September 24, 2024

जल्द भोपाल में भी सील होगी नेशनल हेराल्ड की प्रॉपर्टी-मंत्री भूपेंद्र सिंह

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  भोपाल

नेशनल हेराल्ड मामले ने कांग्रेस की मुश्किलों को कई गुना बढ़ा दिया है. जो केस पहले सिर्फ गांधी परिवार तक सीमित चल रहा था, अब कई और पहलू सामने आ गए हैं. बुधवार को ईडी ने बड़ी कार्रवाई करते हुए नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग के अंदर मौजूद यंग इंडिया के ऑफिस को सील कर दिया था. अब इसी तर्ज पर भोपाल में भी नेशनल हेराल्ड के एक और ऑफिस पर कार्रवाई हो सकती है. शिवराज सरकार में मंत्री भूपेंद्र सिंह ने ये बड़ा दावा कर दिया है.

भोपाल वाले नेशनल हेराल्ड पर क्यों बवाल?

आजतक से बात करते हुए नगरीय प्रशासन भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि भोपाल स्थित नेशनल हेराल्ड की प्रॉपर्टी को सील किया जाएगा. कोर्ट में मामला होने के चलते अभी कार्रवाई हो नहीं पाई थी. मंत्री ने दावा किया है कि नेशनल हेराल्ड के दफ्तर में विशाल मेगा मार्ट सहित कई कमर्शियल दफ्तर काम कर रहे हैं. ऐसे में नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग का जिसने भी कॉमर्सियल यूज़ किया है, उसकी जांच की जाएगी और बाद में प्रॉपर्टी को सील भी किया जा सकता है.

भूपेंद्र सिंह ने ये भी जानकारी दी है कि IAS स्तर का कोई अधिकारी ही इस पूरे मामले की एक महीने के भीतर जांच करेगा और उन्हें उसकी विस्तृत रिपोर्ट दी जाएगी. मंत्री ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस के नेता हो या फिर BDA के कर्मचारी/अधिकारी, सबके खिलाफ  कार्रवाई की जाएगी. नेशनल हेराल्ड के भोपाल वाले दफ्तर की बात करें तो साल 1981 में 1.14 एकड़ आकार का प्लॉट सरकार ने रियायती दरों पर दिया था. यह प्लॉट 30 साल की लीज पर दिया गया था और भोपाल विकास प्राधिकरण के मुताबिक उस समय इस जमीन का मूल्य करीब 1 लाख रुपए/एकड़ था.

नेशनल हेराल्ड की कहानी

यहां प्रिंटिंग प्रेस बनाकर नवजीवन समाचार पत्र का प्रकाशन भी शुरू किया गया, लेकिन 1992 में इसका प्रकाशन बंद हो गया था. 2011 में जब लीज खत्म होने पर भोपाल विकास प्राधिकरण यहां अपना मालिकाना हक लेने पहुंचा तो पाया गया कि यहां प्लॉट पर बड़ा व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बन गया है जहां कई शोरूम खुल गए हैं. प्रेस को दिए गए प्लॉट पर व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बनने का पता चलने के बाद भोपाल विकास प्राधिकरण ने इसे अपने कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू की लेकिन इसी बीच कई खरीददार सामने आ गए और मामला अदालत पहुंच गया जिस वजह से कार्रवाई बीच में ही अटक गई. 2012 में भोपाल विकास प्राधिकरण ने इस प्लॉट की लीज को रद्द कर दिया था लेकिन तब से लेकर अब तक इस प्लॉट के अलग-अलग खरीददार और भोपाल विकास प्राधिकरण के बीच मालिकाना हक को लेकर मामला कोर्ट में विचाराधीन है.

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