November 24, 2024

चुनाव में मुफ्त की योजनाओं से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान -सुप्रीम कोर्ट

0

नई दिल्ली

चुनाव से पहले किए जाने वाले मुफ्त योजनाओं के वादों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान 'मुफ्त रेवड़ी' बांटने के वादे एक गंभीर आर्थिक समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए एक संस्था की जरूरत है। सप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर चुनाव आयोग और सरकार के साथ कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से भी सुझाव मांगे हैं।

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली  की बेंच ने कहा कि नीति आयोग, वित्त कमीशन, सत्ताधारी और विपक्षा पार्टियों, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और अन्य संस्थाओं को भी इस मामले में सुझाव देने चाहिए कि आखिर इस 'रेवड़ी कल्चर' को कैसे रोका जा सकता है। बेंच ने कहा, अच्छे सुझाव के लिए जरूरी है कि जो लोग इस कल्चर का समर्थन करते हैं वे और विरोध करने वाले लोग, दोनों ही सुझाव दें।

सात दिन के अंदर मांगे सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्सपर्ट बॉडी बनाने के लिए सात दिनों के अंदर सुझाव मांगे हैं। कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग के साथ ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वे जल्द अपने सुझाव दें ताकि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए  एक एक्सपर्ट बॉडी बनाई जा सके।

केंद्र ने किया 'रेवड़ी कल्चर' का विरोध
केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुफ्त की योजनाओं के चुनावी वादों के खिलाफ दायर याचिकाओं का समर्थन किया और कहा कि इससे अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो रहा है। लोगों को रिझाने वाले ये वादे न सिर्फ वोटर्स को प्रभावित करते हैं बल्कि अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करते हैं।

CJI बोले, एक पार्टी का नाम नहीं लेना चाहते, सब उठाते हैं फायदा
सीजेआई एनवी रमना ने कहा, मैं किसी एक पार्टी का नाम नहीं लेना चाहता। सभी दल मुफ्त की योजनाओं का वादा करके फायदा उठाते हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर  सुनवाई कर रहा था जिसमें मांग की गई है कि मुफ्त रेवड़ी का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों का निशान सीज कर दिया जाए और उन पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाए।

क्या है याचिका?
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने मुफ्त की चीजें बांटने का वादा करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग की है. उनकी याचिका में कहा गया है कि इस तरह की घोषणाएं एक तरह से मतदाता को रिश्वत देने जैसी बात है. यह न सिर्फ चुनाव में प्रत्याशियों को असमान स्थिति में खड़ा कर देती हैं बल्कि चुनाव के बाद सरकारी खज़ाने पर भी अनावश्यक बोझ डालती हैं. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 जनवरी को नोटिस जारी किया था.

केंद्र ने किया समर्थन
केंद्र सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का खुलकर समर्थन किया. उन्होंने कहा कि गैर जिम्मेदारी से घोषणाएं करने वाली पार्टियों पर कार्रवाई का मसला चुनाव आयोग पर छोड़ा जाना चाहिए. मेहता ने यह भी कहा कि मुफ्त की घोषणाओं पर अगर लगाम नहीं लगाई गई तो देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी.

गरीबों की सहायता होनी चाहिए : CJI
जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली के साथ मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस ने कहा, "सिर्फ अमीरों को ही सुविधा नहीं मिलनी चाहिए. अगर बात गरीबों के कल्याण की है, तो इसे समझा जा सकता है. पर इसकी भी एक सीमा होती है." इसके बाद चीफ जस्टिस (Chief Justice) ने कमिटी का गठन कर समाधान निकालने की बात कहते हुए सुनवाई 11 अगस्त के लिए टाल दी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *