की शक्ति के अनुसार 15 सदस्यों से मिलकर विशेषाधिकारों की एक समिति को नामित करता है. इसके बाद एक रिपोर्ट सदन में विचार के लिए पेश की जाती है. अध्यक्ष रिपोर्ट पर विचार करते हुए आधे घंटे की बहस की अनुमति दे सकता है. तब अध्यक्ष अंतिम आदेश पारित कर सकता है या निर्देश दे सकता है कि रिपोर्ट को सदन के समक्ष पेश किया जाए. इसके बाद, एक प्रस्ताव को विशेषाधिकार के उल्लंघन से सम्बन्ध में सदन के समक्ष रखा जा सकता है जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया जाता है. राज्यसभा में, उपसभापति विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष होता है, जिसमें 10 सदस्य होते

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