अल्पसंख्यकों पर ज्यादा मेहरबान क्यों दिख रही है BJP, तीन मामलों से समझें इसके मायने
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी समाज के सभी समुदायों के बीच अपनी पहुंच का दायरा बढ़ाने में जुटी है। खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पकड़ और पहुंच बनाने के लिए बीजेपी ताबड़तोड़ नए कदम उठा रही है। बात चाहे बीजेपी के शीर्ष निकाय संसदीय बोर्ड में एक सिख को नियुक्त करने का हो या उत्तर प्रदेश में चार मुस्लिमों को एमएलसी बनाने का हो। पार्टी ने अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश की है। बीजेपी नेताओं ने इसी महीने केरल में ईसाइयों के साथ ईस्टर मनाने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में नियुक्त किया। इससे मुस्लिम एमएलसी की संख्या बढ़कर चार हो गई है, जो सभी दलों में सबसे अधिक है। पार्टी ने पिछले ही साल अगस्त में सिख समुदाय से आने वाले इकबाल सिंह लालपुरा को पार्टी संसदीय दल में शामिल किया था, जो अपेक्षाकृत कई नेताओं के मुकाबले नए हैं।
बीजेपी की पिछली दो राष्ट्रीय कार्यकारिणियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ने पार्टी कार्यकर्ताओं से चुनावी उद्देश्यों से परे जाकर अल्पसंख्यकों तक पहुँच बनाने को कह चुके हैं। वे खुद भी अल्पसंख्यकों के आध्यात्मिक नेताओं से मिलते रहे हैं। हालांकि,भाजपा के पास सिर्फ एक मुस्लिम सांसद है, जबकि इस समुदाय से एक भी केंद्रीय मंत्री नहीं है।
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इकनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए ऐसी गतिविधियों के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, "कांग्रेस ने हमेशा से हमारे बारे में समाज में एक विभाजनकारी शक्ति के रूप में एक धारणा बनाने की कोशिश की है, जबकि मोदी के नेतृत्व में भाजपा सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत पर काम करने वाली समावेशी शक्ति है।" उन्होंने कहा कि पार्टी ने एक समावेशी पार्टी के रूप में संगठन के भीतर अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने के लिए कई कदम उठाए हैं।
बता दें कि बीजेपी अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पहुंच बनाने के लिए पंजाब और केरल में कांग्रेस के उन सिख और ईसाई नेताओं पर नजरें टिकाए हुई है, जो दलबदल की फिराक में लगे हैं। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस ने अधिकांश लोकसभा की सीटें जाती हैं। 2019 में कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों की कुल 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने केरल की 20 में से 15 और पंजाब की 13 में से आठ सीटें जीती थीं।