September 29, 2024

भारत में आत्महत्या की कोशिश के ज्यादातर मामलों में गुजरना पड़ता है उत्पीड़न से

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न्यूयॉर्क
एक सुबह लता (बदला हुआ नाम) और उसके पति की नींद तब टूटी जब पुलिस ने दरवाजा खटखटाया और लता को स्थानीय थाने में साथ चलने के लिए कहा।

लता जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश करने के बाद अस्पताल से इलाज कराकर हाल में लौटी थी और वह वापस घर आकर राहत की सांस ले रही थी लेकिन पुलिस के इस उत्पीड़न, पड़ोसियों की कानाफूसी तथा दखलअंदाजी के कारण वह फिर से निराशा से घिर गयी। दुखद रूप से लता की कहानी भारत में बहुत आम है।

भारत में 2021 में 1,64,000 से अधिक लोगों ने आत्महत्या की जो 2020 के मुकाबले 7.2 प्रतिशत अधिक है। आत्महत्या की कोशिश भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत तब तक दंडनीय अपराध थी जब तक कि 2018 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून पास नहीं हो गया, जिसके कारण धारा 309 को अपवाद बनाकर आत्महत्या को अपराध के दायरे से बाहर लाया गया।

इस कानून की धारा 115 में माना गया है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाला व्यक्ति गंभीर तनाव से जूझ रहा होता है। इस कानून में ऐसे व्यक्ति को सजा देने के बजाए सरकारों से उन्हें मानसिक स्वास्थ्य सहयोग देने और उनका पुनर्वास करने का अनुरोध किया गया है।

हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून की धारा 115 तकनीकी रूप से धारा 309 को निरस्त नहीं करती है। इसे निरस्त करने के लिए संसदीय संशोधन की आवश्यकता है।

इसके बजाय, धारा 115 एक मध्यस्थ है जो धारा 309 को कमजोर करती है। इसका मकसद लता जैसे लोगों और उनके परिवार का उत्पीड़न तथा उन्हें कसूरवार ठहराने की प्रवृति पर अंकुश लगाना है।

जब खुदकुशी का प्रयास करने वाला कोई व्यक्ति किसी चिकित्सा केंद्र में जाता है तो उस घटना को चिकित्सा तथा कानूनी दोनों मामले के रूप में दर्ज किया जाता है और पुलिस को सूचित किया जाता है।

पुलिस परिवार से संपर्क करती है और मरीज से भी तफ्तीश करती है। हालांकि, वह मरीज पर अभियोग नहीं चलाती लेकिन उन्हें तथा उनके परिवार को लगातार परेशान करती है।

सरकारों ने भी डॉक्टरों या पुलिस को कोई दिशा निर्देश नहीं दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून की धारा 115 के लागू होने के बाद से आत्महत्या की कोशिश के मामलों से कैसे निपटा जाए।

ऐसा हो सकता है कि किसी ने घरेलू हिंसा या शारीरिक उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का प्रयास किया हो या यह हत्या का प्रयास हो जिसे आत्महत्या का रंग देने की कोशिश की गई हो। अगर पुलिस को उचित मार्गदर्शन तथा प्रशिक्षण दिया जाए तो वे इन परिस्थितियों की जांच अच्छी तरह कर सकती है और आत्महत्या के प्रयास के मामलों को संवेदनशीलता से संभाल सकती है ताकि पीड़ित को किसी तरह की मानसिक परेशानी न हो।

आत्महत्या के प्रयास को अपराध के दायरे में लाने के कारण खुदकुशी की कोशिश करने वाले कई लोग चिकित्सीय सहायता लेने से कतराते हैं।

यह खासतौर से जरूरी है क्योंकि अनुसंधान से पता चलता है आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोगों में पहले प्रयास के बाद छह महीने में दूसरी बार खुदकुशी की कोशिश करने का खतरा अधिक रहता है।

अगर लोग समय पर मदद लेते है, तो उन्हें न केवल जरूरी चिकित्सीय देखभाल मिलेगी बल्कि उन्हें काउंसिलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सहयोग भी मिल सकता है।

राष्ट्रमंडल देशों में भारत इकलौता नहीं है जहां अब भी आत्महत्या विरोधी कानून है। ब्रिटेन में 1961 में ही आत्महत्या को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया था। कानून में बदलाव के बाद ब्रिटेन में आत्महत्या के मामले नहीं बढ़े।

हाल में श्रीलंका में 1996 में आत्महत्या को अपराध बनाने वाले कानूनों को निरस्त करने के बाद वहां आत्महत्या की दर कम हुई है।

 

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