September 30, 2024

यूपी में राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल शुरू, मुसलमानों साधने की कोशिश

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नई दिल्ली ,

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम आबादी विधानसभा में ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनावों में भी हार-जीत का गणित तय करती है. मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन वक्त के साथ सियासत ने ऐसी करवट ली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर बहुसंख्यक समुदायों के इर्द-गिर्द सिमट गई. इसके बावजूद सूबे की  सियासी शतरंजी बिसात पर मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है.यही वजह है कि कांग्रेस से लेकर सपा और बसपा ही नहीं बल्कि बीजेपी भी मुस्लिमों को अपने पाले में लेने की कोशिश कर रही है.

यूपी में मुस्लिम कितने अहम?
देश में मुस्लिमों की आबादी 16.51 फीसदी है तो यूपी में करीब 20 फीसदी मुसलमान यानि 3.84 करोड़ हैं. देश की किसी राज्य में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी अनुपात के हिसाब से असम बंगाल और केरल के बाद यूपी चौथा नंबर है. असम में 34 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 68 फीसदी, केरल में 26.6 फीसदी, बंगाल में 27 फीसदी, यूपी में 20 फीसदी है.  

बीजेपी राज में मुस्लिम सियासत
यूपी में 80 लोकसभा सीट और 403 विधानसभा की सीट हैं. इनमें से लगभग एक तिहाई यानी 143 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रभावशाली हैं. 43 सीटों पर ऐसा असर है कि मुस्लिम उम्मीदवार यहां अपने दम पर जीत हासिल कर सकते हैं. इन्हीं सीटों पर मुस्लिम विधायक बनते रहे हैं. वहीं, यूपी की सियासत में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के तुलना में हमेशा से कम रहा है. सूबे में जब-जब बीजेपी सत्ता में आई है, तब-तब मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कम हुआ है.

मुस्लिम सांसद
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं बन पाया था. साल 2019 में यूपी से 6 मुस्लिम सांसद चुने गए थे. इसमें बसपा और सपा के 3-3 सांसद रहे. बसपा से कुंवर दानिश ने अमरोहा से तो अफजाल अंसारी ने गाजीपुर और सहारनपुर से हाजी फजर्लुरहमान ने जीत हासिल की थी. वहीं, सपा से आजम खान ने रामपुर, शफीकुर्रमान ने संभल से तो डा. एसटी हसन मुरादाबाद से जीते थे. हालांकि, 2022 में आजम खान ने रामपुर सीट से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में बीजेपी ने कब्जा जमा लिया था.

यूपी में मुस्लिम प्रतिनिधित्व
बसपा और सपा की तुलना में बीजेपी में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर आधी रह गई है. आजादी के बाद के बाद सबसे कम मुस्लिम विधायक अगर 1991 में जीते तो सबसे ज्यादा विधायक 2012 के चुनाव में जीते. साल 2022 के विधानसभा चुनावों में 34 मुसलमान विधायक चुने गए. इसमें 21 विधायक अकेले पश्चिम उत्तर प्रदेश से ही चुनकर आए थे. 6 सेंट्रल यूपी से तो 7 पूर्वांचल से जीते.  

पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद तक मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटा है. एक सोच यह है कि सियासी पार्टियां अब मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से संकोच करती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी जीत के आसार कम होते हैं.

मुस्लिम बहुल इलाके
पूर्वांचल कुछ हिस्सों में मुसलमान हैं तो पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की बड़ी तादाद है. पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. सूबे के 7 जिलों में मुसलमानों की आबादी 40 फीसदी से ज्यादा है, इन्हीं सात जिलों में से छह जगह पर मुस्लिम सांसद 2019 में चुने गए थे. 2022 के चुनाव में बीजेपी को इन्हीं जिलों में सपा से सियासी मात खानी पड़ी है.

मुस्लिमों की भविष्य की सियासत
यूपी में मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए सभी दल अपने-अपने स्तर से कोशिश कर रहे हैं. आजादी के बाद से नब्बे के दशक तक उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था. लेकिन, राममंदिर आंदोलन के चलते मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर हुआ तो सबसे पहली पंसद मुलायम सिंह यादव के चलते सपा बनी और उसके बाद समाज ने बसपा को अहमियत दी. इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच मुस्लिम वोट बंटता रहा, लेकिन 2022 के चुनाव में एकमुश्त होकर सपा के साथ गया.

मुसलमानों का सपा के साथ एकजुट होने का फायदा अखिलेश यादव को मिला. सपा 47 सीटों से बढ़कर 111 सीटों पर पहुंच गई. सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक 83 फीसदी मुस्लिम सपा के साथ थे. बसपा और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मुसलमानों ने वोट नहीं किया था. असदुद्दीन औवैसी की पार्टी AIMIM को भी मुस्लिमों ने नकार दिया था. इतनी बड़ी तादाद में मुस्लिम समुदाय ने किसी एक पार्टी को 1984 चुनाव के बाद वोट किया था.

2024 में मुस्लिम किसके साथ
मुस्लिम मतदाता 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी तरह से एकजुट रहा तो सूबे की 26 लोकसभा सीटों पर सियासी उलफेर हो सकता है. ऐसे में मायावती निकाय चुनाव के जरिए दलित-मुस्लिम समीकरण फिर से लौटी हैं तो कांग्रेस भी अपनी तरफ उन्हें लाने की कोशिश कर रही है. वहीं, बीजेपी पसमांदा कार्ड के जरिए मुस्लिमों के बीच अपनी जगह बनाना चाहती है तो असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम लीडरशिप के बहाने सियासी जमीन तलाश रहे हैं. सपा मुस्लिम मतों को लेकर बेफिक्र है और अखिलेश यादव को यकीन है कि यह वोट फिलहाल उनसे दूर नहीं जाएगा. ऐसे में देखना है कि भविष्य की सियासत में मुस्लिम मतदाता किसके साथ खड़ा नजर आता है.

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