November 25, 2024

तपती किरणों से झुलसेंगे अन्नदाताओं के खलिहान, प्रचंड गर्मी से भारत के गेहूं उत्पादन पर बुरा प्रभाव!

0

नई दिल्ली
और बिन मौसम बरसात जैसी घटनाओं के कारण आम, गेहूं सहित बाकी फसलें भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। जिस तरह गेहूं की फसल बर्बाद हुई है, आशंका है कि इस बार देश में ओवरऑल गेहूं का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। दरअसल, पिछले महीने, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पूर्वानुमान में कहा है कि मार्च में भारत के अधिकांश उत्तर-पश्चिम, मध्य और पश्चिमी भागों में अधिकतम तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री अधिक रहने की संभावना है। बता दें कि इन इलाकों में बड़ी मात्रा में गेहूं का उत्पादन होता है।

 IMD के अनुसार, लगातार बढ़ता और दिन का उच्च तापमान गेहूं की फसल को प्रभावित कर सकता है। गेहूं की फसल तापमान के प्रति संवेदनशील होती है। फसल पकने की अवधि में अगर तापमान बढ़ता है तो उपज में कमी आती है। बागवानी पर भी बुरा असर पड़ सकता है। पिछले साल, मार्च महीना पिछले 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा था। गर्मी की लहरों के कारण भारत में खाद्य उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था। गेहूं उत्पादन में गिरावट के बारे में अरिंदम बनर्जी ने बताया कि हीटवेव के कारण रबी की अधिकांश फसलों को प्रभावित किया। गेहूं का उत्पादन 10-15 प्रतिशत कम हो गया। उत्पादन इतना कम था कि सरकार ने घरेलू उपलब्धता बनाए रखने के लिए पिछले साल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। अरिंदम अंबेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इस साल भी मार्च के पहले सप्ताह में बढ़ते तापमान की रिपोर्ट आई। देश में गेहूं उत्पादन ऐसे मौसम में प्रभावित होगा।

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में किसान अनुमानित गर्मी, लहर और ओवरऑल गेहूं उत्पादन पर चिलचिलाती धूप के असर को लेकर चिंतित हैं। जल्द ही फसलों की कटाई होने वाली है। उत्तर प्रदेश के करौंदी गांव के 38 वर्षीय किसान मुजीब बताते हैं कि गर्मी के कारण प्रचंड लहरों के कारण पिछले साल गेहूं की फसल बुरी तरह प्रभालित हुई थी। आम तौर पर चार बीघा जमीन में कम से कम 10 बोरी गेहूं की उपज होती है, लेकिन पिछले साल बमुश्किल तीन-चार बोरी गेहूं उत्पादन मैनेज हुआ। 25 पैसे का भी मुनाफा नहीं हुआ। अगर इस साल भी भीषण गर्मी बढ़ती है, तो हम भयानक स्थिति में होंगे। उन्होंने कहा कि बिन मौसम बरसात और वर्षा की कमी के कारण कई इलाकों की खेत में खड़ी फसल खराब हो रही है। दरअसल, सर्दी का मौसम छोटा होने के कारण उत्तर भारत के कई हिस्सों में गेहूं के उत्पादन का बड़ा हिस्सा पहले ही प्रभावित हो चुका है। उम्मीद के मुताबिक गेहूं की फसल पकी नहीं है।

किसान सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं। कम बारिश के मामले में, किसानों को मैन्युअल सिंचाई का सहारा लेने पर मजबूर होना पड़ता है, इसकी लागत कम से कम 800 रुपये प्रतिदिन है। गेहूं की फसल खराब होने की आशंका के बारे में आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के सहरसा के क़ुसमी गांव के 44 वर्षीय किसान मोहम्मद रफ़ी-उज़-ज़मान ने कहा, मुझे पिछले साल की तुलना में इस साल खेतों की सिंचाई में बहुत अधिक निवेश करना पड़ा। बढ़ते तापमान के कारण अधिक से अधिक पानी की जरूरत होती है। फसल ठीक से पक नहीं रही। जमाना के अनुसार, समय पर बारिश नहीं होने पर फसल खराब होती है। उन्होंने कहा, चाहे कितने ही रसायन और उर्वरक का उपयोग कर लिया जाए, प्राकृतिक वर्षा से मिलने वाले पोषक तत्वों की कमी की भरपाई नहीं हो सकती। हीटवेव की मानवीय लागत विश्व बैंक की एक रिपोर्ट- 'भारत के शीतलन क्षेत्र में जलवायु निवेश के अवसर' टाइटल से सामने आई है।

 इसमें भविष्यवाणी की गई है कि भारत जल्द ही हीटवेव का अनुभव करने वाले चुनिंदा शुरुआती देशों में एक बन सकता है। इससे मानव अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है, क्योंकि भारत का 75 प्रतिशत कार्यबल गर्मी में श्रमिकों के रूप में काम करने पर मजबूर है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) भारत के बारे में कहता है, अत्यधिक गर्मी भी सामान्य से पहले आई है। विशाल भूभाग में सामान्य गर्मी की लहरों की तुलना में बहुत अधिक गर्मी का एहसास हो रहा है। उच्च तापमान के कारण किसानों की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। इनके पास गर्मी से बचने के लिए बहुत कम आश्रय है। फसल चिलचिलाती धूप में सूख रही है।
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *