November 25, 2024

हामोर्नी: कल्पना को कैनवास पर उतारने की कला सीख रहे प्रतिभागी

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खैरागढ़

दृश्य कला पर आधारित एक महत्वपूर्ण कार्यशाला इन दिनों इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में जारी है। इस कार्यशाला में मूर्तिकला, चित्रकला और क्राफ्ट एंड डिजाइन विभाग के विद्यार्थी और शोधार्थी देश के जाने-माने विशेषज्ञों से इन कलाओं की बारीकियां सीख रहे हैं। आजादी का अमृत उत्सव के अंतर्गत जी-20 भारत 2023 जैसी विश्वव्यापी मुहिम का समर्थन करते हुए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ द्वारा 6 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला हामोर्नी, ए सिक्स डे मल्टी डिसिप्लिनरी विजुअल आर्ट्स वर्कशॉप का आयोजन किया गया है।

इस कार्यशाला में ब्लॉक प्रिंटिंग एंड नेचुरल डाइंग वर्कशॉप के लिए जयपुर के वल्लभ कोठीवाल, म्यूरल पेंटिंग वर्कशॉप के लिए ओडिसा से शिब प्रसाद मोहंती, मूर्तिकला के लिए छत्तीसगढ़ से चिरायु सिन्हा तथा ग्राफिक्स के लिए पुणे से सचिन निंबलकर विशेषज्ञ के रूप में सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रशिक्षण दे रहे हैं।

कुलपति पदमश्री डॉक्टर मोक्षदा (ममता) चंद्राकर के संरक्षण में आयोजित इस राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित कुलसचिव प्रोफेसर डॉ. आईडी तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि दृश्य कला संकाय के अलावा अन्य संकाय के विद्यार्थियों और शोधार्थियों की भी कार्यशाला में उल्लेखनीय भागीदारी इस कार्यशाला की सफलता को साबित करती है। इस आयोजन पर सहर्ष सहमति देने के लिए उन्होंने कुलपति महोदया के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ अध्ययन का एक ऐसा केंद्र है जहां उम्र ,भाषा क्षेत्रीयता ,धर्म आदि की वर्जनाएं नहीं हैं। यहां देश के कोने-कोने से विद्यार्थी आते हैं और कला के विविध रूपों की शिक्षा ग्रहण करते हैं, लेकिन साथ ही देश की सीमा से बाहर यूएसए जैसे देश से यहां आकर 75 वर्षीय डेनिश स्टिलवेल जैसे विद्यार्थी भी इस विश्वविद्यालय की विशेषता को रेखांकित करते हैं।

उन्होंने कार्यशाला में पधारे विषय-विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के प्रतिभागियों से अपील की कि वे विशेषज्ञों के ज्ञान और अनुभव का समुचित लाभ लें।कुलसचिव प्रो. डॉ. तिवारी ने विशेषज्ञों से भी आग्रह किया कि वे विश्वविद्यालय के अन्य संकायों और विद्यार्थियों से भी परिचित हों। शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संकाय के अधिष्ठाता प्रो. डॉ. राजन यादव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी अतिथियों, विशेषज्ञों, अधिकारी-कर्मचारियों, विद्यार्थियों , शोधार्थियों का कार्यशाला में स्वागत करते हुए ललित कलाओं का महत्व बताया। उन्होंने गुरू की महत्ता, ज्ञान के साथ विनम्रता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए जरूरी गुणों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने ललित-कलाओं की विशेषताएं बताते हुए किताबी ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान के अंतर पर भी उदाहरण सहित अपने विचार रखें। कार्यक्रम का संचालन श्री कपिल वर्मा ने किया, जबकि विभागाध्यक्ष वेंकट आर. गुड़े ने आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में संयोजकगण डॉ. रबि नारायण गुप्ता, डॉ. छगेंद्र उसेंडी, डॉ विकास चंद्रा तथा सभी संकाय के अधिष्ठाता, शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी समेत विश्वविद्यालय परिवार मौजूद था।

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