September 27, 2024

शहर की 60 साल पुरानी मस्जिद जल्द नजर आएगी नए कलेवर में

0

भिलाई

इस्पात नगरी भिलाई में 60 साल पहले अनूठी डिजाइन के साथ बनाई जामा मस्जिद सेक्टर-6 जल्द ही नए कलेवर में नजर आने वाली है। जामा मस्जिद के संचालन कर रही भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट की निगरानी में मशहूर आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी और उनकी टीम इस मस्जिद का चेहरा संवारने में जुटी हुई है। अरबी में लिखे 'या अल्लाहझ् की वजह से चर्चित रही इस मस्जिद का विस्तारीकरण और सौंदर्यीकरण दोनों किया जा रहा है। जिससे इस मस्जिद की खूबसूरती में और भी निखार आएगा।

उल्लेखनीय है यह डिजाइन बीते 60 सालों से लोगों को आकर्षित करती रही है। नतीजा, यह है कि इस मस्जिद की डिजाइन के आधार पर हूबहू ऐसी ही मस्जिद सऊदी अरब में अलनमास के अलभा में मौजूद है। वहीं भारत में बेंगलुरू (कर्नाटक) और बिहार में सीवान के फिरोजपुर में भी ऐसी ही मस्जिद बनाई गई। इसके अलावा देश और दुनिया भर में जारी होने वाले उर्दू कैलेंडर पर भी सेक्टर-6 भिलाई की इस मस्जिद की तस्वीर बीते 60 सालों से प्रमुखता के साथ इस्तेमाल हो रही है। बदलते दौर में भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट ने नमाजियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए मस्जिद के विस्तारीकरण व सौंदर्यीकरण का फैसला लिया था। इसके बाद पिछले दो दशक से विभिन्न चरणों में इस मस्जिद का विस्तारीकरण किया गया।

जिससे मीनार के नीचे मौजूद हौज को  बंद किया गया और अलग से वुजू खाना बनाया गया। इस दौर में नमाजियों के लिए मस्जिद के बाहरी हिस्से में कोई छत नहीं थी, लिहाजा मस्जिद ट्रस्ट की ओर से हर साल ठंड की विदाई से बारिश तक के लिए करीब 8 माह तक तिरपाल की अस्थाई छांव की जाती थी।इस अस्थाई व्यवस्था के दौर में आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी इस मस्जिद के सामने सहन बनाने का प्रस्ताव दिया था। तब  कमेटी की यह मंशा थी के जामा मस्जिद कुछ और ज्यादा ही आलीशान दिखे। इसके लिए आर्किटेक्ट फजल फारूकी के दिए नक्शे को कमेटी ने पसंद किया और इसके आधार पर सहन (सामने का हिस्सा) बनकर तैयार हुआ। इस दौरान हिस्से के आर्च (कमान)  पर मार्बल और सीमेंट की जाली या फिर ग्लास वर्क का सुझाव आया। ऐसे में मस्जिद के सौंदर्यीकरण का काम हाजी एमएच सिद्दीकी को दिया गया। हाजी सिद्दीकी ने यहां पहले की तरह अरबी लिपि में लिखा हुआ 'या अल्लाहझ् स्पष्ट तौर पर दशार्ने डिजाइन में कुछ और बदलाव किया।
वहीं सहन के तीनों तरफ छज्जा निकाला गया और साथ ही सीढि?ों की जगहों पर दो कमरे बनाए गए। वहीं भविष्य में यहां आकर्षक रंगीन रौशनी के साथ फव्वारे लगाने की भी योजना है।

तब लोग दुर्ग जाते थे, सेक्टर-1 में भी होती थी नमाज
इस्पात नगरी भिलाई के अस्तित्व में आने से पहले वर्तमान टाउनशिप और कारखाने की जगह 45 से ज्यादा गांव थे। जहां बहुत से स्थानीय मुस्लिम परिवार भी रहा करते थे। तब यहां इन गांवों में कोई बड़ी मस्जिद नहीं थी। इसलिए यहां के गांवों के मुसलमान दुर्ग की जामा मस्जिद या फिर ईदगाह दुर्ग में नमाज अदा करते थे। भिलाई के निर्माण के साथ ही यहां देश भर से अलग-अलग धर्म, मत व संप्रदाय के लोगों का आना हुई। तब टाउनशिप बन रहा था और व्यवस्थित धर्मस्थल नहीं थे। ऐसे में मुस्लिम समुदाय के लोग सुपेला, कैंप, बोरिया व खुसीर्पार सहित -अलग हिस्सों में खुले में नमाज अदा करते थे।

वहीं दोनों ईद की नमाज या मुस्लिम समुदाय का कोई भी बड़ा जलसा सेक्टर-1 के मौजूदा क्लब के सामने मैदान में आयोजित करते थे। वर्ष 1960 में तत्कालीन भिलाई स्टील प्लांट मैनेजमेंट ने सभी धार्मिक स्थलों के लिए सेक्टर-6 में भूमि आवंटन किया। जिसमें मस्जिद के लिए मौजूदा स्थान आवंटित किया गया।

हैदराबाद के आर्किटेक्ट ने बनाई है मूल डिजाइन,1967 में हुई पहली नमाज
भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट के बैनर तले वर्ष 1964 में मस्जिद का निर्माण शुरू किया गया। इस मस्जिद की अनूठी डिजाइन हैदराबाद के सिद्दीकी एंड एसोसिएट फर्म के प्रमुख खैरुद्दीन अहमद सिद्दीकी ने दी थी। बाद के दौर में यह डिजाइन इतनी मशहूर हुई कि देश-विदेश में इसी डिजाइन पर मस्जिद बनाई गई। भिलाई की इस मस्जिद का निर्माण कार्य तीन साल चला और 31 मार्च 1967 शुक्रवार को पहली जुमा की नमाज पढ़ी गई। तब से यहां नमाज का सिलसिला जारी है।  इस मस्जिद में शुरूआती दौर में अलग-अलग इमामों ने अपनी खिदमत को अंजाम दिया। जनवरी 1970 से दिसंबर 2013 तक हाजी हाफिज सैयद अजमलुद्दीन हैदर यहां इमाम रहे। उनके बाद से हाफिज इकबाल अंजुम हैदर यहां इमामत कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *